संध्या दिव्वेदी

प्रत्युषा बनर्जी की आत्महत्या से मैं भी आहत हूं। छोटे परदे की बालिका वधू आनंदी को मैं निजी तौर पर नहीं जानती थी, लेकिन उसके हुनर से मैं वाकिफ थी। उसमें खूबसूरती और अदाकारी का बेहतरीन गठजोड़ था। सफलता के रास्ते पर वह चल पड़ी थी। मुझे यकीन है कि अगर वह जिंदा रहती तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता था। मगर यह एक कड़वा सच है कि एक उभरते हुए हुनर को अवसाद के ग्रहण ने असमय निगल लिया। लेकिन उससे भी ज्यादा आहत रोजाना अखबारों में लिखे जा रहे लेखों से हूं, चैनलों पर हो रहे कई विश्लेषणों से हूं। जैसा कि मुझे अंदाजा था कि अब अफरा-तफरी में उसकी मौत को चकाचौंध भरी दुनिया में ऊंचे सपनों की उड़ान भरने वाली लड़कियों की अतिमहत्वकांक्षा से जोड़ दिया जाएगा। ग्लैमर की दुनिया के पीछे छिपे स्याह सच के रूप में उपजे अवसाद का नाम दिया जाएगा। और हां, मौत लड़की की हुई है तो प्रेम प्रसंग का किस्सा चटखारे लेकर लिखा जाएगा और सुनाया जाएगा।

प्रत्युषा की आत्महत्या के विश्लेषण पर लिखे यह सारे लेख और इस तरह से बने कार्यक्रम उन लड़कियों के लिए मुसीबत बन जाएंगे जिन्होंने सफलता के आकाश में अपने पंख फैलाने की ठानी थी और कुछ ने तो पंख फैलाने शुरु भी कर दिए थे। आसपास के लोग दुख और अफसोस जताने से ज्यादा इस बात को बताएंगे कि ग्लैमर की दुनिया की दिखने वाली चकाचौंध तो बस दिखावा है इसके पीछे छिपा स्याह सच किस तरह से लड़कियों को निगल जाता है। अब मौका मिला है तो भला कौन छोड़े ! कुछ लोग लिखना और बताना शुरू करेंगे कि ग्लैमर से जुड़े हर पेशे में बहुत शोषण है। लड़कियों की देह के दुरुपयोग के किस्से तो ऐसे सुनाए जाते हैं मानों आंखों देखी हो। ऐसी आत्महत्याओं के बाद उन लोगों की पूछ तो और बढ़ जाती है जो छुटभैया किस्म के बालीवुडिए लेखक होते हैं। मैंने तो न जाने ऐसे कितने किस्से सुने हैं जिसमें दिल्ली में बैठे लोग साबित कर देते हैं कि बालीवुड जाने का मतलब है देह का सौदा। यहां तक कि ऊंचा मुकाम हासिल कर चुकी नायिकाओं के बारे में इतनी अंदर की जानकारी उन्हें होती है कि क्या कहने ! इस मुकाम तक जाने के लिए कितने लोगों ने उसकी देह का सुख भोगा है इसकी पूरी लिस्ट उन्हें जुबानी याद रहती है।

काबिल-ए-तारीफ यह है कि यह लोग फिर किसी बुद्धिजीवी या खुली मानसिकता का होने की भावभंगिमा बनाकर मसलन भौहें चढ़ाकर, चेहरे पर बेफिक्री का भाव लाकर, हाथों को ठुड्डी पर रखकर यह भी कह देते हैं कि ग्लैमर की दुनिया में यह सब आम बात है। किसी बड़ी महिला पत्रकार की सफलता से ज्यादा उसके प्रेम प्रसंग पढ़ने या यो कहें गढ़ने में उन्हें ज्यादा दिलचस्पी होती है। खैर मैं तो ऐसी उदारवादी सोच के पुरुष और महिला दोनों की कायल हूं। जी बिल्कुल, केवल पुरुष ही ऐसी अंदरखाने की जानकारी का प्रचार करते हों ऐसा नहीं है, औरतें भी उतने ही मजे से अपना ज्ञान बघारती हैं। घरेलू औरतें का विश्लेषण तो उनकी सोच जितना सीमित होगा। घर की चहारदीवारों, बाजार तक सीमित रहने वाली इन औरतों के विश्लेषण से कोई शिकवा भी नहीं। लेकिन लेखन, पत्रकारिता और फिल्मी दुनिया से जुड़ी औरतें अपनी अक्लमंदी साबित करने के लिए मृतक महिला के बेडरूम तक की कल्पना, उसके ऊंचे सपनों और जमीन में मिली असफलता के अंतर पर खूब लिखती और बोलती हैं। व्याख्या या विश्लेषण एक वैज्ञानिक विधा है। इसके लिए काफी शोध, संदर्भ और अनुभव की जरूरत पड़ती है। इसलिए इन लोगों से मेरी सख्त गुजारिश है कि अपने लेखों को सत्यता की कसौटी पर जहां तक संभव हो सके जरूर परखें।

प्रत्युषा मेरा तुमसे सवाल…

प्रत्युषा मैं दुखी हूं, गमगीन हूं, मगर स्तब्ध हूं और तुमसे नाराज हूं। ऐसा तुमने क्यों किया? अपना न सही उन लड़कियों का ख्याल तुम्हें आना चाहिए था जिन्हें तरक्की की तरफ बढ़े तुम्हारे हर कदम से हौंसला मिलता था, तुम्हारी सफलता पर इतराती थीं और तुम्हें परदे पर देखकर अपने मन में ठानतीं थीं…अगर लगन हो तो मंजिल मिल ही जाती है।

प्रत्युषा और उस जैसी दूसरी लड़कियों और औरतों से मैं कहना चाहूंगी कि यह अवसाद क्यों? जिंदगी से पलायन क्यों? ज्यादातर लोग ग्लैमर से जुड़ी दुनिया में काम करने वाली लड़कियों की मौत के पीछे इसे चकाचौंध के पीछे छिपे स्याह सच के रूप में दिखाते और बताते हैं। मगर मैं कहना चाहती हूं, बताना चाहती हूं कि अगर आपके सपने बड़े हैं, आप किसी सफल व्यक्ति जैसा बनना चाहते हैं। शोहरत, पैसा, नाम पाने की इच्छा रखते हैं तो पहले उन लोगों की जिंदगी को जानें और पढें, जो उस मुकाम पर पहुंचे हैं। पता चलेगा इस सफलता के मिलने से पहले उन्होंने कई असफलताएं झेली हैं। कई संघर्ष उन्होंने किए हैं। चुनौतियां पार की हैं। बाधाएं लांघी हैं। बिना होमवर्क कोई लक्ष्य बनाना नहीं चाहिए। जितनी बड़ी सफलता चाहिए उतने बड़े संघर्ष औऱ चुनौतियों के लिए तैयार रहें। जब अवसाद हो तो अपने लक्ष्य को याद करें। सोचें कि क्या आपके लक्ष्य से बड़ा आपका अवसाद है, संघर्ष है। जब आप अपनी सफलता को सोचेंगे तो वह आपके लिए रिइनफोर्समेंट का काम करेगा। मंजिल तक पहुचने की चाहत ही आपको सभी बाधाओं से लड़ने की शक्ति देती है। और एक बात यह सब लिखना बंद हो कि हर चकाचौंध के पीछे स्याह पक्ष होता है। बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। यह केवल उस पेशे को ही बदनाम नहीं करता बल्कि उन सफल औरतों के लिए भी शक पैदा करता है जो न जाने कितने संघर्षों के बाद अपने मुकाम पर पहुंची हैं।