बालाकोट समेत तीन आतंकी ठिकानों पर भारतीय सैन्य कार्रवाई के बाद विश्व समुदाय में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को अब ईरान ने चेतावनी दी है कि वह अपनी हरकतों से बाज आए. अमेरिका के हालिया रुख के चलते पाकिस्तान अपनी जमीन पर सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्ती बरतने पर मजबूर तो हुआ है, लेकिन वह पूरी ईमानदारी के साथ ऐसा नहीं कर रहा. 

 किस्तानी मूल के ब्रितानी लेखक तारिक अली का कहना है कि पाकिस्तान को बिखरने से केवल दो चीजें बचा सकती हैं, पहला उसके परमाणु हथियार और दूसरा अमेरिका. पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान समझ गया है कि उक्त दोनों चीजें बहुत दूर तक उसका साथ नहीं दे सकतीं, क्योंकि उसके परमाणु हथियारों की धमकी के बावजूद भारत ने उसकी सीमा के भीतर चल रही आतंक के कारखानों पर हवाई हमला किया और अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई से भारत को रोकने की कोशिश नहीं की. तारिक अली कहते हैं कि अमेरिका जब चाहे, पाकिस्तान में सॉफ्ट बाल्कनाईजेशनकी प्रक्रिया शुरू कर सकता है. इसके लिए आतंकवाद एक बड़ी वजह हो सकता है. पाकिस्तान की आतंकी कारखानों से निकलने वाली आग की लपटें अभी तक केवल उसके दो पड़ोसी देशों, भारत और अफगानिस्तान को झुलसा रही थीं, लेकिन अब उसमें तीसरा नाम ईरान का भी शामिल हो चुका है.

ईरान के तीखे तेवर

पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले से केवल एक दिन पहले ही ईरान के रिवोल्यूशनरी गाड्र्स पर एक भयानक आत्मघाती हमला हुआ था, जिसमें 27 जवान मारे गए थे. उक्त हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-उल-अदल ने ली थी. ईरान ने इस हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए सख्त परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी दी थी. रिवोल्यूशनरी गाड्र्स ने तो यहां तक कह दिया कि अगर पाकिस्तानी सेना और आईएसआई खुद द्वारा प्रायोजित आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगाते हैं, तो वह पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा. अभी हाल में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से टेलीफोन पर बात करके मांग की कि वह अपनी जमीन को आतंक के लिए इस्तेमाल होने से रोकें. रूहानी ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान अपनी जमीन को ईरान के खिलाफ आतंकी कार्रवाइयों के लिए इस्तेमाल होने देगा, तो उससे न केवल दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित होंगे, बल्कि पूरे क्षेत्र को संकट का सामना करना पड़ सकता है. रिवोल्यूशनरी गाड्र्स पर हुए हमले के बाद से ईरान लगातार कह रहा है कि पिछले कुछ सालों में उस पर हुई आतंकी कार्रवाइयों के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं.

कार्रवाई करने का दिखावा

दरअसल, पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तानी आतंकी प्रशिक्षण शिविरों पर भारतीय हवाई हमलों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पडऩे के बाद पाकिस्तान अपनी जमीन से संचालित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों पर कार्रवाई कर रहा है या फिर ऐसा दिखावा कर रहा है. पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के प्रति कितना गंभीर है, इसका अंदाजा लगाने के लिए दो उदाहरण काफी हैं, पहला यह कि पुलवामा हमले के बाद टेरर फंडिंग पर नकेल कसने का दिखावा करते हुए पाकिस्तान ने मीडिया के लिए संदेश जारी किया कि उसने लश्कर-ए-तैयबा के फंडिंग स्रोतों पर पाबंदी लगा दी है. इस खबर को लेकर सोशल मीडिया में मजाक उडऩा शुरू हो गया कि पाकिस्तान एक ही संगठन पर बार-बार पाबंदी लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी कर रहा है. दूसरा, ईरान सरकार ने रूहानी-इमरान बातचीत के बाद जो बयान जारी किया, उसका मुख्य बिंदु आतंक था, लेकिन पाकिस्तान की ओर से जारी बयान में आतंकवाद का जिक्र सरसरी तौर पर किया गया था. ईरान ने जिस जोरदार ढंग से आतंकवाद के खिलाफ अपनी बात कही थी, पाकिस्तान ने उसका जिक्र तक नहीं किया. अगर ईरान के आरोपों में थोड़ी भी सच्चाई है, तो फिर साफ है कि पाकिस्तान ने भारत और अफगानिस्तान की तरह ईरान के प्रति अपनी नीति में आतंकवाद को शामिल कर लिया है. ऐसे में, सवाल यह उठ सकता है कि पाकिस्तान आखिर ईरान के साथ अपने रिश्ते बिगाडऩे पर क्यों तुला हुआ है? इस सवाल का जवाब भी क्षेत्र की भू-राजनीति में तलाशा जा सकता है.

किसे खुश करने की कोशिश?

मध्य पूर्व एशिया में शिया-सुन्नी वर्चस्व की लड़ाई में सऊदी नेतृत्व वाला सुन्नी पक्ष यमन में ईरान समर्थित शिया हैती विद्रोहियों के खिलाफ पाकिस्तान की सक्रिय भागीदारी चाहता था. उस समय ईरान के दबाव में पाकिस्तान सऊदी अरब की खुले तौर पर मदद नहीं कर सका था. इससे नाराज सऊदी खेमे के एक देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने जता दिया था कि पाकिस्तान को अपने फैसले की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. तो क्या पाकिस्तान ईरान में आतंकी कार्रवाइयों के जरिये सऊदी खेमे को खुश करने की कोशिश कर रहा है? यह एक बड़ा सवाल है. ईरान के प्रति पाकिस्तान की उलटी नीति की एक वजह सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दो बंदरगाह भी हैं. पहला ईरान स्थित चाबहार, जिसे भारत संचालित कर रहा है. दूसरा, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत स्थित चीन की मदद से बनने वाला ग्वादर बंदरगाह. दरअसल, पाकिस्तान को मुगालता था कि अरब सागर से अफगानिस्तान, मध्य एशिया के देशों और रूस के साथ व्यापार के लिए वह अपरिहार्य है. लेकिन, चाबहार ने न केवल उसकी यह गलतफहमी दूर कर दी, बल्कि भारत इस बंदरगाह की मदद से चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर भी नजर रख सकेगा. हालांकि, ईरान कहता रहा है कि चाबहार की ग्वादर से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, लेकिन पाकिस्तान जानता है कि चाबहार भारत की एक बड़ी सामरिक कामयाबी है.

बहरहाल, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद से पूरी दुनिया बाखबर है. भारत और अफगानिस्तान उसके लगातार शिकार बन रहे थे, अब ईरान भी पीडि़त है. अमेरिका भी  अफगानिस्तान में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है. दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर मारा था. यही नहीं, पाकिस्तान में छिपे आतंकियों को अमेरिका बराबर ड्रोन से निशाना बनाता रहा है. अपनी जमीन को दूसरे देशों में आतंक न फैलाने के लिए चौतरफा दबाव के बावजूद अब तक पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था, लेकिन पुलवामा हमले के बाद भारत की सैन्य कार्रवाई ने पाकिस्तानी आतंक के नैरेटिव को बदल दिया है. अब पाकिस्तान भारत में आतंक फैलाकर अपने परमाणु हथियारों की ओट में नहीं छिप सकता. उधर ईरान ने भी भारत की तरह पाकिस्तान में छिपे आतंकियों पर कार्रवाई की धमकी दे रखी है. अगर अब भी पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करता, तो उसे बिखरने से कोई नहीं बचा सकता, अमेरिका भी नहीं.