कृपाशंकर

कभी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाली भाजपा अब विपक्ष मुक्त सरकार की रणनीति पर काम कर रही है। एक के बाद एक राज्यों में भाजपा और एनडीए की सरकार बनती जा रही है। ऐसे में पार्टी रणनीतिकारों की नजर अब ओडिशा पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की प्राथमिकता अब ओडिशा ही है। 
भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में अपनी सरकार बनाना चाहती है, यदि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कभी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा अब देश में विपक्ष मुक्त सरकार बनाना चाहती है। जिस प्रकार से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस रणनीति पर काम कर रहे हैं उससे तो कम से कम यही लगता है। हाल ही में बिहार में जिस प्रकार से नाटकीय घटनाक्रम मेंं एनडीए की सरकार बनी, उसके बाद तो इस बात को और भी अधिक बल मिलता है। भाजपा के एक वरिष्ठ रणनीतिकार कहते हैं कि भाजपा की नजर अब उन राज्यों पर केंद्रित हो गई है जहां भाजपा की सरकार नहीं है। ओडिशा को भाजपा के लिए गेटवे के रूप में देखा जा रहा है जहां पार्टी बहुत मजबूत नहीं थी। बीते दिनों पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक, प्रधानमंत्री का रोड शो और अमित शाह का बार-बार ओडिशा का दौरा करना इसी रणनीति के तहत माना जा रहा है। पंचायत चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के बाद भाजपा के पंडित दावा कर रहे हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए माहौल तैयार करेगी।
ओडिशा भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं कि हमारा एजेंडा सभी 36,000 बूथों पर कार्यकर्ताओं को मजबूत करना है। राज्य में पार्टी का प्रदर्शन विस्तार के लिए नींव का काम करेगा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बसंत पांडा ने दावा किया कि प्रधानमंत्री का रोड शो राज्य में नए राजनीतिक युग का सूत्रपात करेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी पार्टी साल 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजद के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौती पेश करेगी। 2019 के चुनाव में भी देश की जनता नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है। लोगों को मोदी सरकार में विश्वास है और यह सरकार की गरीबोन्मुखी नीतियों के कारण है।
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों ने दो संकल्प फाइनल किए हैं जिन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनाया गया। सच तो यह भी है कि भुवनेश्वर में हुई दो दिवसीय बैठक के जरिये भाजपा ने अपने ‘मिशन ओडिशा’ को पूरा करने की शुरुआत की। पार्टी का मकसद अगले विधानसभा चुनाव में जीत का बिगुल फूंकने का है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह ने गुजरात, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, ‘पार्टी का स्वर्णिम युग सभी राज्यों में सरकार बनाने और पंचायत से लेकर संसद तक सफलता का परचम लहराने से ही आएगा। अभी सिर्फ 13 राज्यों में भाजपा की सरकार है लेकिन जब तक हर प्रदेश में हमारी सरकार नहीं होगी तब तक पार्टी का स्वर्णिम काल नहीं कहलाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘2014 में जब हम लोकसभा चुनाव जीते तो कहा जाने लगा कि भाजपा चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई है। इस साल विधानसभा चुनावों के बाद भी यही कहा गया लेकिन भाजपा का चरमोत्कर्ष आना अभी बाकी है। पार्टी देश के 60 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र और 70 फीसदी आबादी पर शासन कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक दो तिहाई बहुमत को बड़ी जीत बताते आ रहे हैं लेकिन भाजपा की जीत से विश्लेषण के पैमाने बदल गए हैं। लोग कहते हैं कि भाजपा का यह स्वर्णिम समय है लेकिन मैं कहता हूं कि जब तक केरल, बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं बन जाएगी तब तक हमारे लिए स्वर्णिम समय नहीं होगा। हमारी लगातार विजय से हमारे अंदर आलस्य का निर्माण न होने पाए बल्कि विस्तार की प्यास हमें परिश्रम की पराकाष्ठा की प्रेरणा दे। अभी तक यही माना जाता था कि भाजपा कांग्रेस को तो हरा सकती है लेकिन क्षेत्रीय दलों को नहीं हरा सकती। यूपी चुनाव के परिणाम ने इस धारणा को भी तोड़ दिया। हम चाहते हैं कि देश के हर प्रदेश के अलावा संसद से पंचायत तक भाजपा का शासन हो।’
बीते दिनों राज्य के गंजाम जिले के हुगुलपाटा गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था कि चूंकि मैं बूथ स्तर पर काम करता हूं, इसलिए मुझे जमीनी हकीकत पता है। इस मूल्यांकन के आधार पर मैं कह सकता हूं कि भाजपा ओडिशा में 2019 में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर अगली सरकार बनाएगी। अमित शाह ने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए एक विशेष कार्यक्रम ‘मो बूथ सबुथु मजबूत’ भी शुरू किया है। इसके तहत शाह के साथ धर्मेंद्र प्रधान, भाजपा संसदीय दल के नेता केवी. सिंहदेव और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इसी गांव में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक में भी हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के गृह नगर में आयोजित इस जनसभा में शाह ने कहा कि ओडिशा प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद विकास के मामले में पीछे रह गया है। हर घर में बिजली नहीं पहुंची है, न पेयजल आपूर्ति है, न शौचालय है और न ही लोगों के लिए रोजगार है। आखिर राज्य सरकार कर क्या रही है? उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों की तुलना में नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते तीन वर्ष में ओडिशा को केंद्र से अधिक फंड जारी किए। पार्टी से दलितों को जोड़ने के अभियान के तहत शाह ने एक दलित परिवार के घर भोजन भी किया।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि पार्टी ने 17 साल से सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के सहारे 2019 के विधानसभा चुनाव में ओडिशा की सत्ता में आने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से अस्पष्ट संकेत हैं कि पेट्रोलियम मंत्री और पार्टी के तेजतर्रार नेता धर्मेंद्र प्रधान उनकी नजर में सबसे आगे हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और कुछ अन्य नेता प्रधान को सक्षम मंत्री मानते हैं लेकिन पार्टी के कुछ नेता इसे खुशी-खुशी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। लंबे समय से भगवा पार्टी में निचले स्तर पर काम कर रहे और इस राज्य से भाजपा के एकमात्र सांसद एवं केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री जुएल उरांव को भी नेतृत्व को लेकर आपत्ति है। उनका मानना है कि राज्य में मुख्यमंत्री पद के पांच से सात दावेदार हो सकते हैं। उरांव के बयान को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह संभावना जताई जा रही है कि भाजपा धर्मेंद्र प्रधान को ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने के पक्ष में है। वहीं बीजद नेताओं का मानना है कि भाजपा के राज्य नेतृत्व की रणनीति को वे अच्छी तरह समझते हैं। उनका दावा है कि धर्मेंद्र प्रधान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की कद्दावर छवि की तुलना में कहीं नहीं टिक पाते हैं। बीजद से भाजपा में आए विजय महापात्रा भी पार्टी नेतृत्व के संकेतों से खुश नहीं लग रहे हैं। भाजपा के एक अन्य नेता दिलीप राय भी इन संकेतों को सही नहीं मान रहे हैं।
अप्रैल के दूसरे सप्ताह में भुवनेश्वर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक बुलाई गई थी। इस अधिवेशन ने प्रदेश में राजनीति की नई लकीरें खींचने की भरसक कोशिश की। तभी यह साफ हो गया था कि अमित शाह की नजर अब ओडिशा पर है। धर्मेंद्र प्रधान ने इस बैठक के लिए भुवनेश्वर पहुंचे अमित शाह का स्वागत करते हुए कहा था कि ओडिशा केंद्र की एनडीए सरकार की गरीब समर्थक नीतियों की प्रयोगशाला बनेगा। यहां से 2019 में केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार बनाने की रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। प्रधान का यह बयान करीब-करीब सभी प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ। साथ ही वह तस्वीर भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई जिसमें भाजपा अध्यक्ष को कमल के 74 फूलों की माला पहनाई गई थी। यह माला संकेत है कि भाजपा ने ओडिशा की 147 विधानसभा सीटों में 74 को जीतने का लक्ष्य रखा है।

हिंदुत्व पर नजर
यहां तक राजनीतिक निहितार्थों के लिहाज से सभी चीजें सामान्य लगती हैं लेकिन एक संकेत यह भी है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस बार पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी काफी तवज्जो दी गई। कार्यक्रम स्थल के भीतर मंच के पास ही लगे एक पोस्टर में मोदी-शाह की जोड़ी के साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी नजर आए। जबकि एक अन्य पोस्टर में वरिष्ठ नेताओं से घिरे हुए आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेते दिखाई पड़े थे। यानी अब यहां से राजनीतिक प्रतीकों-संकेतों को समझने की कोशिश करें तो निहितार्थ बदलते हैं। वह इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि आदिवासी बहुल ओडिशा में विकास से कहीं ज्यादा हिंदुत्ववादी नीतियों का असर पड़ता है। इस तथ्य को इससे भी आधार मिलता है कि बीते फरवरी में हुए जिला परिषद के चुनाव में भाजपा ने 854 में 297 सीटें जीतकर सत्ताधारी बीजू जनता दल (बीजद) के बाद दूसरा स्थान हासिल किया। काबिलेगौर यह है कि भाजपा ने ज्यादातर सीटें मयूरभंज जैसे उन आदिवासी बहुल इलाकों में जीती हैं जहां वह धर्म परिवर्तन के विरुद्ध लंबे समय से अभियान चला रही है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ओडिशा को भाजपा अपनी किन नीतियों की प्रयोगशाला बनाने जा रही है? कितना बना चुकी है और आगे कहां तक इच्छा रखती है? 