अभिषेक रंजन सिंह

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना के भांगड़ इलाके में पॉवर प्रोजेक्ट के लिए जारी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध- प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस की गोलीबारी से दो लोगों की मौत हो गई, जबकि इस घटना में दो दर्जन से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। मरने वालों की पहचान मफीजुल खान और आलमगीर के रूप में हुई है। निश्चित रूप से यह घटना नंदीग्राम की याद दिलाती है। जहां एक दशक पहले भूमि अधिग्रहण का विरोध कर तृणमूल कांग्रेस साढ़े तीन दशकों से पश्चिम बंगाल सत्ता पर काबिज वाममोर्चे की सरकार को सत्ता से बेदखल किया था। नंदीग्राम और सिंगुर में भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों को ममता बनर्जी का समर्थन मिला और देखते ही देखते यह आंदोलन एक जनांदोलन का रूप धारण कर लिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में जारी इस आंदोलन को बांग्ला साहित्यकार महाश्वेता देवी समेत साहित्य जगत से जुड़े लोगों के अलावा कलाकारों एवं रंगकर्मियों ने भी साथ दिया। नतीजतन नंदीग्राम और सिंगुर की घटना वाममोर्चे की सरकार के लिए पतन का कारण बना। पहली बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आईं ममता बनर्जी ने अपनी सरकार की प्राथमिकता भी तय कर दी। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनके शासन में किसानों की मर्जी के बगैर राज्य में एक इंच जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा।
सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने सबसे पहले हरिपुर में प्रस्तावित न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया। इस बाबत उनकी दलील थी कि इसमें किसानों की काफी जमीनें जाएंगी। इसके अलावा पर्यावरण भी इस परियोजना का विरोध कर चुके हैं। हालांकि, बीते दिनों राजधानी कोलकाता के निकट दक्षिण चौबीस परगना जिला स्थित भांगड़ गांव में पॉवर ग्रिड के लिए किसानों की इच्छा के बगैर भूमि अधिग्रहण किया गया। इसे लेकर स्थानीय किसानों में काफी आक्रोश है और उनका कहना है कि राज्य सरकार उनकी मर्जी के बगैर जमीनें हासिल करना चाहती है। जबकि स्थानीय किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं हैं। कभी मां, माटी और मानुष का नारा देने वाली तृणमूल कांग्रेस इसके उटल किसानों के आंदोलन के दमन के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। गौरतलब है कि पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट के लिए 16 एकड़ कृषि भूमि जबरन अधिग्रहीत की जा रही है। जिस इलाके में पॉवर ग्रिड के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध हो रहा है, वह इलाका नंदीग्राम की तरह मुस्लिम बहुल है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग छोटे काश्तकार हैं और उनकी जीविका का एकमात्र साधन खेती है। साथानीय किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं देंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि सिंगुर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण का विरोध कर सत्ता में आई ममता बनर्जी सरकार की नीयत दक्षिण चौबीस परगना गोलीकांड की घटना से साफ हो गई है। दस साल पहले जो काम वाम मोर्चे की सरकार ने किया था, उसी इतिहास को तृणमूल सरकार दोहरा रही है। पश्चिम बंगाल में किसानों पर हुई फायरिंग और निर्दोष लोगों की गिरफ्तारी से यह बात साफ हो गई है कि आने वाले दिनों में इस घटना की गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई देगी।
बात जहां तक पश्चिम बंगाल की विपक्षी पार्टियों का है तो इस घटना को लेकर भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियां भी राज्य सरकार पर हमलावर हैं। यह ममता बनर्जी का दूसरा कार्यकाल है। अपने चुनावी घोषणा पत्र में उन्होंने पश्चिम बंगाल विकसित प्रदेश बनाने की बात कही थी। अपने पहले कार्यकाल में उनकी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे विकास की उनकी अवधारणा मजबूत हो। लोगों का कहना है कि जिस दावे के साथ ममता सत्ता में आई थी, वे सब खोखले साबित हो रहे हैं। विकास दर के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति और अधिक खराब हो गई है। तृणमूल सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है एक बड़े जनादेश के साथ। ऐसे में ममता बनर्जी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश का आर्थिक विकास करना। पिछले दो वर्षों से वह कोलकाता में इस बाबत ‘इकोनॉमिक समिट’ भी करा रही हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य में अभी तक आर्थिक निवेश के नाम पर कोई बड़ी सहमति नहीं मिली है। सिंगुर की घटना के बाद आर्थिक एवं कारोबार जगत में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक नकारात्मक छवि बनी है। तमाम कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री बनर्जी इससे बाहर नहीं आ सकी हैं। शायद यही वजह है कि कभी खुद को किसानों का रहबर कहने वाली ममता बनर्जी और उनकी सरकार किसानों की मर्जी के बगैर राज्य में औद्योगिक इकाईयां लगाने पर आमादा है। लेकिन उनकी यह कोशिश कहीं उनके लिए गले की फांस न बन जाए और इस तरह उनके शासन का अंत भी वाममोर्चे की तरह न हो जाए।