संध्या द्विवेदी।

‘मैं क्रिस्चियन हूं। न हिंदू न मुस्लिम। इसी वजह से शायद मेरा वोट भी न एबीवीपी के लिये मायने रखता है और न हीं एनएसयूआई के लिये। चार साल से कैंपस में हूं। बी.ए. फर्स्ट इयर वोट किया था उसके बाद कभी नहीं। क्योंकि हम अल्ट्रा माइनोरटीज में आते हैं।  इसलिये हम होकर भी न हीं के बराबर हैं। फेलिक्स ने हंसते हुए कहा, हमारे वोट का कोई लोड नहीं लेता। मेरे बैच में 200 बच्चे हैं। इसमें क्रिस्चियन 10 बुद्धिस्ट तीन हैं, जैन भी 2-3 ही होंगे। इसलिये हमारे वोट मिलें न मिलें किसी को परवाह नहीं।’

फेलिक्स दिल्ली यूनिवर्सिटी के कालिंदी कॉलेज के छात्र हैं। फेलिक्स ने यह बातें यूनिवर्सिटी के भीतर सक्रिय स्टूडेंट विंग के परिप्रेक्ष्य में की हों। पर, सच तो यह है कि क्या राज्य और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी मुस्लिमों के अलावा दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय चर्चा में रहते हैं? हालिया चुनाव उत्तर प्रदेश में चल रहे हैं। लेकिन मुस्लिम ही अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में चर्चा में हैं। जबकि यहां सिख 0.30 फीसदी, जैन 0.11 फीसदी और अन्य 0.3 फीसदी हैं।

28 फरवरी यूनिवर्सिटी कैंपस में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान फेलिक्स भी वहां मौजूद थे। लेकिन जब उनसे इस विरोध प्रदर्शन के बारे में बातचीत शुरू की तो उन्होंने पहली ही लाइन में साफ कर दिया कि वह न्यूट्रल हैं। न एबीवीपी की तरफ न लेफ्ट की तरफ और न हीं एनयूएसआई की तरफ। उन्होंने बताया कि वह केवल यहां इसलिये आए हैं कि कैंपस के भीतर हो रहीं गतिविधियों से वह अनजान न रहें।

देश की राजनीति की चर्चा यहां होनी चाहिये मगर कैंपस के भीतर स्टूडेंट्स की जरूरतों पर भी चर्चा होनी चाहिये। मुझे याद नहीं कि कब मेरे सामने केवल और केवल स्टूडेंट हितों पर चर्चा हुई हो। और फिर अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिमों को साधने की ही कोशिश होती है दूसरे समुदाय जिन्हें आप ‘अल्ट्रा माइनोरटीज’ के तरह रख सकती हैं, उनका संख्या में कम होना किसी स्टूडेंट यूनियन को वोट बैंक की तरह नजर नहीं आता।

आपको एक उदाहरण देता हूं, ‘जब डीयू में चुनाव हुआ तो एबीवीपी अपने प्रचार में जुटी थी। एक पैंफलेट एबीवीपी के एक सदस्य ने मुझे पकड़ाया। मेरा नाम पूछा मैंने जैसे ही अपना नाम बताया उसने कहा, ओह क्रिस्चियन! तुम तो कभी एबीवीपी के समर्थक हो ही नहीं सकते। जबकि हमने कभी ऐसा सोचा भी नहीं। दूसरी तरफ एनएसयूआई प्रचार के दौरान ‘अल्ट्रा माइनोरटीज’ के पास कभी आने की जरूरत नही समझते। लेफ्ट के लिये भी मुस्लिम ही अल्पसंख्यक हैं।’

अब आप ही बताइये जब हमारे वोट की किसी को जरूरत ही नहीं तो हम आखिर क्यों किसी को वोट दें? मैं जानता हूं कि एक जिम्मेदार स्टूडेंट होने के नाते मुझे वोट देना मेरा कर्तव्य है। पर, जिन्हें हम वोट देते हैं, उनकी भी तो कुछ कर्तव्य हैं, क्या वह निभाते हैं?