गांधी के रास्ते पर चलने का दावा करने वाली राज्य सरकार ने उनकी कर्मभूमि को ही बिसार दिया. भितिहरवा इस बात का जीता-जागता उदाहरण है, जहां के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

साल 2019 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी. पिछले दो अक्टूबर से पूरे देश में इसे लेकर आयोजन हो रहे हैं. लेकिन, अगर गांधी के कार्यों का आकलन करना है, उसकी हकीकत से वाकिफ होना है, तो आपको भितिहरवा की ओर भी देखना होगा. बेतिया से 65 किलोमीटर दूर स्थित भितिहरवा आश्रम का निर्माण गांधी जी ने खुद किया था.1917 में चंपारण सत्याग्रह के जमाने की वह खपरैल कुटिया आज भी मौजूद है, जिसे बचाने के लिए मूल कुटिया के ऊपर एक शेड डाल दिया गया है. आश्रम की इस कुटिया में गांधी और कस्तूरबा द्वारा इस्तेमाल की गई घंटी, टेबल और चक्की संग्रहित हैं. 1951 में गांधी स्मारक निधि का गठन हुआ और आश्रम का संचालन उसी के द्वारा होने लगा. २ अक्टूबर 1970 को निधि भंग होने के बाद आश्रम की देखभाल स्वतंत्रता सेनानी एवं मुखिया मुकुटधारी प्रसाद चौहान करने लगे. पूरे देश में चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मनाया गया, करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन जो आश्रम इस सत्याग्रह का एक अहम केंद्र रहा, वह आज भी देश-दुनिया से कटा हुआ है. सौ साल पहले गांधी और उनके साथी ट्रेन से इस आश्रम और आस-पास के इलाकों में आते-जाते थे, लेकिन आज आलम यह है कि वह ट्रेन मार्ग पटरी सहित उखड़ चुका है. गांधी ने भितिहरवा गांव की बदहाली देखकर यहां काम शुरू किया था. उनका सबसे ज्यादा जोर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर रहा, लेकिन आज यह इलाका तीनों ही मामलों में सबसे ज्यादा पिछड़ा हुआ है. यहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं.

स्थानीय लोग बताते हैं, नीतीश कुमार आश्रम में कई बार आए, उन्होंने वादे भी किए, लेकिन पटना लौटते ही भूल गए. नीतीश सरकार ने इसे आदर्श पंचायत घोषित किया था. जबकि सच्चाई यह है कि भितिहरवा कहीं से भी आदर्श नजर नहीं आता यानी गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान आदर्श ग्राम पंचायत का जो सपना देखा, वह आज भी अधूरा है. आवागमन की कोई सुविधा न होने के बावजूद हर साल यहां ढाई-तीन सौ देशी-विदेशी पर्यटक आ जाते हैं. इन दिनों सुशासन बाबू अपने हर भाषण में सात सामाजिक पापों की चर्चा करते हैं. जी हां, सात सामाजिक पापों की यह सूची गांधी जी ने अपने किसी अंग्रेज मित्र को भेजी थी. फिर उसे 22 अक्टूबर 1925 के ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित किया था. उक्त सात सामाजिक पाप हैं- सिद्धांत के बिना राजनीति, कर्म के बिना धन, आत्मा के बिना सुख, चरित्र के बिना धन, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवीयता के बिना विज्ञान और त्याग के बिना पूजा. नीतीश सरकार ने उक्त सामाजिक पाप स्कूलों की दीवारों पर लिखवाने का फैसला किया है.

भ्रष्टाचार के दलदल में आश्रम

भितिहरवा आश्रम में भ्रष्टाचार की कई कहानियां हैं. आश्रम परिसर में दूरदराज से आने वाले मेहमानों के ठहरने के लिए ‘गेस्ट हाउस’ है, जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने बिहार का राज्यपाल रहते हुए किया था. लेकिन, यह गेस्ट हाउस साल भर बाद ही खस्ताहाल हो गया. दीवारों और छतों का प्लास्टर झड़ रहा है. यहां दो बार गेस्ट हाउस बनाकर तोड़े जा चुके हैं. 1991 में जब पर्यटन भवन बनकर तैयार हुआ, तो राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री हिंद केसरी यादव जांच के लिए आए. उन्होंने मजबूती देखने के लिए एक दीवार पर लात मारी, तो वह दरक गई. इस पर उसे तोडकऱ फिर से बनाने का आदेश हुआ. इस तरह इमारत दो बार बनी और टूटी. तीसरी बार भी इसे तोडऩे की तैयारी चल रही है. 2013 में जब नीतीश यहां आए थे, तो उन्होंने डीएम से इसे तोडऩे को कहा था. इस बार भी उन्होंने डीएम को यही आदेश दिया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.

नीतीश ने 20 नवंबर 2017 को यहां उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी, शिक्षा एवं विधि मंत्री कृष्ण नंदन प्रसाद वर्मा, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री मदन सहनी, गन्ना उद्योग मंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद, पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार, क्षेत्रीय सांसद सतीश चंद्र दूबे एवं विधायक भागीरथी देवी की मौजूदगी में गांधी सर्किट के अंतर्गत बहुउद्देशीय भवन का शिलान्यास किया था, जिसकी परियोजना लागत करीब 44 करोड़ रुपये बताई गई थी, लेकिन आश्रम की देखरेख करने वालों को भी पता नहीं कि उक्त बहुउद्देशीय भवन कब और कहां बनेगा.

मलबा बनी स्कूल की इमारत

गांधी 1917 में इस आश्रम में लोगों का देसी इलाज करते थे, लेकिन आज गांव के लोगों को इलाज के लिए नरकटियागंज या गौनाहा जाना पड़ता है. कई मरीज तो रास्ते में दम तोड़ चुके हैं. गांधी यहां स्वच्छता अभियान चलाते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छता अभियान यहां तक नहीं पहुंच सका. आश्रम के आस-पास के लोग खुले में शौच जाते हैं. गांधी ने 20 नवंबर 1917 को यहां एक स्कूल शुरू किया, जो उनके द्वारा चंपारण में खोला गया दूसरा स्कूल है. इससे पहले उन्होंने 13 नवंबर 1917 को बड़हरवा लखनसेन में पहला नि:शुल्क विद्यालय खोला था और फिर 17 जनवरी 1918 को मधुबनी में तीसरे स्कूल की स्थापना हुई. भितिहरवा वाले स्कूल की खासियत यह है कि यहां खुद कस्तूरबा बच्चों की शिक्षा की देखरेख करती थीं. गांधी स्वयं महीनों रहकर सफाई एवं स्वास्थ्य कार्य करते रहे. यहां अध्यापन के लिए गांधी ने बंबई प्रांत के वकील सदाशिव लक्ष्मण सोमण, बालकृष्ण योगेश्वर पुरोहित और डॉ. देव को लगाया. लेकिन आज पूरी इमारत कूड़े के ढेर में तब्दील हो गई है.

गांधी 1917 में इस आश्रम में लोगों का देसी इलाज करते थे, लेकिन आज गांव के लोगों को इलाज के लिए नरकटियागंज या गौनाहा जाना पड़ता है. कई मरीज तो रास्ते में दम तोड़ चुके हैं. गांधी यहां स्वच्छता अभियान चलाते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छता अभियान यहां तक नहीं पहुंच सका. आश्रम के आस-पास के लोग खुले में शौच जाते हैं. गांधी ने 20 नवंबर 1917 को यहां एक स्कूल शुरू किया, जो उनके द्वारा चंपारण में खोला गया दूसरा स्कूल है.

इस स्कूल के बारे में गांधी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, लोगों ने भितिहरवा में पाठशाला का जो छप्पर बनाया था, वह बांस और घास का था. किसी ने रात को उसे जला दिया. संदेह तो आस-पास के निलहों के आदमियों पर था. फिर से बांस और घास का मकान बनाना मुनासिब मालूम नहीं हुआ. यह पाठशाला श्री सोमण और कस्तूरबा के जिम्मे थी. श्री सोमण ने ईंटों का पक्का मकान बनाने का निश्चय किया और उनके स्व-परिश्रम की छूत दूसरों को लगी, जिससे देखते-देखते ईंटों का मकान बनकर तैयार हो गया और फिर से मकान जल जाने का डर न रहा. यह स्कूल पहले आश्रम में ही संचालित होता था, बाद में इसे पास ही शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन पहली बार जिस खपरैल में गांधी का यह स्कूल शुरू हुआ था, उसे आज भी सुरक्षित रखा गया है. गांधी ने आत्मकथा में लिखा, मैं कुछ समय तक चंपारण नहीं जा सका और जो पाठशालाएं वहां चल रही थीं, वे एक-एक कर बंद हो गईं. साथियों और मैंने कितने हवाई किले रचे थे, पर कुछ समय के लिए तो वे सब ढह गए. मैं तो चाहता था कि चंपारण में शुरू किए गए रचनात्मक काम जारी रखकर लोगों में कुछ वर्षों तक काम करूं, अधिक पाठशालाएं खोलूं और अधिक गांवों में प्रवेश करूं. क्षेत्र तैयार था. पर ईश्वर ने मेरे मनोरथ प्राय: पूरे होने ही नहीं दिए. मैंने सोचा कुछ था और दैव मुझे घसीट कर ले गया एक दूसरे काम में.

ग्रामीणों ने सहेजी कस्तूरबा की याद

27 अप्रैल 1917 को महात्मा गांधी मोतिहारी से नरकटियागंज आए थे और फिर पैदल ही शिकारपुर एवं मुरलीभहरवा होते हुए भितिहरवा गांव पहुंचे थे. उस दौरान कस्तूरबा गांधी ने महिला शिक्षण का कार्य गांधी के चंपारण से चले जाने के बाद छह महीने तक जारी रखा था. कस्तूरबा की कोशिशें देखकर ग्रामीण इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनकी स्मृति बरकरार रखने के लिए उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा आज तक जीवित रखी और उसे समृद्ध करने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं. भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम के आस-पास के दर्जनों गांवों की लड़कियों के लिए कोई स्कूल नहीं था. किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि वे अपनी बेटियों को पढऩे के लिए बेतिया या नरकटियागंज भेज सकें. उनकी इस विवशता को गांधी और कस्तूरबा ने सौ साल पहले समझते हुए लड़कियों के लिए शिक्षण कार्य शुरू कर दिया था. स्थानीय ग्रामीण गोविंद प्रसाद, बैजनाथ प्रसाद चौहान, बैजनाथ प्रसाद यादव, नंदलाल चौहान, मूढोडिया, मेघनाथ गुप्ता, अनिरूद्ध चौरसिया एवं रघुनाथ साह ने अपनी जमीन बिहार सरकार को दान में दी. इन भू-दाताओं का सपना था कि इनकी जमीन पर कस्तूरबा की स्मृति में कन्या विद्यालय बने.

खुद बनवाए विद्यालय भवन

मुख्यमंत्री नीतीश विभिन्न मंचों से कहते रहे हैं कि बिहार सरकार गांधी के बताए रास्तों पर चल रही है, लेकिन सच इससे परे है. कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय के सचिव दिनेश प्रसाद यादव कहते हैं, ग्रामीणों द्वारा जमीन देने के बावजूद स्कूल भवनों के लिए कहीं से जब कोई धनराशि नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से स्कूल भवनों का निर्माण शुरू करा दिया. यादव बताते हैं कि दीपेंद्र वाजपेयी के नेतृत्व में स्थानीय पढ़े-लिखे युवकों ने नि:शुल्क अध्यापन शुरू कर दिया. बाद में स्कूल संचालन के लिए एक समिति भी बनाई गई. ग्रामीणों ने अपने पूर्वजों के सपनों को पंख दे दिए. आज स्कूलों में न केवल लड़कियां पढ़ रही हैं, बल्कि उनकी संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है. बकौल यादव, लड़कियों को शिक्षा तो मिल रही है, लेकिन हम उन्हें सुविधा नहीं दे पाते. छात्राओं के साथ सबसे बड़ी समस्या उनके परीक्षा फॉर्म भरने की है. स्कूल के पास मान्यता नहीं है, जिसके चलते यहां की छात्राओं को परीक्षा फॉर्म भरने में परेशानी होती है.

गांधी की कर्मभूमि भितिहरवा की बेटियां अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर अब आंदोलन करने के मूड में हैं. कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय की छात्राओं ने मुख्यमंत्री को खुला पत्र लिखकर स्कूल को तुरंत मान्यता देने और पोशाक, छात्रवृत्ति एवं साइकिल सहित अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की मांग उठाई है. बाल संसद की प्रधानमंत्री कौशकी कुमारी ने बताया, हमारे विद्यालय में 400 लड़कियां नि:शुल्क पढ़ाई कर रही है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने के बावजूद सरकार की तरफ से आज तक कोई सहयोग नहीं मिला. इस वजह से लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ रही हैं. हमारी उच्च शिक्षा के लिए पूरे प्रखंड में यही एक शिक्षण संस्थान है. बाल संसद की एक अन्य छात्रा ने कहा, 20 नवंबर 2017 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विद्यालय को मान्यता दिलाने का आश्वासन दिया था, लेकिन वह शायद अपना वादा भूल गए. छात्राओं ने कहा, अगर सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी, तो दो अक्टूबर से हम सभी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे.