संध्या द्विवेदी

“हमें कालेज के भीतर इतना खतरा नहीं है जितना की बाहर है। श्रीनगर के स्थानीय लोग जो कालेज का हिस्सा नहीं हैं, उनके निशाने पर लगातार गैर कश्मीरी छात्र-छात्राएं रहते हैं। कालेज से कुछ दूर एक मस्जिद है। जहां हर शुक्रवार को लाउडीस्पीकर से घोषणा की जाती है कि कुछ बाहरी लोग यहां हैं। वह हमारी मस्जिदें तोड़कर मंदिर बनाना चाहते हैं। हमें उन्हें बाहर करना है। कई बार जुम्मे की नमाज अदा करने के बाद पत्थरबाजी भी यहां से होती है।”

एनआईटी, श्रीनगर में पढ़ने वाले एक छात्र ने यह बात कही

एनआईटी श्रीनगर के गैर कश्मीरी छात्र कालेज परिसर छोड़कर दिल्ली के जंतर मंतर में अपनी आवाज उठाने आ पहुंचे हैं। हालांकि एनआईटी शिफ्ट करने की उनकी मुख्य मांग को मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने अस्वीकार कर दिया है। उनका तर्क है कि अगर ऐसा किया गया तो इससे संदेश जाएगा कि कश्मीर वाकई भारत का हिस्सा नहीं है। मगर बिहार राज्य के प्रिंस, अमरेश, समेत कई छात्रों का कहना है कि हम तो इसके लिए भी तैयार हैं कि हमें कुछ महीनों के लिए कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए ताकि मामला ठंडा हो जाए उसके बाद हम दोबारा श्रीनगर में आ जाएंगे। फिलहाल जैसे हालात वहां हैं, उनसे हम बेहद डरे हुए हैं। बातची के दौरान एक साथ कई छात्र कहते हैं कि हमें जान का खतरा है। वह पूछते हैं कि ऐसे में क्या वहां पढ़ाई संभव है?  राजस्थान के एक छात्र ने साफ साफ कहा कि कई टीचर्स हमें खुलेआम धमकी देते हैं। वहां की एक फैकल्टी यूसरा बांदे ने तो यह धमकी खुलेआम दी है “2019 से पहले आप लोग यहां से पास आउट नहीं हो सकेंगे। वह भी तब जब 2019 का वर्ड कप पाकिस्तान जीतेगा।” वहां के स्थानीय स्टूडेंट और फैकल्टी साफ-साफ कहते हैं कि हमें पाकिस्तान की जीत से ज्यादा खुशी भारत के हारने की होती है। घटना वाले दिन यहां के फैकल्टी शोएब मलिक ने पाकिस्तान का झंडा फहराया। अब आप ही बताएं क्या ऐसे में हमारा करियर या फिर हम सुरक्षित हैं।

बिहार के बेगुसराय जिले के अमरेश ने बताया कि स्थानीय लोग गैर कश्मीरियों से कितनी नफरत करते हैं इसका एक हालिया उदाहरण उस वक्त सामने आया जब लाठीचार्ज में घायल छात्रों को श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती किया गया। एक छात्र जिसका एक हाथ लाठीचार्ज में बुरी तरह से चोटिल था, जो डाक्टर उसका इलाज कर रहा था उसने उस छात्र का दूसरा हाथ मरोड़ते हुए कहा कि अगर ऐसी हरकतें फिर कीं तो दूसरा हाथ भी तोड़ दिया जाएगा। कश्मीर यहां के लोगों का है, बाहरियों का नहीं।

इससे पहले एक अप्रैल को भी कालेज की कैंटीन के स्टाफ ने पत्थरबाजी की थी। जब इस कैंटीन का लाइसेंस रद्द करने की हमने डायरेक्टर से मांग की तो लाइसेंसे रद्द करना तो दूर की बात उन्हें उनकी इस हरकत के लिए फटकार तक नहीं लगाई गई।

nit-flagएनआईटी श्रीनगर के ही एक दूसरे छात्र अमित ने कहा “इस बार तो हमने केवल रिएक्शन दी है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हुई है। भारत विरोधी नारे हमेशा लगते रहते हैं। 15 अगस्त को हम झंडा फहरा नहीं सकते। झंडा रखने क इजाजद तक नहीं है हमें। 31 मार्च को जब वेस्टंडीज के हाथों भारत की हार हुई तो वहां के छात्रों ने हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए। खूब नाचे गाए। रोजाना कालेज का मेन गेट साढ़े आठ बजे बंद हो जाता था लेकिन उस दिन साढ़े दस बजे तक खुला रहा।” एक अप्रैल को जब कालेज में पाकिस्तान का झंडा फहराया गया तब हमने अपने हाथों से बनाकर भारत के झंडे को फहराया। यहां के स्थानीय छात्रों ने दो बजे के करीब झंडा फहराया, उसकी प्रतिक्रिया में हमने करीब सवा तीन बजे तिरंगा बनाकर फहराया। अपनी बेड सीट्स, कागज की सीट्स को रंगकर झंडा बनाया। जब उनसे कहा गया कि महज एक डेढ़ घंटे में आपने झंडा बना लिया। तो उन्होंने कहा कि इंजीनियर हैं, मैडम। दिमाग लगाना हमें आता है। भारतीय झंडा भले हमारे पास नहीं था, मगर इसे बनाने का तरीका तो दिमाग में था ही। उस दिन दरअसल एक दिन का गुस्सा नहीं निकला था, बल्कि सालों से देश के खिलाफ सुने जा रही बातों और किए जा रहे अपमान के कारण पल रहे वर्षों का गुस्सा बाहर आया था। अमित ने आगे अपनी बात पूरी करते हुए कहा कि बिहार, यूपी, राजस्थान जैसे राज्यों से हम आते हैं, जहां स्कूल में पढ़ते वक्त पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी को खूब धूमधाम से मनाया जाता है। हम जब चाहें भारत माता की जय बोल सकते हैं। देशभक्ति को गिरी हुई नजरों से नहीं देखा जाता है। लेकिन यहां लगातार देश का अपमान सहने के लिए हमें मजबूर होना पड़ा। हिंदुस्तानी होने के कारण अपमान सहना मानों हमारी शिक्षा पाने की एक शर्त बन गई थी। फिर कहता हूं, यह गुस्सा एक दिन का नहीं बल्कि सालों की नाराजगी का नतीजा है।

करीब खड़े दूसरे छात्र ने कहा कि एक बार वहां की फैकल्टी का रिव्यु तो करना चाहिए, न जाने कितने टीचर्स हैं जिनके तार आतंकियों से जुड़े हैं, एकाध तो सरेंडर्ड आतंकी हैं। चलिए हम स्मृति ईरानी जी से सहमत हैं कि श्रीनगर एनआईटी को वह इसलिए शिफ्ट नहीं कर सकतीं क्योंकि इससे संदेश जाएगा कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है लेकिन कुछ सवाल तो उठते हैं न कि फिर वहां की फैकल्टी केवल स्थानीय क्यों है? फैकल्टी के बैकग्राउंड पर किसी की नजर क्यों नहीं जाती?

फिलहाल छात्र जंतर मंतर पर हैं। उनका कहना है कि जब तक इस समस्या का हल नहीं निकलेगा हम चुपाचाप विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे। वहां के सभी छात्रों ने साफ कहा कि हम किसी खास राजनीतिक पार्टी को अप्रोच नहीं करेंगे। हम जो भी कहेंगे अपनी सरकार से कहेंगे।