रमेश कुमार ‘रिपु’

तीन राज्यों में एटीएस के छापे से खुलासा हुआ कि पैसे के लिए शिक्षित युवक भी देश के साथ गद्दारी करने से परहेज नहीं करते। एटीएस (आतंक निरोधी दस्ता) के शिकंजे में फंसे युवक पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए फंडिंग का काम करते थे। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आतंकी संगठन के लिए फंडिंग करने वाले पकड़े जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में मनीन्द्र और संजय देवांगन पिछले साल पकड़े गए थे। यूपी एटीएस ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, लखनऊ, प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश के रीवा और बिहार के गोपालगंज में 24 मार्च को एक साथ कार्रवाई करते हुए ऐसे कुल दस लोगों को गिरफ्तार किया। इस कार्रवाई के दौरान यूपी एटीएस को रीवा जिले के सेमरिया थाना क्षेत्र के बीड़ा गांव से भी लश्कर-ए-तैयबा के लिए फंडिंग करने वाले का सुराग मिला।
24 मार्च को यूपी एटीएस ने जब रीवा पुलिस को जानकारी दी तो स्थानीय पुलिस को यकीन ही नहीं हुआ। चांैकाने वाली बात यह है कि जिस घर से इस काम को अंजाम दिया जा रहा था उस घर में रहने वाले दूसरे लोगों को भी इसकी जानकारी नहीं थी। उमा प्रताप सिंह उर्फ सौरभ सिंह यह काम बखूबी कर रहा था। जबकि 2014 में पुलिस ने उसे पाकिस्तान से आने वाले फंड को दूसरे के खाते में डलवाने के आरोप में पकड़ा भी था। इस संगीन मामले में वह दो साल तक जेल में रहा था लेकिन उसके जेल से छूटने के बाद पुलिस ने कभी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया कि अब वह करता क्या है। यही वजह है कि उसने दोबारा अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया और आतंकी संगठन के लिए फंडिंग का काम करने लगा।

आईएसआई का एजेंट
उमा प्रताप ने एटीएस को बताया कि 2016 में जम्मू-कश्मीर में पकड़े गए आईएसआई एजेंट तरसेम लाल, सेना की गुप्त सूचनाएं आतंकियों तक पहुंचाने के आरोपी सतविंदर और दादू से भी उसके तार जुड़े हैं। बीते वर्ष सतना में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने वाला बलराम सिंह पकड़ा गया था। बलराम ने ही उमा की पहचान आईएसआई के एजेंटों से कराई थी। उसके दो साथी अभी भी फरार हैं। बलराम भी टेरर फंडिंग का काम करता था। बलराम की गिरफ्तारी के बाद खुलासा हुआ था कि बीड़ा निवासी संजय सिंह, प्रकाश सिंह, अनल सिंह, रज्जन तिवारी और अंकित पांडेय भी इस काम में उसके सहयोगी थे।

बीस फीसदी मिलता था कमीशन
उमा ने यूपी एटीएस को बताया कि वह गांव के गरीब लोगों को पांच सौ रुपये का लालच देकर उनका बैंक अकाउंट नंबर लेता था। उस अकाउंट में पाकिस्तानी एजेंट से रुपये मंगवाता था और पैसे आने के बाद पाकिस्तानी एजेंट जिसके खाते में पैसा डलवाने को कहते थे उसके खाते में डलवाता था। पाकिस्तानी एजेंट इन रुपयों को भारत विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल करते थे। आरोपी ज्यादातर पैसा कश्मीर में रहने वालों के खाते में डलवाता था जो वहां आतंकवादियों की मदद किया करते थे। उमा को कुल रकम का बीस फीसदी कमीशन मिलता था। एटीएम फ्रॉड और लॉटरी फ्रॉड द्वारा पाकिस्तानी एजेंट उमा के बताए खाते में राशि पहुंचाते थे। राशि खाते में पहुंचने के बाद उमा के मोबाइल पर मैसेज आता था। मैसेज के आधार पर वह उस खाते में राशि डालता था। अब तक उमा करीब दस लाख रुपये से अधिक ट्रांसफर कर चुका है। वह लगभग सभी बैंकों के खातों का इस्तेमाल टेरर फंडिंग के लिए करता था। उसके पास से बड़ी संख्या में बैंकों के पासबुक, एटीएम कार्ड, जमा पर्ची आदि बरामद किए गए।
पुलिस को उमा की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है कि इतना बड़ा नेटवर्क वह अकेले ही संचालित करता था। पुलिस आरोपी के मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवा रही है ताकि पता लगाया जा सके कि उसके साथ और कौन-कौन लोग शामिल हंैं। उमा के छह भाई हैं। वह सामान्य किसान परिवार से है। घर के किसी भी सदस्य को उसके कामों की कोई जानकारी नहीं है। आरोपी ने ठाकुर रणमत सिंह कॉलेज से एमकॉम किया हुआ है।

टेरर फंडिंग का गढ़ रहा है विंध्य
उमा प्रताप सिंह के साथ मिलकर कितने लोग टेरर फंडिंग का काम करते थे, इसका खुलासा होना बाकी है। पिछले साल एटीएस ने भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और सतना में छापे मारकर 13 संदिग्ध जासूसों से बैंकों के 60 खाते, फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज व फर्जी नामों से लिए गए सैकड़ों सिम बरामद किए थे। जासूसी के काम में टेलीफोन एक्सचेंज की मदद ली जा रही थी। बदले में पाकिस्तान से हवाला के जरिये रकम पहुंचाई जाती थी। यह रकम सतना के बलराम सिंह के जरिये प्रदेश में फैले पूरे नेटवर्क तक पहुंचती थी। जम्मू में सतविंदर और दादू के पकड़े जाने के बाद ही पता चला कि उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मध्य प्रदेश से भी टेरर फंडिंग के तार जुड़े हैं। खुफिया एजेंसी, जम्मू पुलिस और उत्तर प्रदेश एटीएस से मिली सूचनाओं के आधार पर जांच पड़ताल की गई तो एक-एक करके मध्य प्रदेश में टेरर फंडिंग करने वाले पकड़े गए। जासूसी का भंडाफोड़ होने की भनक लगते ही बलराम का भाई विक्रम अपने साथियों के साथ आया और सतना स्थित बलराम के किराये के घर में रखा उसका सामान एक वाहन में भरकर ले गया। पुलिस को इसकी खबर तक नहीं लगी।

पाकिस्तान से आते थे फोन
मध्य प्रदेश के एटीएस अधिकारियों का कहना है कि बलराम के पास पाकिस्तान से मोबाइल फोन पर कॉल आते थे। एक वर्ष में करीब ढाई सौ पाकिस्तानी कॉल उसने रिसीव किए। बलराम वर्ष 2010 में दुबई गया था और वहां ड्राइवर के रूप में नौकरी करता रहा। एटीएस की पड़ताल के मुताबिक वर्ष 2013 में वह आईएसआई के संपर्क में आया। उसी के बाद उसने आईएसआई में अपनी पैठ बढ़ा ली। हवाला के जरिये पाकिस्तान से अपने खातों में पैसा मंगाकर वह कश्मीर में आईएसआई एजेंटों के खाते में डालता था। यूपी एटीएस के आईजी असीम अरुण ने टेरर फंडिंग में शामिल लोगों की गिरफ्तारी पर ओपिनियन पोस्ट को बताया, ‘उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो लोग आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में थे। इन लोगों का काम था भारत में फर्जी बैंक अकाउंट खोल कर अन्य आतंकियों के खाते में पैसा भेजना। इस बात की सूचना एटीएस को मिलने के बाद 24 मार्च को एटीएस टीम ने यूपी और एमपी में छापा मारा। हिरासत में लिए गए आरोपियों ने पैसा ट्रांसफर करने और अवैध खाते खोलने की बातें स्वीकार ली हैं। जिन खातों में और जिन खातों से दूसरे खातों में राशि डाली गई है उन खातों की जांच की जा रही है। इस मामले में और भी खुलासे हो सकते हैं।’

योगी के शहर से टेरर फंडिंग
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर से टेरर फंडिंग की आशंका पर लखनऊ एटीएस की टीम को मोबाइल के थोक करोबारी की फर्म नईम एंड संस के तीन प्रतिष्ठानों पर 24 मार्च को छापा मारने पर 50 लाख रुपये मिले। साथ ही लैपटॉप, कंप्यूटर हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव और कई दस्तावेज जब्त किए। नईम की मोबाइल की तीन दुकानें भी सील कर दी गई हैं। फर्म के मालिक नईम अहमद के दोनों पुत्र नसीम और बाबी के अलावा खोराबार और शाहपुर क्षेत्र से तीन अन्य लोगों को पांच दिनों की ट्रांजिट रिमांड पर लेकर एटीएस ने गहराई से पूछताछ की। कई चौंकाने वाली जानकारी मिलने से एटीएस हैरान है। पकड़े गए आरोपी मुशर्रफ, सुशील व मुकेश ने एटीएस को बताया कि शहर भर में दर्जनों संदिग्ध छिपे हुए हैं जो दिखावे के लिए छोटे-मोटे काम की आड़ में आतंकी गतिविधियों से लेकर टेरर फंडिंग तक का काम करते हैं। इतना ही नहीं, सभी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से वाट्सऐप गु्रप पर कोड भाषा में बात करते हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के पृथ्वीगंज निवासी संजय सरोज और नीरज मिश्रा को आतंकी फंडिंग में जेल भेज दिया गया है। संजय के पास से बरामद 27 बैंक पासबुक के आधार पर अन्य लोगों के भी खाते पुलिस खंगाल रही है। शक है कि उसने ओमप्रकाश वनवासी के अलावा कुछ और लोगों के खाते से आतंकियों को फंडिंग की है। ऐसा माना जा रहा है कि एटीएस बैंक में पिछले दो सालों के भीतर खोले गए खातों की बारीकी से जांच कर रही है। ओमप्रकाश वनवासी, निवासी राजापुर के नाम से खुलवाए गए खाते में नेपाल और बांग्लादेश से रुपये मंगाकर टेरर फंडिंग की गई थी। ओमप्रकाश के नाम से खुले खाते में सुधाकर तिवारी को गारंटर बनाया गया था।

वीडियो कॉलिंग और सोशल मीडिया को तरजीह
टेरर फंडिंग में शामिल आरोपी आपस में बात करने के लिए फोन कॉल से ज्यादा इंटरनेट व वीडियो कॉलिंग को ज्यादा तरजीह दिया करते थे ताकि किसी के हाथ कोई सुराग न लग सके। पूछताछ के दौरान आरोपियों ने एटीएस के सामने कबूला है कि वे टेरर फंडिंग के लिए सोशल मीडिया के जरिये लड़कों को टारगेट करते थे। इनके शिकंजे में फंसने वाले ज्यादातर बेरोजगार युवक या फिर ऐसे हैं जिनका छोटा-मोटा आपराधिक रिकॉर्ड है। यदि कोई मुस्लिम युवक उनके जाल में फंसता था तो उसे जेहाद और पैसे का लालच देकर टेलीग्राम करते थे कि उससे मोबाइल ऐप पर बात करेंगे।
ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में यूपी एटीएस के आईजी असीम अरुण ने बताया, ‘गिरफ्तार किए गए लोग ऐसा दिखाते थे कि वे किसी टेलीकॉम कंपनी के लिए काम कर रहे हैं। लाहौर से लश्कर के आतंकी फोन और इंटरनेट के जरिये इन लोगों के संपर्क में रहते थे। वे उन्हें फर्जी नाम से अकाउंट खोलने के लिए बोलते थे। वे यह भी बताते थे कि किस खाते में कितना पैसा डालना है। भारतीय एजेंटों को इसके बदले 10 से 20 फीसदी कमीशन मिलता था।’
पकड़े गए आरोपियों से पुलिस ने 42 लाख रुपये नगद, 6 स्वैप मशीनें, मैग्नेटिक कार्ड रीडर, तीन लैपटॉप, मोबाइल फोन, कई एटीएम कार्ड, एक देशी पिस्टल, 10 कारतूस, बड़ी संख्या में अलग-अलग बैंकों की फर्जी पासबुक और डाटा चोरी करने के उपकरण मिले। गिरोह के तार नेपाल से भी जुड़े हैं। पाकिस्तान से निर्देश देने वाले आतंकियों की पहचान की कोशिश की जा रही है। कुछ आरोपियों को पाकिस्तान कनेक्शन की जानकारी नहीं थी। पाकिस्तानी आतंकियों से सीधा संपर्क करने वाले आरोपी जानते थे कि वे राष्ट्र विरोधी काम कर रहे हैं। हालांकि बाकी लोगों को बताया गया था कि वे लॉटरी से जुड़े गैरकानूनी पैसे का लेनदेन करवा रहे हैं। एटीएस का अनुमान है कि भारत, नेपाल, कतर और पाकिस्तान के बीच इस नेटवर्क के जरिये करीब 10 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ है। पिछले साल सतना से गिरफ्तार बलराम पर आरोप है कि उसने सतना और रीवा के 28 बैंक खातों से आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों को 15 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम पहुंचाई थी। 24 मार्च के छापे में एटीएस ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से जिन दस लोगों को गिरफ्तार किया है उनमें प्रतापगढ़ का संजय सरोज, नीरज मिश्र, लखनऊ का साहिल मसीह, कुशीनगर का मुशर्रफ अंसारी, आजमगढ़ का सुशील राय, गोरखपुर का दयानंद यादव, नईम अहमद, अरशद नईम, रीवा का उमा प्रताप सिंह और गोपालगंज का जलेश्वर प्रसाद शामिल है।
मनोचिकित्सक संजय शर्मा कहते हैं, ‘नई शिक्षित पीढ़ी बेरोजगार रहना पसंद नहीं करती। उसे लगता है कि कहीं से भी पैसे मिलने चाहिए। यदि अपराध के जरिये ही कुछ रुपये मिलते हैं तो वह पैसे के लिए हाथ बढ़ा देती है। हालांकि वे जानते हैं कि जो कर रहे हैं जुर्म है। फिर भी ऐशो आराम की पूर्ति के लिए वे देशभक्ति के जज्बे को भी नजरअंदाज कर देते हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। यदि उनके व्यवहार और रहन-सहन में तब्दीली दिखती है या फिर ज्यादा गुमसुम रहते हैं तो उनसे बात करनी चाहिए।’