ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बााबू राम भट्टाराई के नेतृत्व में गठित न्यू फोर्स नामक नया राजनीतिक दल संवैधानिक रूप से उपेक्षित नेपाल के तराई में राजनीति की नई धार साबित होगी। इसी के साथ तराई में मधेसियों के नाम से राजनीति चमकाने वालों के बियावान में चले जाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। भट्टाराई के नया राजनीतिक दल बना लेने से पूर्व माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के लिए बड़ा झटका है ही, मधेसी दलों में भी खलबली मच गई है।
भट्टाराई चार माह पहले प्रचंड का साथ छोड़ कर अलग हो गए थे। उन्होंने इसके पीछे संविधान में तराई के लोगों की उपेक्षा बताया था। वे न केवल प्रचंड से अलग हुए थे बल्कि माओवादी पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से भी त्याग पत्र देते हुए संविधान के मसले को लेकर तराई आंदेालन में भी कूद पड़े थे। हालाकि उनके इस आंदोलन में आने से ही मधेसी दलों में बौखलाहट मच गई थी। वे भट्टाराई को अलग थलग करने की कोशिशों में जुट गए थे। अब जब उन्होंने नया दल बनाकर संवैधानिक रूप से उपेक्षित तराई के लोगों की लड़ाई का एेलान कर दिया तो मधेसी दलों में बौखलाहट स्वभाविक है।

कभी माओवादी नेता प्रचंड के सहयोगी थे भट्टाराई
कभी माओवादी नेता प्रचंड के सहयोगी थे भट्टाराई

24 जनवरी को काठमांडू के बुद्ध नगर में हजारों कार्यकर्ताओं के बीच अपने नए दल की घोषणा के साथ उन्होंने तराई के उपेक्षित लोगों के हक की लड़ाई का भी एेलान कर दिया। भट्टाराई की नई पार्टी में फिलहाल 35 सदस्य शामिल किए गए हैं। लेकिन इसकी राष्ट्रीय कार्य समिति में कुल 265 सदस्य होंगें। अभी जो 35 सदस्यों के नामों की घोषणा की गई है उसे देख यह कहा जा सकता है कि यह नई पार्टी तराई से लेकर पहाड़ तक अपना विस्तार करेगी लेकिन अभी उसका फोकस तराई पर ही होगा।

ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में भट्टाराई ने कहा कि उनकी पार्टी तराई से लेकर पहाड़ तक एक ताकतवर विकल्प  के रूप में खड़ी होगी और नेपाल का पुनर्निर्माण के साथ आर्थिक समृद्धि पर जोर देगी। अभी पार्टी में शामिल किए गए लोगों में पूर्व नौकरशाह, पूर्व माओवादी तथा नामी गिरामी कलाकारों को प्रमुखता दी गई है। अगले विस्तार में तराई के नामी गिरामी लोगों को राष्ट्रीय कार्य समिति में
शामिल किए जाने की योजना है।

तराई में सक्रिय मधेसी दल के एक बड़े नेता ने साफ कहा कि भट्टाराई के तराई की राजनीति में आ जाने से यहां के स्थापित दलों में भगदड़ मचना स्वाभाविक है। वहीं नेपाल के राजनीतिक मामलों के जानकार प्रभू सापकोटा का कहना है कि तराई में आंदोलन और हाल ही में पारित संविधान संशोधन प्रस्ताव को लेकर कई मधेसी दलों में फूट की नौबत आ गई है। इसका भी लाभ भट्टाराई की नई पार्टी को मिलेगा।

पश्चिमी नेपाल के गोरखा जिले में पैदा हुए 61 वर्षीय बाबू राम भट्टाराई कभी नेपाल के शाही परिवार के करीबी रहे हैं। नेपाल के विभिन्न स्कूलों के अलावा चंडीगढ़ और दिल्ली के जेएनयू में शिक्षा पाए भट्टाराई कहते हैं कि 1986 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी करने के दौरान ही उन्होंने साम्यवादी का पाठ पढ़ा। 1996 से राजशाही से मुक्ति के लिए नेपाल में छिड़े पीपुल्सवार के समय वे अंडरग्राउंड हो गए थे। इस दौरान वे वाराणसी, दिल्ली सहित अन्य भारतीय शहरों में शरण लेकर भारत के कम्युनिस्ट नेताओं के संपर्क में रहे।

2004-05 में भट्टाराई के प्रचंड से संबध अच्छे नहीं रहे। इसकी वजह थी उन्हें और उनकी पत्नी हिसिला यामी को पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। बाद में भारत के कम्युनिस्ट नेताओं के हस्तक्षेप से दोनों के बीच सुलह समझौता हुआ। राजशाही खत्म होने के दो वर्ष बाद हुए संविधान सभा के चुनाव में भट्टाराई अपने निर्वाचन क्षेत्र से सर्वाधिक मतों से विजयी हुए थे। प्रचंड की सरकार में वे वित्त मंत्री बने। नौ माह बाद ही प्रचंड की सरकार गिरने के बाद एक बार फिर प्रचंड और भट्टाराई के बीच मतभेद उभर गए। यही वजह थी कि प्रचंड ने सत्ता से हटने के बाद प्रधानमंत्री के लिए उनके नाम का प्रस्ताव नहीं किया था। बाद में कई माह की रस्साकसी के बाद भट्टाराई प्रधानमंत्री बने थे।

नेपाल की राजनीति में भट्टाराई एक उदार चेहरा माने जाते हैं। उनका रूझान भारत के खिलाफ कभी नहीं रहा। लेकिन वे नेपाल की तरक्की के लिए भारत और चीन के बीच एक बेहतर संतुलन कायम करने के पक्ष में हमेशा रहे हैं।