अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली। पनामा प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भले ही पाकिस्तान की सत्ता प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से छीन गई हो, लेकिन भारत के प्रति उसकी सोच में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं होगा। यह एक सच्चाई है और पाकिस्तान की कोई भी पार्टी अपने भारत विरोध के रुख में कोई तब्दीली नहीं करने वाली है। बीते सत्तर वर्षों से पाकिस्तान का यही किस्सा रहा है। अगर कोई सरकार भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की इच्छा भी रखता है, तो वह सेना और आइएसआइ के दवाब में ऐसा नहीं कर सकता।

एक समय जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो ने कोशिश की थी भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने की लेकिन उन्हें इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली। नवाज शरीफ ने भी भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की, लेकिन वे भी नाकाम रहे। नवाज शरीफ से एक कदम आगे बढ़कर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली से लाहौर बस लेकर गए, लेकिन उसके नतीजे में भारत को कारगिल युद्ध मिला। तब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट कर खुद सत्तारूढ़ हो गए। साथ नवाज शरीफ को कई वर्ष विदेशों में निर्वासित जीवन बिताना पड़ा।

मुशर्रफ के रिटायर होने और वहां चुनाव होने के बाद नवाज शरीफ फिर पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए, लेकिन इस बार उन्होंने समझ लिया कि भारत के साथ अच्छे संबंधों की बात करने का मतलब है सत्ता से हाथ धोना। इसलिए सत्ता संभालते ही उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तान की नीति को मजबूती से रखा। ताकि इससे सेना भी खुश रहे और वहां की अवाम भी। दरअसल, पाकिस्तान की राजनीति में भारत विरोध और कश्मीर का मुद्दा एक फायदेमंद मुद्दा है। इसलिए वहां की चुनावी रैलियों में भारत विरोध की जितनी बातें कही जाती हैं उससे लोगों की तालियां अधिक मिलती है।

बेशक, नवाज शरीफ के जाने के बाद कोई दूसरा प्रधानमंत्री बन जाए या फिर सेना अपने हाथों में पाकिस्तान की सत्ता संभाल ले। लेकिन इससे भारत के प्रति उसका नजरिया नहीं बदलेगा। अगले साल पाकिस्तान में संसदीय चुनाव होने हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग को वैसे भी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा। पूर्व क्रिकेटर रहे इमरान खान अपनी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को पूरे पाकिस्तान में विस्तार दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि अगले चुनाव में पाकिस्तान की सत्ता उनके हाथों में होगी। जहां तक पनामा प्रकरण की बात है तो यह सभी को पता है कि अदालत में इस मामले को ले जाने वाले इमरान खान ही हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नवाज शरीफ का प्रधानमंत्री पद से बाहर होना उनकी जीत मानी जा रही है। इसका आगामी चुनाव में उन्हें जबरदस्त फायदा मिलेगा।