पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

शारदीय नवरात्र 1 से 10 अक्टूबर तक रहेंगे। नवरात्र व्रत का धारणा विजयदशमी 11 अक्टूबर को ही होगा। नवरात्र का बढ़ना बहुत शुभ फलदायक होता है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा कर आप नवरात्र उत्सव में आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर आने वाले समय में बड़ी से बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जो लोग ग्रहों की चाल से जूझ रहे हैं, आर्थिक और मानसिक संकट में फंसे हैं, वे नवरात्रों में विशेष पूजा अर्चना के द्वारा तमाम संकटों से मुक्ति पा सकते हैं।

कुछ जन्म लग्नों खासकर वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुंभ और मीन में पैदा होने वाले लोगों को मां आदिशक्ति की पूजा अर्चना विशेष फल प्रदान करेगी। दुर्गा सप्तशती में ऐसे मंत्रों का वर्णन है, जिनके माध्यम से मनुष्य अपने चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है। बस जरूरत है शुद्ध भावना और सार्थक कामना की, जिससे आपको मंत्र पाठ का पूरा लाभ मिले। अगर आप सभी नौ दिन नवरात्र व्रत न कर सकें तो पहला, तीसरा, पांचवां, सातवें या नवें नवरात्र को व्रत अवश्य करें। ध्यान रखें नवरात्र में मां काली,  मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की आराधना होती है। इसलिए तीन दिन तो अवष्य ही व्रत करें। इसके अलावा कुलदेवी की पूजा अवश्‍य करें।

लाल या सफेद ऊनी आसन पर बैठकर ही पूजा करें। मंत्र पूजा के दौरान कुछ सावधानियां आवश्‍यक हैं। इस बात का घ्यान रखें कि घर में दुर्गा जी की 3 प्रतिमा नहीं होनी चाहिए। दुर्गा पूजन में दूर्वा-जो गणेश जी को प्रिय है, तुलसी और आवंला-जो भगवान विष्‍णु को प्रिय है, का उपयोग नहीं होना चाहिए। साथ ही इन तीनों को मां भगवती को आर्पित भी नहीं करना चाहिए। अगर आप से जानकर भूल होगी तो माता कुपित होकर आपको सजा देंगी।

माता को फूलों में केवल लाल सुगन्धित पुष्‍प, जो उनको सर्वाधिक प्रिय हैं, ही आर्पित करें। इन्हें आक और मदार के भी फूल न चढ़ाएं। बेला, केवड़ा, चमेली, कदंब, केसर, सफेद कमल, पलाश, अशोक, तगर, चंपा, मौलसिरी, कनेर आदि आर्पित कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि मां दुर्गा की पूजा, उपासना, आराधना गीले कपड़ों में होने पर बिल्कुल भी न करें। देवी के मंदिर की केवल एक बार ही परिकरमा करनी चाहिए। मां भगवती को अर्चना प्रिय है और भक्त उनसे हर प्रकार की सुरक्षा की याचना कर सकता है।

जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा है, उन्हें इस मंत्र का कम से कम 108 बार लाल ऊनी आसन पर बैठकर जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है:

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।

रोगनाश और सौभाग्‍य के लिए मंत्र :

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

जिन लोगों की इच्छा स्वप्‍न में अपने कार्यो की सफलता-असफलता जानने की रहती है, उन्हें इस मंत्र के जाप से लाभ होगा:

दुर्गे देवि नमस्तुभ्‍यं सर्वकामार्थसाधिके।

मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्‍ने सर्वं प्रदर्शय।।