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पिछले 19 सालों से ओडिशा में एकछत्र शासन करने के साथ-साथ जबरदस्त लोकप्रियता हासिल करने वाले नवीन पटनायक को पहली बार गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव की घोषणा होने से पहले तक उनके पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने को लेकर कहीं कोई संदेह नहीं था, लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद बीजद में टिकट वितरण को लेकर जो कोहराम मचा, उससे पार्टी की सत्ता में वापसी पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं.

बीते 11 अप्रैल को ओडिशा में पहले चरण का मतदान संपन्न हुआ. अब तीन चरणों का मतदान शेष रह गया है. गौरतलब है कि राज्य में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के लिए भी चुनाव हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ओडिशा में त्रिपुरा जैसे नतीजे देखने को मिलेंगे. वहीं नवीन पटनायक ने उनकी बात को कोरी कल्पना करार दिया है. लेकिन यहां के राजनीतिक मौसम में जिस कदर बदलाव हुआ है, उसने हर तरह की संभावना के द्वार खोल दिए हैं. बीजद प्रमुख नवीन पटनायक ने चुनाव के लिए अपनी तैयारियां एक साल पहले ही शुरू कर दी थीं. उन्होंने कालिया एवं पीठा जैसी योजनाओं के जरिये किसानों को खुद से जोड़ा. महिलाओं के लिए संसद में आरक्षण की हिमायत करके उनके बीच अपनी पैठ मजबूत की. यही नहीं, विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं को भी अपने खेमे में लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे, लेकिन पार्टी में नेताओं की भरमार ने उनके लिए परेशानी खड़ी कर दी. नतीजतन, टिकट वितरण के दौरान जबरदस्त असंतोष नजर आया. टिकट कटने से नाराज कई नेताओं ने पार्टी को गुडबाय कह दिया, जिसका सबसे बड़ा लाभ भाजपा को हुआ, उसे तटीय एवं दक्षिण ओडिशा में कई नेता मिल गए और वह बीजद को टक्कर देने की स्थिति में आ गई.

बीजद ने सत्ता विरोधी लहर कम करने के लिए अपने 17 सांसदों एवं 43 विधायकों के टिकट काट दिए, जिनमें राज्य के वित्त मंत्री शशि भूषण बेहेरा भी शामिल हैं. एक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की कुल 147 विधानसभा सीटों में से 103 एवं लोकसभा की 20 सीटों पर बीजद और  भाजपा मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं. जबकि 20 से 25 विधानसभा सीटों पर बीजद, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. इस बार भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज है और वह पहली बार पूरे राज्य में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही हैं. अब तक भाजपा को केवल पश्चिम ओडिशा में ही टक्कर देने लायक माना जाता था. तटीय एवं दक्षिण ओडिशा में उसका संगठन कमजोर था, लेकिन बीजद और कांग्रेस के कई असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में करने के बाद इस क्षेत्र में भाजपा को नई ऊर्जा मिल गई है.

कभी बीजद के दिग्गजों में शुमार रहे बैजयंत पंडा एवं दामोदर राउत अब उसी की जड़ें खोदने में लगे हुए हैं. भाजपा बीजद एवं कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की शरणस्थली बन गई है. राज्य की राजनीति में दमदार दखल रखने वाले बिजय महापात्र, जिन्होंने चार महीने पहले भाजपा से इस्तीफा दे दिया था, दोबारा पार्टी में लौट आए हैं और विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. राज्य के अधिकांश नेता भाजपा को बीजद का विकल्प मानने लगे हैं. कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई है. वह संगठन के विस्तार एवं उम्मीदवारों के चयन के मामले में काफी पिछड़ गई है. पिछले साल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद निरंजन पटनायक ने घोषणा की थी कि पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा अगस्त- सितंबर से शुरू कर दी जाएगी, बावजूद इसके कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार अंतिम समय में घोषित किए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां अपने भाषणों में नवीन सरकार में हुए विभिन्न घोटालों एवं भ्रष्टाचार की याद दिलाने के साथ ही राज्य के विकास के लिए यहां भाजपा सरकार बनाकर ‘डबल इंजन’ लगाने का आह्वान कर रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केंद्रीय नेताओं को ‘मौसमी’ करार देकर जनता से ओडिशा हितैषी बीजद पर भरोसा बनाए रखने की अपील कर रहे हैं. अब तक लोकप्रियता के शिखर पर रहे नवीन पटनायक की छवि हालिया दिनों में कुछ धुंधलाई है. बीजद छोडक़र जाने वाले नेताओं ने पहली बार उनके विरुद्ध खुलकर आरोप लगाए हैं. यही वजह थी कि पहले दो चरणों के उम्मीदवारों में बड़े पैमाने पर बदलाव करने वाले नवीन पटनायक के तेवर ढीले पड़ गए और वह अगले दो चरणों के उम्मीदवारों के चयन में कोई खास बदलाव नहीं कर सके. कई दागदार विधायकों को संतुष्ट करने के लिए उनके पुत्रों को टिकट देने पड़े.

कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह एक परिवार को एक ही टिकट देगी, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक स्वयं दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके पुत्र नवज्योति पटनायक बालेश्वर से लोकसभा के उम्मीदवार हैं. इसी तरह जार्ज तिर्की सुंदरगढ़ से लोकसभा एवं उनके पुत्र रोहित जोसेफ विधानसभा के उम्मीदवार हैं. बलांगीर से नरसिंह मिश्र विधानसभा एवं उनके पुत्र समरेंद्र दास लोकसभा के उम्मीदवार हैं. कालाहांडी से भक्त चरण दास लोकसभा एवं उनके पुत्र सागर दास विधानसभा के उम्मीदवार हैं. पूर्व मुख्यमंत्री हेमानंद बिश्वाल ने तो अनूठी उपलब्धि हासिल की है. उनकी एक बेटी सुनीता बिश्वाल बीजद के टिकट पर सुंदरगढ़ से लोकसभा और दूसरी बेटी अमिता बिश्वाल कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं.

अभी तक विधानसभा चुनाव को एकतरफा माना जा रहा था, लेकिन बड़े पैमाने पर हुए दलबदल ने मुकाबला रोचक बना दिया है. नवीन पटनायक ने हमेशा की तरह केंद्र द्वारा ओडिशा की अनदेखी करने एवं विशेष राज्य का दर्जा न देने को अपना मुद्दा बनाया है. वहीं भाजपा राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय योजनाओं को ठीक से लागू न करने, आयुष्मान योजना न स्वीकारने एवं खनिज फंड जैसे मुद्दे लेकर जनता के बीच में है. कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी एवं धान के समर्थन मूल्य को अपना चुनावी मुद्दा बनाया है. राज्य के तीन करोड़ १८ लाख मतदाता नवीन पटनायक पर लगातार पांचवीं बार भरोसा जताएंगे या भाजपा का ‘डबल इंजन’ लगाएंगे या फिर राहुल गांधी के लोक लुभावन वादों पर अपनी सहमति का बटन दबाएंगे, यह तो 23 मई को पता चलेगा, जब वोटों की गिनती होगी.