टाटा समूह के चयरमैन पद से जब साइरस मिस्त्री को हटाया गया था उसी समय से यह अटकलें लगने लगी थी कि रतन टाटा के सबसे भरोसेमंद अधिकारी टीसीएस के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर नटराजन चंद्रशेखरन को समूह की कमान सौंपी जा सकती है। अटकलों पर विराम देते हुए समूह ने आखिरकार उनके नाम का ऐलान कर दिया। समूह के 149 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी गैर पारसी को समूह का चेयरमैन बनाया गया है।

किसान परिवार में जन्में चंद्रशेखरन ने अपनी काबिलियत की बदौलत ही समूह की आईटी कंपनी टीसीएस को देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी बना दिया। समूह ने 2009 में जब उन्हें टीसीएस की कमान सौंपी थी तब वे समूह के सबसे युवा सीईओ थे। उन्होंने महज 46 साल की उम्र में यह ओहदा हासिल कर लिया था। 30 हजार करोड़ रुपये से टीसीएस को एक लाख करोड़ रुपये की कंपनी बनाने के उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए ही उन्हें समूह की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कारोबारी जगत में उन्हें चंद्रा के नाम से जाना जाता है।

टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रतन टाटा का उत्तराधिकारी चुनने वाली कमेटी के सदस्यों ने इंटरव्यू के दौरान चंद्रशेखरन से पूछा, ‘आप मैन्युफैक्चरिंग का काम-काज कैसे संभाल पाएंगे? आपके पास स्टील या ऑटो सेक्टर की कंपनियों के संचालन का कोई अनुभव नहीं है।’ चंद्रशेखरन का जवाब था, ‘मैं सब कुछ अकेला नहीं कर सकता। मुझे मेरे साथ काम काम करने के लिए एक टीम की जरूरत होगी।’ 53 साल के चंद्रशेखरन की ओर से इससे स्पष्ट और खरा जवाब शायद कुछ और नहीं हो सकता था। चयन कमेटी में रतन टाटा, टीवीएस ग्रुप के हेड वेणु श्रीनिवासन, बेन कैपिटल के अमित चंद्रा, पूर्व राजनयिक रोनेन सेन और लॉर्ड कुमार भट्टाचार्य शामिल थे।

चयन प्रक्रिया से जुड़े लोगों के मुताबिक, चंद्रशेखरन के इस जवाब से लगभग तय हो गया कि उन्होंने बाजी लगभग मार ली है। आखिरकार, उन्हें तीन अन्य दमदार प्रतिद्वंद्वियों- जगुआर लैंड रोवर के राल्फ स्पेथ, यूनिलीवर के हरीश मनवानी और स्मिथ्स ग्रुप के सर जॉर्ज बकले पर तवज्जो दी गई। चंद्रशेखरन को पिछले साल 25 अक्टूबर को टाटा संस के बोर्ड में शामिल किया गया था। वह साल 2012-13 में आईटी इंडस्ट्री के संगठन नैस्कॉम के भी चेयरमैन रहे। उन्हें फोटोग्राफी और लंबी दूरी की दौड़ में शामिल होना पसंद है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह जो ठान लेते हैं, उसे करके दिखाते हैं। 53 के साल के नटराजन 5 मार्च 2016 तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नॉन-ऑफिशियल डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

चेयरमैन बनने पर क्या बोले चंद्रशेखरन
चेयरमैन चुने जाने के बाद चंद्रशेखरन ने कहा, ‘बोर्ड और रतन टाटा ने मुझ पर जो भरोसा जताया, उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूं। टाटा ग्रुप में इतने बड़े पद पर पहुंचना सम्‍मान की बात है। टाटा सन्स एक रिच हेरिटेज वाला ग्रुप है। आम आदमी कहता है कि टाटा तो हमारी कंपनी है। गर्व है कि 30 साल से इसका हिस्सा हूं। हम शेयरहोल्‍डर्स के हितों का खास ध्‍यान रखेंगे।’ चंद्रशेखरन ने कहा, ‘टाटा ग्रुप लोगों के दिल में है। इसलिए ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसे निभाने के लिए लीडरशिप क्वॉलिटी की जरूरत होगी। इसके लिए बहुत सारे लोगों की मदद की भी जरूरत होगी। मुझे इस जिम्मेदारी को समझने में कुछ वक्त लगेगा। इसके लिए मुझे सबकी मदद की जरूरत होगी। ये एक कलेक्टिव लीडरिशप है। जिन उसूलों पर टाटा ग्रुप खड़ा है, मेरी कोशिश उन्हें बनाए रखने और ग्रुप को आगे ले जाने की होगी।’

रामादोरई ने पहचाना था हुनर
तमिलनाडु के मोहनुर में सामान्य किसान परिवार में 1963 में पैदा हुए थे चंद्रशेखरन ने कोयम्बटूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अप्लायड साइंस में बैचलर डिग्री और त्रिची के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की। चंद्रा ने अपना कॉलेज प्रॉजेक्ट वर्क टीसीएस में किया और दो महीने बाद ही 1987 में उन्हें कंपनी से जॉब ऑफर मिल गया। टीसीएस को ज्वॉइन करने के बाद उन्होंने तेजी से अपनी अलग पहचान बनाई।

टीसीएस के पूर्व वाइस चेयरमैन एस रामादोरई ने 1993 में चंद्रा का हुनर पहचाना और 1996 में उ‌न्हें अपना एग्जिक्यूटिव असिस्टेंट बनाया। उनके कार्यकाल के दौरान कंपनी की आय बढ़कर 1,12,257 करोड़ रुपये और बाजार पूंजी 4,76,435 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। कुछ समय तक कंपनी के अंदर यह मजाक चलता रहा कि टीसीएस का मतलब है- टेक चंद्रा सीरियसली। टाटा ग्रुप के इनकम में टीसीएस का योगदान 70 फीसदी है। चंद्रा के साथ काम करने वाले लोग बताते हैं कि उनकी यादाश्त लाजवाब है। वे अपने साथ काम करने वाले लगभग 5000 लोगों को उनके नाम से जानते हैं।