सत्तारूढ़ पीएमएल (एन) की वापसी होगी या नए हाथों में मुल्क का निजाम होगा?
नवाज शरीफ और उनकी पार्टी के लिए यह चुनाव मुश्किलों भरा है। लंदन की एवेनफील्ड मामले में उन्हें दस वर्ष की सजा सुनाई गई है। इससे पहले भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। पाकिस्तान की सियासत में इतना बड़ा चेहरा आज पूरी तरह गायब हो चुका है। निश्चित रूप से इसका असर पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं के हौसले पर पड़ता है। पीएमएल (एन) के बाद पीपीपी दूसरे नंबर की पार्टी है लेकिन उनके खेमे में भी उतना जोश नहीं है। हां, इमरान खान की पार्टी के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। इसमें काफी हद तक सेना की भूमिका है। मैं समझता हूं कि वहां इस बार ऐसा चुनावी माहौल है कि सेना जिसे चाहेगी वही जीतेगा।

इस चुनाव में सेना की क्या भूमिका है?
इमरान खान खुद कहते हैं कि अगर हम सत्ता आए तो आर्मी के साथ मिलकर काम करेंगे। आर्मी भी यही चाहती है। पिछले पच्चीस-तीस सालों में जब भी वहां सिविलियन सरकार आई, उसके संबंध आर्मी से अच्छे नहीं रहे। जब पीपीपी सत्ता में आई तो उसने चाहा कि वह आर्मी से ज्यादा पावरफुल रहे। आर्मी से उसका छत्तीस का आंकड़ा रहा। बाद में बेनजीर भुट्टो की दुर्भाग्यपूर्ण मौत हुई यह हम सभी जानते हैं। बाद में नवाज शरीफ की पार्टी सत्ता में आई। उनकी भी कोशिश थी कि आर्मी के मुकाबले वह ज्यादा पावरफुल रहें। पीएमएल(एन) व पीपीपी दोनों चाहते हैं कि भारत के साथ अच्छे संबंध बनें। पाकिस्तान में लोकतंत्र प्रभावी बने और आर्मी का दखल चुनी हुई सरकार पर न रहे। इस वजह से नवाज शरीफ की क्या गत हुई यह हम सबने देखा है। उन्हें मुल्क छोड़कर जाना पड़ा। वे चुपचाप बैठे हुए हैं। अगर बोलेंगे तो उनका भी वही हश्र होगा जो बेनजीर भुट्टो का हुआ। यह प्री प्लांड इलेक्शन है केवल दुनिया को दिखाने लिए कि पाकिस्तान में लोकतंत्र है और वहां चुनाव हो रहे हैं।

मौजूदा स्थिति में किस पार्टी के जीतने के आसार ज्यादा हैं?
इस चुनाव में कौन जीतेगा यह पूरी तरह सेना पर निर्भर है। इमरान खान की पार्टी आक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार कर रही है। सेना ने ही उनकी पार्टी बनवाई थी। नवाज शरीफ को काउंटर करने के लिए सेना उन्हें फंडिंग भी करती है। मिल्ली मुस्लिम लीग एक बहुत अहम फैक्टर है। तहरीक-ए-तालिबान जैसे सेना विरोधी आतंकी संगठनों को नियंत्रित करने के लिए इन्हें रोल दिया जा रहा है ताकि आर्मी के खिलाफ आतंकी संगठनों को काउंटर किया जा सके।

मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट ने खुद को चुनाव से अलग कर लिया है। इसका फायदा किसे होगा?
कौन लड़ेगा इन आतंकवादियों के खिलाफ। पिछले चुनाव में अवामी नेशनल लीग के सत्तर से अधिक कार्यकर्ता मारे गए थे। ऐसे हालात में कौन चुनाव लड़ेगा और कौन अपने वर्करों को मरवाएगा। एमक्यूएम का सिंध में काफी असर है। अल्ताफ हुसैन के समर्थक पीपीपी को वोट करेंगे। जाहिर है सिंध प्रांत में बिलावल भुट्टो को इसका फायदा मिलेगा। पाकिस्तान के लगभग सभी संस्थानों पर आर्मी का कंट्रोल है। उन्हें थोड़ी समस्या आती थी पार्लियामेंट में। लेकिन अब वहां भी उनका पूरा नियंत्रण हो जाएगा। न्यायपालिका पर उनका पहले ही नियंत्रण हो चुका है। चुनाव आयोग समेत जितने भी स्वतंत्र संस्थान हैं वहां भी सेना अपना कंट्रोल बढ़ाने की कोशिश करेगी। लेकिन सब कुछ पर कंट्रोल कर लेंगे यह सोचना उनकी भूल होगी। अगर उन्होंने ऐसा किया तो मुझे लगता है कि इसकी प्रतिक्रिया में वहां नेशनलिस्ट मूवमेंट शुरू हो जाएगा। सिंध, बलूचिस्तान और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में यह मूवमेंट शुरू भी हो चुका है।

अगर तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आई तो भारत के साथ उसका रवैया कैसा होगा?
पीएमएल (एन) और पीपीपी जब भी सत्ता में आई तमाम दुश्वारियों के बावजूद उन्होंने भारत से अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की। लेकिन सेना की दखलंदाजी की वजह से बातचीत किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकी। अगर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आती है और इमरान खान प्रधानमंत्री बनते हैं फिर भी उन्हें इतना इख्तियार हासिल नहीं होगा कि वे अपनी मर्जी से भारत के साथ बेहतर ताल्लुकात बनाने की कोशिश करें। मैं नहीं समझता कि पीटीआई के सत्ता में आने पर कोई बड़ा बदलाव आएगा। लेकिन दूसरी तरफ यह भी है कि बातचीत का दौर शुरू होगा क्योंकि सीमा पर लंबे समय तक तनाव कायम रहना पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह है।

इमरान अपनी रैलियों में भ्रष्टाचार और विकास की बात करते हैं लेकिन भारत विरोधी भाषण देने से बच रहे हैं। इसकी कोई खास वजह?
पिछले चुनाव में भी विकास का मुद्दा सियासी पार्टियों के बीच अहम था। वहां के नेताओं को यह पता है कि अगर कोई एंटी इंडिया बातें बहुत करता है तो उसे वोट नहीं मिलते। पाकिस्तान की जनता चाहती है कि भारत के साथ संबंध बेहतर हों ताकि वहां डेवलपमेंट के काम शुरू हों। पाकिस्तान की आर्थिक हालत काफी खराब है। करीब 28 हजार अरब रुपये का कर्ज है उस पर।
(अभिषेक रंजन सिंह)