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लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल हुई. अकेले भाजपा को 30३ सीटें मिलीं. इस बार विपक्ष ने मुस्लिम वोट पाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. यही वजह है कि 2014 की तुलना में इस बार लोकसभा पहुंचने वाले मुस्लिम सांसदों की संख्या बढ़ गई है. इस चुनाव में 27 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई, जबकि 2014 में यह संख्या 23 थी. सवाल यह है कि लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या इतनी कम क्यों है? यह चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि संसद देश के सामाजिक ताने-बाने का भी प्रतिनिधित्व करती है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन सफल भले न रहा हो, लेकिन वह छह मुस्लिम उम्मीदवारों को जिताने में कामयाब रहा. 2014 में इस राज्य से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं था. इस बार यहां से सपा के आजम खान (रामपुर), बसपा के कुंवर दानिश अली (अमरोहा), बसपा के अफजाल अंसारी (गाजीपुर), सपा के डॉ. एसटी हसन (मुरादाबाद), बसपा के हाजी फजलुर्रहमान (सहारनपुर) और डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क (संभल) चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.

असम से दो मुस्लिम उम्मीदवार जीते. यहां एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. इसके अलावा एक अन्य उम्मीदवार अब्दुल खालिक ने भी जीत हासिल की. केरल से दो मुस्लिम उम्मीदवार जीते. वहीं पश्चिम बंगाल से नुसरत जहां, खलीलुर्रहमान, साजिद खान एवं अबू ताहिर यानी चार उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. हमेशा की तरह इस बार भी हैदराबाद से एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भारी-भरकम जीत हासिल की. इसी पार्टी के टिकट पर महाराष्ट्र के औरंगाबाद से इम्तियाज जलील चुनाव जीते. लक्षद्वीप से मोहम्मद फैजल, पंजाब से मोहम्मद सादिक ने जीत दर्ज की. जम्मू-कश्मीर से फारूक अब्दुल्ला समेत तीन मुस्लिम सांसद बने. बिहार से लोजपा के टिकट पर महमूद अली कैसर ने जीत दर्ज की. तमिलनाडु से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के टिकट पर नवाज कानी ने कामयाबी कर संसद की देहरी दस्तक दी. अगर पिछले लोकसभा चुनावों पर नजर डालें, तो 2004 में 34 और 2009 में 30 मुस्लिम लोकसभा पहुंचे थे. सबसे ज्यादा 49 मुस्लिम उम्मीदवार 1980 में चुनाव जीते थे. 2014 में पश्चिम बंगाल से आठ, बिहार से चार, केरल से तीन, जम्मू-कश्मीर से तीन, असम से दो, आंध्र प्रदेश एवं केंद्र शासित लक्षद्वीप से एक-एक मुस्लिम सांसद चुने गए थे.उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 19, पश्चिम बंगाल में नौ और बिहार में पांच मुस्लिम उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे. सीपीएम के मोहम्मद सलीम ने पश्चिम बंगाल की रायगंज सीट केवल 1,356 वोटों से जीती थी. वहीं इसी राज्य की आरामबाग सीट से टीएमसी की उम्मीदवार अपरूपा पोद्दार (आफरीन अली) ने 3,46,845 वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर रिकॉर्ड कायम किया. 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ है, लेकिन लोकसभा में उसका प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है.

गुजरात में स्थिति और भी ज्यादा खराब है. इस राज्य से पिछले 30 सालों के दौरान एक भी मुस्लिम जीतकर संसद नहीं पहुंचा. गुजरात से आखिरी बार 1984 में कांग्रेस के अहमद पटेल भरूच से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, लेकिन 1989 में उन्हें भाजपा के चंदू देशमुख ने 1.15 लाख वोटों के अंतर से हरा दिया. गौरतलब है कि गुजरात में मुस्लिम आबादी 9.5 प्रतिशत है. देश के मुख्य राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों पर बहुत कम भरोसा किया. कांग्रेस ने पिछले 14 चुनावों में 15 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जबकि भाजपा ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. गुजरात राज्य के अस्तित्व में आने के बाद 1962 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें बनासकांठा सीट से सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार जोहरा चावड़ा को जीत मिली. इसके बाद 1977 में लोकसभा के लिए दो मुस्लिम सांसद चुने गए, भरूच से अहमद पटेल और अहमदाबाद से एहसान जाफरी.