नई दिल्‍ली। कहा तो ये जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है, लेकिन लोगों में यह भ्रम बना हुआ है कि यूपी चुनाव के मद्देनजर यह सत्‍तारूढ़ समाजवादी पार्टी की नूरा कुश्‍ती तो नहीं। सोमवार को मुख्यमंत्री अखि‍लेश यादव ने मुलायम सिंह यादव और शि‍वपाल यादव के करीबी दो मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर किया तो मंगलवार को उन्होंने मुख्‍य सचिव दीपक सिंघल की भी छुट्टी कर दी। इस उठा-पटक में मंगलवार को शाम ढलते-ढलते अखि‍लेश यादव को यूपी प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। सपा प्रमुख मुलायम‍ सिंह ने उनकी जगह शि‍वपाल यादव को यूपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। यह राजनीति लोगों की समझ में शायद न आए, लेकिन लोगों के आकर्षण का केंद्र जरूर बनी हुई है।

वरिष्‍ठ पत्रकार निर्मलेंदु साहा ने फोन पर बताया, ‘शिवपाल यादव के कंधे पर बंदूक चलाने की राजनीति की जा रही है। पिता-पुत्र मुलायम-अखिलेश की जुगलबंदी को समझ पाना आसान नहीं है। यूपी में चुनाव के दौरान टिकट बांटने आदि की तमाम बलाएं शिवपाल यादव के सिर होंगी और मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की छवि को कोई हानि नहीं पहुंचेगी। फिर शिवपाल यादव के पास वोट बैंक है, जहां से वोट भी तो कैश करना है। ऐसे में इस नूरा कुश्‍ती का सपा पूरा फायदा उठा रही है।’

जाहिर तौर पर यूपी चुनाव से ठीक पहले सत्तासीन पार्टी के अंदर यह घमासान चुनावी गणि‍त पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, लेकिन एक बात साफ है कि सपा में अब यह दिखाने की कवायद शुरू हो गई है कि आखि‍र असली बॉस कौन है, क्योंकि मुख्‍य सचिव सिंघल, खनन मंत्री पद से हटाए गए गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री पद से बर्खास्त किए गए राजकिशोर सिंह शिवपाल के करीबी माने जाते हैं। इसके बावजूद अखिलेश यादव बराबर इस बात पर जोर देते हैं कि सपा में कोई अंतर्कलह नहीं है। मीडिया वाले ही चाचा-भतीजा में लड़ाई लगाते हैं। इसे इस रूप में भी देखा जा रहा है कि यूपी में विधान सभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव की छवि बचाने और उन्‍हें तमाम राजनीतिक व कूटनीतिक बलाओं से दूर रखने के लिए तमाम कवायद की जा रही है।