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authorयुवा लेखक जब प्रकाशक के यहां पहुंचा तो प्रकाशक दो-तीन बड़े सरकारी अधिकारियों से घिरा हुआ था जो अपनी किताबें छपवाने के लिये उसके पास आये थे. लेखक को आधे घण्टे इंतज़ार करना पड़ा. इस प्रकाशक से उसे उसके एक मित्र और वरिष्ठ लेखक ने मिलवाया था जो उसे किसी गैर-साहित्यिक कारण से पसंद करते थे. लेखक की कहानियां देश की कई ऐसी पत्रिकाओं में छप चुकी थीं जो खुद को प्रतिष्ठित बताती थीं. आधे घण्टे के इंतज़ार के बाद लेखक को भीतर बुलाया गया.

‘कैसे हैं सुदर्शन शास्त्री जी?’ प्रकाशक ने वरिष्ठ लेखक के प्रति आदरभाव से पूछा. उसने सम्मानभाव से उनका हाल सुनाया और उनका भेजा हुआ अभिवादन, जो एक बोतल में बंद था, प्रकाशक को पेश किया. ‘क्या नाम रखा है आपने अपने कहानी संग्रह का ?’ प्रकाशक ने पूछा. उसने विनम्रता से कहानी संग्रह का नाम बताया. प्रकाशक खुश हुआ.

‘मेरी नींद में काले कौवे, लेखक चतुर्भुज शास्त्री’ अच्छा लग रहा है न सुनने में ?’ प्रकाशक के मुंह से यह सुनकर लेखक को अपने पहले कहानी संग्रह का कवर पृष्ठ दिखायी देने लगा. उसने अपनी किताब की पाण्डुलिपि झोले से निकाल कर प्रकाशक के हाथों में सौंप दी. ‘मेरी किताब नहीं मेरा सपना है यह.’ उसने कहा पर प्रकाशक ने अधिक ध्यान नहीं दिया. इससे बड़े-बड़े कई सपने वह दबा कर बैठा था.

‘मैंने आपकी कहानियां पढ़ी हैं, आप अच्छा लिखते हैं. मैं इसे छाप सकता हूं लेकिन सिर्फ़ अच्छा लिखना तो काफी नहीं है. यह आप समझते ही होंगे.’ लेखक ने प्रकाशक की बात समझने में अपनी असमर्थता

ज़ाहिर की.

‘अभी-अभी जो साहब उठ कर गये, मैं उनका कविता संग्रह छाप रहा हूं वह आयकर विभाग में कमिश्नर हैं. तुम समझ गये होगे कि मैं उनसे किस तरह लाभान्वित हो सकता हूं ?’ प्रकाशक ने सीधे-सीधे हिसाब किताब वाली भाषा अपना ली. युवा लेखक थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने कहा कि उसके पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है इसलिये वह इतना ही कर सकता है कि प्रकाशक का इंटरव्यू लेकर किसी अख़बार में छपवा दे. प्रकाशक ने यह कहते हुये मना कर दिया कि इस तुच्छ काम के लिये उसके पास कई अख़बारों के संपादक हैं जिनके यात्रावृत्त और कहानी संग्रह वह छापता रहा है. लेखक उदास हो गया. आखिरकार प्रकाशक ने सकुचाते हुये लेखक को एक प्रस्ताव रखा जिससे लेखक के भीतर का लेखक जाग गया और लेखक क्रोधित होकर चुपचाप वापस चला आया.

‘उन्होंने मेरे सामने ऐसा गंदा प्रस्ताव रखा कैसे ? मेरी कहानियां पढऩे के बावजूद. मैं उनमें हमेशा इसके खिलाफ बातें करता हूं.’ उसने उस वरिष्ठ लेखक के सामने बैठ उसी शाम शराब पीते हुये कहा. वरिष्ठ लेखक ने उसकी पीठ सहलायी.

‘वह किताब छपवाने के एवज में जवान लड़कियों को ऐसा प्रस्ताव हमेशा देता था, जानकर दुख हुआ कि अब वह लडक़ों को भी ऐसे गंदे प्रस्ताव देने लगा है. इसीलिये कई खुद्दार लेखक अपनी पाण्डुलिपि वहां से वापस ले लेते हैं. तुम चिंता मत करो, मैं बात करता हूं.’ वरिष्ठ लेखक ने कहा.

‘मैं बहुत तगड़े उसूलों वाला लेखक हूं, छपने के लिये कभी कोई समझौता नहीं करुंगा, यह बता दीजियेगा उन्हें. भले मेरी किताब जि़ंदगी भर न छपे, मैं कोई अनैतिक काम नहीं करुंगा, छी: मुझे शर्म आ रही है…ओह.’ लेखक ने अपना छठवां पेग खत्म करते हुये कहा. उसकी आवाज़ भर्रा गयी थी.

वरिष्ठ लेखक प्रकाशक से मिला जिसकी पिछली चार किताबें इसी प्रकाशक से आयी थीं. प्रकाशक और वरिष्ठ लेखक की मुलाकात के बाद वरिष्ठ लेखक ने युवा लेखक को अपने घर बुलाया.

दोनों लेखक तीन दिनों के भीतर फिर से आमने सामने बैठे थे और बीच में एक बोतल मुंह खोले उन दोनों के मुंह देख रही थी.

वरिष्ठ लेखक ने बताया कि प्रकाशक एक यौन रोग से पीडि़त है.

‘पहले वह सामान्य था. लड़कियों को ऐसे प्रस्ताव देना निश्चित रूप से उसके सामान्य होने का लक्षण था लेकिन यह बीमारी उसे हाल के दिनों में ही हुयी है.’ वरिष्ठ लेखक ने उसे दुखी स्वर में बताया कि प्रकाशक किसी युवा लेखक को देखते ही उसके साथ गुदामैथुन करने के लिये व्यग्र हो उठता है. साथ ही उसने यह भी जोड़ा कि प्रकाशक इस समस्या की गंभीरता को समझता है और इसे काबू करने के लिये वह चिकित्सक से परामर्श भी ले रहा है. वरिष्ठ लेखक ने युवा लेखक को समझाया कि ऐसी स्थिति में प्रकाशक की मदद करना इंसानियत की मांग है. उसने युवा लेखक को समझाया कि एक बीच का रास्ता है जिससे उसका ईमान भी बचा रह सकता है और उसकी किताब भी छप सकती है. लेखक ने देखा कि इसमें उसके उसूलों की हानि नहीं हो रही है तो उसने हां कर दी.

उसी शाम वरिष्ठ लेखक युवा लेखक को लेकर प्रकाशक के घर गया. वहां कोई चौथा जानबूझ कर आमंत्रित नहीं किया गया था. तीनों ने थोड़ी शराब पी और प्रकाशक एक मेज़ के पास जाकर खड़ा हो गया. युवा लेखक भी उठा और मेज़ के दूसरी तरफ जाकर थोड़ा सा झुक गया. मेज़ के दूसरी तरफ खड़े प्रकाशक ने अपनी पैण्ट उपर से थोड़ी सरका दी और अपनी कमर आगे पीछे करने लगा.

वरिष्ठ लेखक थोड़ी दूरी पर बैठा अपना पेग खत्म कर रहा था. उसे खुशी थी कि उसने एक युवा लेखक को उसका ईमान बचाने में मदद की. वह उठ कर युवा लेखक के पास गया.

‘देखा चतुर्भुज, यह सिर्फ़ इसकी बीमारी है. यह सच में ऐसा नहीं चाहता. देखो तुमने अपनी पैण्ट भी नहीं उतारी और तुम्हारे और इसके बीच तीन फीट का फासला है, तुम्हें सिर्फ अपनी कमर को थोड़ा सा हिलाना है और इसके लिये थोड़ा सा अभिनय करना है. मुझे उम्मीद है तुम्हें खुशी होगी कि तुम्हें अपने उसूलों से समझौता नहीं करना पड़ा.’

युवा लेखक की आवाज़ में ठसक भरी थी, ‘मैंने पहले ही कहा था सर कि भले मेरी किताब जीवन भर न छपे, मैं अपना ईमान नहीं डिगा सकता.’

वरिष्ठ लेखक संतुष्ट होकर वापस अपनी जगह पर बैठ गया. युवा लेखक भी संतुष्ट था. प्रकाशक भी संतुष्ट था.

वरिष्ठ लेखक ने पहले ही सोच लिया था कि वह अपने और प्रकाशक के पिता के बीच दशकों पहले हुयी मुलाकातों के बारे में कोई जिक़्र नहीं करेगा.