गुलाम चिश्ती
bjp manipurमणिपुर विधानसभा चुनाव में नार्थइस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के घटक दल आपसी सामंजस्य स्थापित करने में विफल हो गए हैं। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी)और नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। साथ ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रमुख साझेदार पार्टियों में एक लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भी यहां भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ रही है। इससे स्पष्ट है कि नेडा अपने गठन के बाद हुए पहले चुनाव में ही अपने उद्देश्य से भटक गया है। ऐसे में कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर का उसका सपना बिखरता दिख रहा है। मणिपुर के राजनीतिक समीकरण ने उन्हें एक साथ चुनाव न लडऩे के लिए बाध्य कर दिया है। उपरोक्त उल्लेखित पार्टियां,जो नेडा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( राजग) के घटक दल कहे जाते हैं, वे अपने-अपने बैनर, पोस्टर और उम्मीदवारों के नाम पर वोट मांग रहे हैं। मालूम हो कि इस चुनाव में लोकसभा के पूर्व स्पीकर पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) राज्य की 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। साथ ही एनडीए की प्रमुख घटक दलों में एक लोक जनशक्ति पार्टी राज्य की 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस संबंध में एनपीपी के प्रमुख वी.आर वांगखेम का कहना है कि राज्य स्तरीय चुनाव में अलग-अलग पार्टियों की अलग-अलग मांगें और मुद्दे होते हैंं। ऐसे में हम अलग- अलग चुनाव लडऩे को बाध्य हैं। यह अलग बात है कि हम कांग्रेस विरोधी हैं। इसलिए उसके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। एनपीएफ के महासचिव हुनरिखेंग काउसुंग का कहना है कि कई मुद्दों पर हमारा भाजपा के साथ मतभेद है। हमारी कई मांगे और उद्देश्य भाजपा की नीतियों से मेल नहीं खाते। ऐसे में उसके साथ मिलकर चुनाव लडऩा संभव नहीं है। भाजपा मैतेयी वोट के लिए हमसे नहीं जुडऩा चाहती । भाजपा की मणिपुर इकाई के प्रवक्ता एन. बीरेन सिंह का कहना है कि कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनके कारण हम मणिपुर में एक साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ सकते। जानकार बताते हैं कि यदि भाजपा यहां नेडा को बचाने के लिए चुनाव लड़ती तो कांग्रेस उसके खिलाफ अभियान छेड़ देती तो उसे कम से कम 20 सीटों पर नुकसान का सामना करना पड़ता। साथ ही उसे मैतेयी समाज के आक्रोश का सामना करना पड़ता, जो राज्य की 60 सदस्यीय सीटों में से 39 पर अपना प्रभाव रखते हैं। मैतेयी वोटों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए भाजपा ने यहां नेडा को एक साथ जोडऩे पर जोर नहीं दिया। याद रहे कि असम विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को मिली भारी जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और महासचिव व पूर्वोत्तर के पार्टी प्रभारी राममाधव की उपस्थित में नेडा का गठन किया गया था। इस मौके पर इस पूरे क्षेत्र की कांग्रेस विरोधी शक्तियां एक मंच पर आ गयी थीं। इस मौके पर असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल,सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग,नगालैंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग और अरुणाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री कालिखो पुल भी मौजूद थे। इसके अलावा मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय की कांग्रेस विरोधी शक्तियां एक मंच पर मौजूद थीं। इस मौके पर सर्वसम्मति से असम चुनाव के चाणक्य रहे डॉ. हिमंत विश्वशर्मा को नेडा का संयोजक नियुक्त किया गया था। मौके पर नेडा के घटक दलों ने कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर का प्रण लिया था। इसका ब्लूप्रिंट बनाने की जिम्मेवारी हिमंत विश्वशर्मा को सौंपी गयी थी।हिमंत ने भी भविष्यवाणी की थी कि 2019 तक पूरा पूर्वोत्तर कांग्रेस मुक्त होगा। ऐसे में समझा जाता था कि नेडा अपने पहले चुनाव मणिपुर में गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ेगा,परंतु राज्य की वर्तमान परिस्थितियों ने उन्हें अलग-अलग चुनाव लडऩे को बाध्य कर दिया है। उल्लेखनीय है कि नेडा में आए बिखराव का श्रेय वहां के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इबोबी सिंह को जाता है,जिन्होंने भाजपा और एनएससीएन (आईएम) के बीच संबंध होने और वृहत्तर नगालिम के मुद्दे पर दोनों को एक होने का प्रचार करना शुरू कर दिया है। साथ ही उन्होंने नए जिलों की घोषणा कर अपने विरोधियों को बिखरने को बाध्य कर दिया है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इबोबी के पहले मास्टर स्ट्रोक पर हिमंंत की गुगली नाकाम हो गयी है। ऐसे में अब हिमंत के सामने नेडा को जोडक़र रखने की बड़ी चुनौती होगी।