संतोष मानव ।

राजा नहीं संत है, मामा का निकट अंत है- सोशल मीडिया पर यह स्लोगन नया-नया दौड़ा है। राजा मतलब मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और मामा यानी वर्तमान सीएम शिवराज सिंह चौहान। इस स्लोगन को दौड़ाने वाले लोग कांग्रेस से जुड़े हैं। वे सहज ही इसे स्वीकार भी कर लेते हैं। कांग्रेस के विचार विभाग से जुड़े भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं- ‘हां, हमने इसे प्रसारित किया है। इसमें गलत क्या है? जिस तरह उन्होंने भक्ति भाव से लगातार छह माह तक नर्मदा की पदयात्रा की है, उससे वे संत जैसे ही लगते हैं।’ श्री गुप्ता के दावे में कुछ दम तो है। प्रदेश में दिग्विजय सिंह की छवि आश्चर्यजनक रूप से सुधरी है। अब लोग बीजेपी द्वारा 2001-2002 में प्रचारित-प्रसारित ‘मिस्टर बंटाधार’ यानी दिग्विजय सिंह को याद नहीं करते। अब बात होती है नर्मदा यात्री दिग्विजय सिंह की। इस यात्रा से उन्हें धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ हो या न हो, लेकिन राजनीतिक लाभ तो हुआ ही है। अब वे ‘हिंदू विरोधी’ से पक्के हिंदू हो गए हैं। संत की उपाधि भी उन्हें आला हिंदू बताने के लिए ही है। दरअसल दिग्गी ही नहीं, प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं में हिंदू ‘बनने’ की होड़Þ मची है।
दिग्गी की नर्मदा यात्रा के समापन अवसर पर उनसे आशीर्वाद लेने कट्टर हिंदू और बीजेपी की नेता साध्वी उमा भारती भी जाने वाली थीं। किन्हीं कारणों से नहीं जा पार्इं तो पत्र भेजा, कहा कि कुछ समय बाद आशीर्वाद लेने आऊंगी। बीजेपी के दमोह से लोकसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल तो यात्रा में शामिल हुए। यात्रा के समापन अवसर पर भी अपने सगे भाई और प्रदेश में मंत्री जालम सिंह पटेल के साथ हाजिरी लगाई। सीएम शिवराज सिंह चौहान के सगे भाई नरेंद्र सिंह चौहान ने यात्रा के दौरान दिग्गी के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। इतना ही नहीं यात्रियों के लिए जलपान का भी इंतजाम किया। साफ है कि कल तक मुस्लिम परस्त, हिंदू विरोधी कहे जाने वाले दिग्गी अब हिंदू मान लिए गए हैं।

दिग्गी ही नहीं, कांग्रेस के सभी बड़े नेता स्वयं को एक दूसरे से बड़ा हिंदू ‘बनने’ और दिखने की होड़ में हंै। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उज्जैन के महाकाल मंदिर से परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने सीएम शिवराज के गृह जिले सिहोर की एक सभा में कहा, ‘मेरा परिवार अब तक दो सौ से ज्यादा मंदिर बनवा चुका है।’ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का हनुमान मंदिर में झांझ बजाते हुए वीडियो वायरल किया जा रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने कमलनाथ भोपाल आए तो हवाई अड्डे से कांग्रेस कार्यालय के बीच पड़ने वाले सभी मंदिरों में माथा टेकते आए। इस कारण 12 किलोमीटर की यात्रा चार घंटे में पूरी हुई। हनुमान जयंती पर आयोजित शोभा यात्राओं में कांग्रेस के छोटे-बड़े सब नेता शामिल हुए। कांग्रेस नेताओं दिग्विजय, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य आदि के चंदन-टीका वाले चित्र वायरल किए जा रहे हैं। लेकिन, कभी मुस्लिम परस्त कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह अब कांग्रेस के सबसे बड़े हिंदू नेता के रूप में उभरे हैं। मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के बारे में कहा जाता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप मिट जाते हैं। लगता है कि दिग्गी के भी सारे ‘पाप’ मिट गए हैं। उनकी नर्मदा यात्रा प्रदेश के एक सौ बीस विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी यानी इसी बहाने पुराने संबंध भी ताजा हो गए। सबसे बड़ी बात तो यह कि अब लोग उनकी धर्मपत्नी अमृता राय को लेकर टीका-टिप्पणी नहीं करते। यात्रा में कदम से कदम मिलाकर चलने वाली अमृता राय अब ‘रानी साहिबा’ हो गई हैं। जनता की प्रतिक्रिया से उत्साहित दिग्विजय ने कहा भी है, ‘मैं राजनीतिक हूं। सो, पकौड़े तो तलूंगा नहीं, अब राजनीतिक यात्रा प्रारंभ करूंगा, कांग्रेस के नेताओं को जोड़कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का काम करूंगा।’ कांग्रेस के लोग कहते हैं कि उनकी दूसरी यात्रा की तैयारी हो रही है। वे संभवत: ओरछा से राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करेंगे। कांग्रेस नेता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं, ‘इसमें दो राय नहीं है कि यात्रा से दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता बढ़ी है। छवि चमकी है। एक बार फिर साबित हुआ है कि वे संकल्पवान राजनेता हैं, जो कहते हैं, सो करते हंै।’ होशंगाबाद निवासी और युवा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महासचिव श्रवण सिंह ठाकुर कहते हैं, ‘उनकी छवि बदल गई है। वे प्रदेश का किंग बन सकते हैं, नहीं बन पाए तो इतना तय है कि किंग उनकी पसंद का ही होगा।’

कांग्रेस के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति के अनिवार्य तत्व हैं। वे कांग्रेस के एकमात्र नेता हैं जिनका नेटवर्क पूरे प्रदेश में है। कांग्रेस का कोई दूसरा नेता इस मामले में उनकी बराबरी नहीं कर सकता। वे प्रदेश कांग्रेस के एकमात्र अध्यक्ष रहे हैं, जिन्होंने संयुक्त मध्य प्रदेश के हर ब्लाक में कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया था और उसमें शमिल हुए थे।
प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि नर्मदा मैया के आशीर्वाद से दिल्ली दरबार में भी दिग्गी मजबूत हुए हैं। राहुल गांधी ने दिग्विजय के यात्रा से लौटने तक कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष पर मुहर नहीं लगाई। उनसे बातचीत के बाद ही कमलनाथ के नाम पर मुहर लगी। कहा यह भी जा रहा है कि दिग्गी की समझाइश पर ही कमलनाथ के हाथ कमान लगी, नहीं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया बाजी मार लेते। इस सहयोग का लाभ भी दिग्गी को मिल रहा है। कमलनाथ का नेटवर्क दो-चार जिलों में ही है। ऐसे में सांगठनिक फेरबदल में सर्वाधिक पद दिग्गी के लोगों को ही मिल रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि उनके विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह को युवा कांग्रेस की कमान मिलने वाली है। राहुल गांधी से जयवर्धन की मुलाकात को इसी संदर्भ में माना जा रहा है। प्रदेश में चुनाव इस साल के अंत तक होंगे। कांग्रेस को सत्ता मिल जाएगी, यह भी तय नहीं है। स्वयं दिग्विजय सिंह कह चुके हैं कि वे सीएम नहीं बनेंगे। लेकिन राजा के लोगों को लग रहा है- अबकी बारी फिर राजा की बारी। क्यों? इसलिए कि नर्मदा मैया नए-नए हिंदू ‘बने’ दिग्गी को आशीर्वाद दे रही हैं और कमलनाथ का हाथ भी अंतत: उनके ही सिर होगा! कांग्रेस नेता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं, ‘पार्टी साफ-साफ कह चुकी है कि चुने गए विधायक अपना नेता चुनेंगे।’ पर राजनीति में सब कुछ साफ कहां होता है! इधर हिंदू ‘बनने’ की होड़ पर मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने संवाददाताओं से कहा, ‘कांग्रेस के लोग सुविधा के अनुसार मंदिर जाते हैं। इस पर उनसे अब सवाल होना चाहिए।’ पर सवाल करेगा कौन?