निशा शर्मा।

हमारा देश 71 साल का हो गया। 71 साल के भारत में हर किसी के लिए स्वतंत्रता के अलग-अलग मायने हैं। साहित्य अकादमी ने स्वतंत्रता के इस जश्न पर एक वक्तव्य का आयोजन किया। जिसमें कई साहित्यकारो ने शिरकत की। इन जाने-माने साहित्यकारों के लिए स्वतंत्रता  के क्या मायने हैं, आईये हम आपको बताते हैं-

साहित्यकार असगर वजाहत- रचनाकार की अभिव्यक्ति रचनाशीलता के दायरे में ही रहनी चाहिए।

शरण कुमार लिंबाले एवं श्यौराज सिंह बेचैन-  वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के बाद ही असली स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है। जहाँ भी शोषण और असमानता होती है वहाँ स्वतंत्रता और समरसता नहीं होती।

कवि लीलाधर मंडलोई– स्वतंत्रता को प्रत्येक नागरिक की दृष्टि से देखना चाहिए। आजादी की सही परिभाषा सामूहिक स्वतंत्रता में ही है इसे व्यक्तिगत या निजी संदर्भों में देखना उचित नहीं होगा।

कहानीकार प्रयाग शुक्ल– स्वतंत्रता को हमेशा खतरा सत्ता पक्ष से ही होता है। अतः इस मामले में सत्ता पक्ष को बेहद कार्य सतर्कता के साथ काम करने की आवश्यकता है।

लेखिका चित्रा मुद्गल– मेरे लिए स्वतंत्रता का मतलब सामूहिक स्वतंत्रता में अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करना है। मैं अपनी स्वतंत्रता को किसी अन्य की स्वतंत्रता के विरोध में नहीं साबित नहीं कर सकती। मेरा चिंतन और लेखन सामूहिक स्वतंत्रता में प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता की वकालत करने का प्रयास करता है।