—अमीश त्रिपाठी

दोस्तो, पहली बात यह कि हिंसा बढ़ रही है- ऐसा हम आप लगातार सुनते-देखते-पढ़ते हैं। लेकिन मैं कहूंगा कि हिंसा की जो घटनाएं हो रही हैं अगर आप उनके आंकड़े देखें तो पाएंगे कि वास्तविकता का एक पहलू और भी है। पिछले कुछ दशकों में हिंसा की घटनाएं आबादी के अनुपात में लगातार कम होती जा रही हैं। अब ये गणित है कोई आकलन नहीं तो यह झूठ तो नहीं बोलेगा। यह सच है। तो एक तरह से हमारे देश में और दुनिया के तमाम और देशों के लिए भी शायद यह सबसे शांतिपूर्ण समय भी है। हमें इसे भी भूलना नहीं चाहिए। पहले भी विभिन्न जगहों पर हिंसा की वारदात होती थीं लेकिन हमें पता नहीं चलता था। और काफी ज्यादा हिंसा होती थी। अब हिंसा कम हो गई है लेकिन मीडिया के द्वारा- क्योंकि अभी ग्लोबल मीडिया है और सोशल मीडिया भी ग्लोबल हो गया है- हमें उन घटनाओं का पता चल जाता है। तो हमें लगता है कि हिंसा बढ़ रही है लेकिन वास्तव में हिंसा घट रही है। तो यह तो एक तथ्य है।

लेकिन जो दूसरी बात है वह भी सत्य है कि बड़ों के बाद अब हमारे बच्चों में भी यह प्रवृत्ति बढ़ रही है। पश्चिमी देशों की एक खामी है अब हमारे देश भारत में भी आ रही है कि पारिवारिक जीवन टूटता चला जा रहा है। अब कठिनाई किसकी जिंदगी में नहीं आती यार, हर किसी की लाइफ में प्रॉब्लम होता है। वो कहते हैं ना कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता। अगर आपका परिवार सशक्त नहीं है, अगर आपके मित्र नहीं हैं जो आपको सहारा दें, कंट्रोल करें… तो फिर आप अपना काबू खो सकते हैं। यही एक कठिनाई है आज की तारीख में कि मनुष्य में अकेलापन बहुत बढ़ रहा है। और सोशल मीडिया, फेसबुक में आपके जो फ्रेंड्स हैं उनका कुछ मतलब नहीं होता वे आपके असली मित्र नहीं हैं। अकेलेपन में इंसान कभी कभार काबू खो बैठता है। परिवार में लोग उतना समय नहीं बिताते जितना बिताना चाहिए। आप ऊंची बिल्डिंगों में रहते हैं लेकिन अपने पड़ोसी का नाम तक नहीं जानते। पूरा दिन मोबाइल फोन में लगे रहते हैं। और मोबाइल में जिस ट्विटर, फेसबुक पर आप इतना समय खर्च करते हैं उसमें आपके मित्र कोई असली मित्र थोड़े ही हैं। अकेलापन जीवन में बड़ी कठिनाई खड़ी करता है। हमें इसे दूर करना ही चाहिए।