वीरेंद्र नाथ भट्ट

नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के असफल होने के तुरंत बाद राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की घोषणा से देश में 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर सरगर्मियां बढ़ गई हैं। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ धारदार मुद्दे की तलाश में जुटी कांग्रेस को लगता है कि फ्रांस से खरीदे जाने वाले राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में कथित गड़बड़ी के मामले को वह उसी तरह भुना सकती है जिस तरह से 1989 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स तोप खरीद घोटाले को राजीव गांधी के खिलाफ इस्तेमाल किया था।

भारतीय जनता पार्टी ने भी 2019 में सत्ता वापसी के लिए कमर कस ली है वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी नई भूमिका में 2019 में कांग्रेस को सत्ता में लाना चाहते हैं। इन दोनों दलों से हटकर क्षेत्रीय दल केंद्र में काबिज होने के लिए जोड़तोड़ कर महागठबंधन बनाने की सियासत कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 2014 की 282 सांसदों की संख्या के 2019 में और बढ़ने का दावा कर रहे हैं। राहुल गांधी का भी ख्याल है कि वो कांग्रेस की वर्तमान सांसदों की संख्या को 48 से इतना तो बढ़ा ही लेंगे कि सहयोगी दलों की मदद से प्रधानमंत्री की गद्दी पर काबिज होने में सफल हो जाएं। लेकिन इन सबके बीच 2014 के चुनाव परिणाम को लेकर 2019 लोकसभा चुनाव में बदलते राजनीतिक माहौल की समीक्षा की जाए तो यही सवाल उठता है कि आखिर 2019 में किसे बहुमत मिलेगा। स्थितियां साफ हैं और विश्लेषण करें तो 2019 में क्या सम्भावना होगी, उसको लेकर अनुमान लगाया जा सकता है।

2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को 282 सीटें मिलीं और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादों पर जनता ने भरोसा किया और 2014 के बाद से लेकर 2018 तक हुए ज्यादातर विधानसभा चुनावों में भी जनता ने मोदी पर विश्वास जताया है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए जनता का यही भरोसा 2019 में सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। 2014 में जिन राज्यों में सर्वाधिक और शत प्रतिशत सीटें मिली थीं उनमें उत्तर प्रदेश में 80 में 73, गुजरात में 26 में 26, राजस्थान में 25 में 25, मध्य प्रदेश में 29 से 27, झारखंड में 14 में 12, छत्तीसगढ़ में 11 में 10, हरियाणा में 10 में 7, दिल्ली में 7 में 7, उत्तराखंड में 5 में 5, हिमाचल में 4 में 4, गोवा में 2 में 2 सीटें शामिल थीं। इस प्रकार इन 11 राज्यों की कुल 213 में से 198 सीटें भाजपा व सहयोगियों को मिली थीं। विपक्ष को मात्र 15 सीटों पर रुकना पड़ा था। मौजूदा राजनीतिक हालात में सवाल उठ रहे हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का विश्लेषण भी बताता है कि उत्तर प्रदेश में संभावित सपा-बसपा गठबंधन के बाद 73 सीटें भाजपा को नहीं मिल सकतीं। इसी तरह गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा में शत प्रतिशत सीटें मिलना असंभव जैसा है। इन 198 सीटों में से काफी सीटें कम होने की संभावना है। इसके अलावा भाजपा को महाराष्ट्र में 48 में 23, बिहार में 40 में 22, कर्नाटक में 28 में 17, जम्मू-कश्मीर में 6 में 3 और असम में 14 में 7 सीटें मिली थीं। इनमें सीटों के बंटवारे को लेकर महाराष्ट्र में शिवसेना और बिहार में नीतीश से भाजपा की केमिस्ट्री गड़बड़ा रही है। ऐसे में इन 6 राज्यों में 74 सीटों की पुनरावृत्ति 2019 में होगी इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा जिन 5 राज्यों में भाजपा की सबसे खराब स्थिति थी उनमें पश्चिम बंगाल में 42 में 2, ओडिशा में 21 में 1, तमिलनाडु 39 में 1, आंध्र प्रदेश/तेलगाना 42 में 3 और केरल में 20 में एक भी सीट नहीं मिली। इस प्रकार इन 5 राज्यों की 164 सीटों में मात्र 7 सीटें भाजपा को मिली हैं। मौजूदा राजनीतिक माहौल में इन 5 राज्यों में, जहां भाजपा की खराब स्थिति थी, बहुत अधिक सीटें बढ़ने की संभावना नहीं है।

मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, चंडीगढ़, दादर एंड नगर हवेली, दमन एंड दीव, लक्षदीव, पुद्दुचेरी, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार में कुल 17 लोकसभा सीटें हैं। 2014 में इनमें से 5 सीटें भाजपा को मिली थीं। भाजपा 2014 का आंकड़ा बनाए रखेगी यही सबसे बड़ा सवाल है।

देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को 2014 लोकसभा चुनाव में 44 सीटें मिली थीं जो कांग्रेस के इतिहास में अब तक की सबसे कम सीटें हैं। उसे 16 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 44 सीटें मिलीं। इनमें सर्वाधिक 9 सीटें कर्नाटक और 8 सीटें केरल से मिलीं। देश में 20 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए ये माना जा सकता है कि 44 की संख्या 272 तक पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसे में जब दोनों बड़ी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को बहुमत मिलना बहुत बड़ी चुनौती है तो अन्य किसी क्षेत्रीय पार्टी को बहुमत मिलना तो असंभव है। तीसरे मोर्चे में सपा, बसपा, वामदल, टीआरएस, शिवसेना, जेडीयू, एनसीपी आदि सभी क्षेत्रीय दल बहुमत से कोसों दूर खड़े हैं। इसलिए बहुमत की चुनौती सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है।

महागठबंधन बनाम भाजपा 

कैराना लोकसभा उपचुनाव
भाजपा के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा लेकिन सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोक दल के संयुक्त उम्मीदवार होने के बावजूद भाजपा का वोट शेयर कम नहीं रहा। तीन दलों के संयुक्त उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन केवल 44,618 मतों से चुनाव जीत सकीं।
4 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हुकुम सिंह को 5,65,909 मत मिले थे और कुल मतों में उनका वोट शेयर 50.54 प्रतिशत था।
4 सपा को 3,29,081 यानी 29.39 प्रतिशत वोट मिले।
4 बहुजन समाज पार्टी को 1,60,414 वोट यानी 14.33 प्रतिशत मत प्राप्त हुए।
4 राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार को 42,607 यानी 3.81 प्रतिशत वोट मिले।
4 मई 2018 में इस लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को 4,36,564 वोट मिले।

फूलपुर लोक सभा उपचुनाव
इस सीट पर भाजपा की हार का अंतर कैराना से अधिक था। इस चुनाव में सपा, बसपा साथ थे। कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया था।
4 मई 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के केशव प्रसाद मौर्या को 505,364 वोट मिले थे और वोट प्रतिशत 52.43 था।
4 समाजवादी पार्टी को 1,95,256 या 20.33 फीसदी वोट मिले।
4 बहुजन समाज पार्टी को 1,63,256 या 17.05 प्रतिशत वोट मिले।
4 कांग्रेस के उम्मीदवार को 58,127 या 6.05 प्रतिशत वोट मिले।
मार्च 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा को 2,83,462 वोट मिले और सपा के निर्वाचित उम्मीदवार को 3,42,922 वोट मिले। कांग्रेस को 19,353 मत हासिल हुए और सपा ने यह सीट 59,460 मतों के अंतर से जीत ली।

गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव
भाजपा यह सीट बहुत मामूली अंतर से हारी।
4 2014 में यहां ने निर्वाचित भाजपा के उम्मीदवार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5,39,127 वोट के साथ 51.80 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया।
4 समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 2,26,344 या 21.75 प्रतिशत मत मिले।
4 बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 1,76,412 यानी 16.95 प्रतिशत वोट मिले और कांग्रेस को 45,719 यानी 4.39 प्रतिशत वोट मिले।
मार्च 2018 के उपचुनाव में भाजपा को 4,34,632 जबकि बसपा समर्थित समाजवादी पार्टी के निर्वाचित उम्मीदवार को 4,56,513 वोट मिले और जीत का अंतर केवल 21,881 वोटों का था।
इन तीन लोकसभा उपचुनावों के नतीजों से स्पष्ट है कि 2019 में उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन की राह आसान नहीं है और उनका मुकाबला नरेन्द्र मोदी और साधनों से लैस भाजपा के मजबूत संगठन से होना है।