प्रियदर्शी रंजन
इन दिनों बिहार की राजनीति में एक किस्सा वायरल है जिसकी सच्चाई पर दांव तो नहीं लगाया जा सकता मगर लालू के दरबारी इसे जोर-शोर से प्रचारित करने में जुटे हैं। किस्सा कुछ इस तरह है। पटना के 10-सर्कुलर रोड स्थित अपने आवास में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दरबार सजा था। पार्टी के कुछ राज्य स्तरीय नेता, कुछ अधिकारी, कार्यकर्ता, ठेकेदार घेरा बनाकर बैठे थे। हल्के-फुल्के हंसी-मजाक के बीच राज्य व देश की राजनीति पर टीका-टिप्पणी चल रही थी। इसी बीच पार्टी के एक बड़े नेता लालू से कहते हैं, ‘सर, आए दिन सैकड़ों कार्यकर्ता अपने व्यक्तिगत काम को लेकर प्रदेश कार्यालय में आते हैं। उनका कहना है कि अधिकारी उनकी सुन नहीं रहे।’ कुछ देर की खामोशी के बाद लालू का जबाब आता है, ‘सबका सुना जा रहा है। गलत कार्यों में कोई पैरवी नहीं करेगा।’

इस जवाब के बाद फिर मजाक का दौर चल ही रहा था कि एक व्यक्ति ने अपने कुछ काम के लिए किसी अधिकारी को लालू यादव से फोन करने के लिए कहा। पूछने पर पता चला कि फोन करवाने वाले महाशय पार्टी के किसी जिला के अध्यक्ष हैं और सुप्रीमो उनकी बात कभी जाया नहीं जाने देते। मगर राजद सुप्रीमो ने फोन करने से मना कर दिया। साथ ही जिला अध्यक्ष को यह हिदायत भी दे दी कि आगे से किसी अधिकारी को व्यक्तिगत काम के लिए फोन करने को नहीं कहें।
लालू के दरबारियों द्वारा बहुप्रचारित इस किस्से की कोई प्रमाणिकता भले ही न हो मगर इसमें छिपे संदेश को समझा जा सकता है। पिछले कुछ दिनों से यह हवा जोर पकड़ रही है कि लालू यादव बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।

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राजद विधायकों द्वारा राजधानी पटना में आवास कब्जाने के मामले पर माननीयों को फटकार लगाने की बात हो या फिर अपने कार्यकर्ताओं को अतिआक्रामक होने से बचने की नसहीत देने का मामला, लालू का यह अंदाज नया है। शायद उनके इसी अंदाज को प्रचारित करने के लिए ऐसे किस्से-कहानियों का सहारा लिया जा रहा है। या कुछ यूं कहिए कि उपरोक्त किस्से से यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि बिहार की वर्तमान सरकार तथाकथित लालू के पुराने अंदाज से मुक्त है।

कुछ दिनों पूर्व तक विकास विरोधी, दबंग, गंवई, व्यवस्था से ऊपर उठकर अपने लोगों का मददगार, पिछड़ों का प्रणेता व अगड़ों का राजनीतिक दुश्मन जैसी लालू की नकारात्मक पहचान के बीच पत्रकारों, बुद्धिजीवियों व राजनीतिक पंडितों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि मुख्यमंत्री भले ही कोई हो सरकार लालू अंदाज में ही चलेगी। मगर अब तक कोई ऐसा घटना सामने नहीं आई है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि नीतीश सरकार पर लालू का पुराना अंदाज हावी है।
अधिकारियों के तबादले में भी लालू की पसंद-नापसंद से अधिक नीतीश मॉडल का असर है। सूत्र बताते हैं कि राजद सुप्रीमो ने सरकार में बेवजह दखल से खुद को अलग कर रखा है। खासम-खास लोगों को भी वैसे कामों को न करने का अघोषित फरमान है जिससे उनका निजी हित तो पूरा होता है मगर सरकार की बदनामी होती हो। अधिकारियों को भी संदेश दिलवाया गया है कि उनके नाम पर कोई भी ऐसा काम न हो जिससे उनकी छवि पर बुरा असर पड़ता हो। पूर्व में लालू-राबड़ी के सरकार के दौरान यह दृश्य आम था जब पार्टी के लोग छोटे-बड़े कामों के लिए उनके सरकारी बंगले को घेरे रहते थे।

लालू में आए इस प्रचारित बदलाव पर प्रसिद्ध गांधी संग्रहालय के अध्यक्ष और लालू के करीबी डॉ. रजी अहमद से जब यह पूछा गया कि उनमें इस परिवर्तन का आधार क्या रहा होगा तो उन्होंने यह नहीं कहा कि उनमें काई बदलाव हुआ है। बल्कि उन्होंने जबाब दिया, ‘बदलाव छुपाने से नहीं छुपता और न ही जबर्दस्ती जताया जा सकता है। हो सकता है कि वह अपने 15 साल के शासन में जिन गलतियों की वजह से 10 साल तक सत्ता से दूर रहे उसे दोहराना नहीं चाहते होंगे। बेटे तेजस्वी व तेजप्रताप और बेटी मीसा भारती के साथ उनकी अगली पीढ़ी ने पार्टी से लेकर सरकार तक कमान संभाल लिया है। वे कतई नहीं चाहेंगे कि जो आरोप उनके मां-बाप पर चस्पा हुआ वो उन पर भी हो। मुझे लगता है कि लालू में बदलाव का एक बड़ा कारण बिहार की राजनीति में अपने संतानों का भविष्य सुरक्षित करना है।’

लालू नहीं बदल सकते: प्रेम कुमार

prem kumarभारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार विधानसभा में विधायक दल के नेता प्रेम कुमार लालू में आए बदलाव को सिरे से खारिज करते हैं। उनकी और उनकी पार्टी की मानें तो सरकार के मुखिया नीतीश कुमार हैं और नीतीश के मुखिया लालू यादव हैं। वह बड़े नौटंकीबाज हैं। उनका बदलाव भी नौटंकी ही है। प्रेम कुमार कहते हैं, ‘एक प्रचलित कहावत है कि नेचर और सिग्नेचर नहीं बदलता। ठीक उसी तरह लालू यादव कुछ भी कर लें वह खुद को नहीं बदल सकते। सरकार उन्हीं के इशारे पर चल रही है।’ यह पूछे जाने पर कि आप कैसे कह सकते हैं कि उनके इशारे पर सरकार चल रही है? उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री कोई निर्णय लेते हैं तो उसमें लालू की सहमति जरूरी होती है। सरकार के बॉस दिन में कोई फैसला लेते हैं और अगर उनके बॉस को यह पसंद नहीं आता है तो रात में उसे तत्काल बदल दिया जाता है। सरकार में राजद को बड़ी पार्टी होने का फायदा मिलता होगा।  सरकार पर लालू ही हावी हैं। इसका नुकसान बिहार को हो रहा है। नीतीश अपने किए वादे से लालू की वजह से बदल रहे हैं। प्रेम कुमार कहते हैं कि अभी कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होगी। मगर मुख्यमंत्री अपने इस बयान के एक सप्ताह के भीतर ही बदल गए। अब सिर्फ देसी शराब ही बंद होगा। असल में विदेशी शराब माफियों के इशारे पर लालू ने नीतीश कुमार को निर्णय बदलने पर मजबूर किया। यही नहीं, लालू अपने दोनों बेटे का मंत्रालय भी चला रहे हैं।

समाजवादी राजनीति के समर्थक माने जाने वाले पत्रकार नवल कुमार लालू में आए इस बदलाव को परखने व प्रचारित करने वालों में से एक हैं। उनकी मानें तो लालू के इस बदले अंदाज की चर्चा भले ही अब हो रही है मगर इसका आगाज विधानसभा चुनाव के कुछ ही दिनों बाद बेटे तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर की जनता को धन्यवाद देने के लिए निकाली गई धन्यवाद यात्रा से ही हो गई थी। इस दौरान छोटे-छोटे नुक्कड़ संबोधन में लालू ने कहा, ‘जिन लोगों ने वोट दिया वो मेरे अपने हैं, जिन लोगों ने वोट नहीं दिया वो भी अपने हैं। विकास होगा तो सबको लाभ मिलेगा।’ जाहिर है लालू के पूर्व के अनुभवों के आधार पर उनके इस बयान को न तो पार्टी के लोगों ने, न राजनीतिक बुद्धिजीवियों ने और न ही मीडिया ने गंभीरता से लिया।

सरकार में बेवजह किसी की नहीं चलती: संजय सिंह

sanjay_singhलालू में इस बदलाव से महागठबंधन का जदयू खेमा काफी खुश नजर आ रहा है। जदयू में इस खुशी की बड़ी वजह सरकार का नीतीश मॉडल के तहत कार्य करना है। पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह से जब पूछा गया कि क्या लालू में बदलाव से सहमत हैं तो उनका कहना था कि उनकी कार्यशैली बदली है। समय के साथ उनमें परिक्वता का भाव बढा है। यह और बढेगा। वे जिम्मेवार नेता हैं और वे अपनी जिम्मेवारी को प्रदर्शित कर रहे हैं। छात्र आंदोलन के दौरान जैसे लालू की उम्मीद आज करना बेमानी है। या कुछ साल बाद आज जैसे लालू की उम्मीद बेजा है।
सरकार में बेवजह के हस्तक्षेप से लालू के बचने पर उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार मे है और वे पार्टी के मुखिया होने के नाते सरकार को परमर्श का अधिकार रखते हैं। जहां तक बेवजह हस्तक्षेप की बात है तो तीन पार्टियों के गठबंधन वाली इस सरकार में कोई भी गैरजरुरी हस्तक्षेप नहीं करता। मगर किसी की सलाह को अनसुना भी नहीं किया जाता। तो क्या अधिकारी व सरकार इस बार लालू फोबिया से मुक्त हैं तो उनका जवाब था कि किसी पर लालू फोबिया नहीं हैं। जरुरत पड़ने पर मैं भी मंत्रियों व अधिकायिों को फोन करता हूं। वे भी करते ही होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि किसी पर लालू फोबिया सवार है।

लालू के समर्थक कुछ भी कहें मगर बिहार में राजद नेताओं व कार्यकर्ताओं की मनमानी से इनकार नहीं किया जा सकता। राज्य के व्यवसायी व बिहार राज्य व्यवसायी संघ के अध्यक्ष राजीव कुमार के मुताबिक लालू का खुद में बदलाव लाना आसान है पर उनका पार्टी समर्थकों पर जोर नहीं है। राजद के कार्यकर्ता सत्ता में आने से अतिउत्साहित हैं और वे कानून-व्यवस्था को अपने घर का समझते हैं। भागलपुर जिले के एक राजद विधायक की करतूत इसका उदाहरण है। उन्होंने थानेदार को उनकी बात न मानने पर जान से मारने की धमकी दे डाली। लालू भले ही राज्य में सुशासन का माहौल बनाए रखने पर जोर दे रहे हों लेकिन क्या उनके समर्थक इस महौल को बना रहने देंगे?

राजद सुप्रीमो के अतिनिकटतम लोगों में एक पार्टी प्रवक्ता चितरंजन गगन का कहना है कि कल के लालू से आज के लालू से अलग हैं। जिन वजहों से लालू-राबडी सरकार को बुरा-भला कहा गया वो उसके दुहराव से बच रहे हैं। उन तक कार्यकर्ताओं का पहुंच पाना अब आसान हुआ है। किसी की पैरवी करने से पहले वह पूरे मामले की अपने स्तर पर छानबीन कर करते हैं। इसके बाद अगर लगता है कि पैरवी करनी चाहिए तो ही करते हैं।

प्रदेश के बड़े व्यवसायी व लालू के विश्वाास पात्र सुभाष यादव का मानना है कि लालू पहले जैसे थे वैसे ही हैं। फर्क बस इतना है कि पिछले शासनकाल के दौरान उनकी बात को मीडिया में गलत तरीके से परोसा जाता था। गरीबों के हित के लिए उनकी आवाज आज भी बुलंद है। विरोधियों का लालू की अच्छाई पर चर्चा करना यही बदलाव है। कुछ ऐसा ही मानना है लालू के नवरत्नों में शुमार राम कुमार गुप्ता का। लालू से उनकी निकटता 1983 के जमाने से है। लालू में बदलाव पर उनका मनना है कि अब राजनीतिक तौर पर उनकी गुत्थी सुलझ चुकी है। विरोधियों के बदनाम करने के बावजूद जनता ने उन्हें स्वीकार किया। उनमें अन्य नेताओं की तुलना में अच्छाई ज्यादा है। मगर विडबंना है कि बुद्धिजीवियों ने इसे स्वीकार करने में देर कर दी।

लालू के राजनीतिक विरोधी उनके इस अंदाज को ढोंग बता रहे हैं। भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष व जहानाबाद के सांसद डॉ. अरुण कुमार के मुताबिक लालू बड़े ठग हैं। वह लोगों के सामने बदलाव का स्वांग कर रहे हैं। आपके और हमारे बीच खुले तौर वह किसी की पैरवी करने को नहीं कहेंगे। मगर अंदरखाने सारा खेल जारी है। उनमें यह बदलाव प्रायोजित है। वह अपने ऊपर लगे राजनीतिक कलंक को छिपाने की कोशिश कर रहें हैं।

बहरहाल, लालू बदल गए हैं या उनका बदलाव महज दिखावा है, इस पर लालू समर्थकों और विरोधियों का अपना-अपना दावा है। किसके दावे में कितनी सच्चाई है इसकी परख होनी बाकी है। संतान की खातिर बदलाव कहने वाले कह रहे हैं कि उनमें जो कुछ भी बदलाव आया उसकी वजह दोनों बेटों व बिटिया मीसा भारती का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना है। सूत्रों की मानें तो लालू नहीं चाहते कि आने वाले समय में उन पर उठते सवालों का जवाब उनकी संतानों को देना पड़े। उपमुख्यमंत्री व मंत्री बनने के बाद से तेजस्वी यादव व तेज प्रताप यादव की तुलना उनके पिता से की जा रही है। एक यह भी वजह है कि तेजस्वी और तेज प्रताप को जिम्मेवार राजनेता साबित करने के लिए लालू वैसे कामों को सार्वजनिक रूप से करने से गुरेज कर रहे हैं जिससे यह साबित होता हो कि बेटों की कमान पिता के हाथों में है।

दोनों बेटों के हालिया राजनीतिक बयानों से भी ऐसा लगता है कि वे अपने पिता की छवि से खुद को मुक्त साबित करना चाहते हैं। तेजस्वी यादव का जीएसटी बिल पर राज्यसभा में भाजपा को समर्थन का बयान इसी कड़ी से जुड़ा माना गया। हालांकि भाजपा को यह समर्थन सांकेतिक मात्र है। मगर राजद का पहली बार किसी मुद्दे पर भाजपा का समर्थन करने का कदम लालू की राजनीति से अलग माना गया। मगर इस बात से गुरेज भी नहीं किया जा सकता कि लालू ने राजनीति में अपने बेटों को आगे खड़ाकर खुद पीछे रहते हुए बदलाव का संकेत दे दिया है।