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लोकसभा चुनाव को लेकर राज्य में अगर कुछ तय है, तो यह कि इस बार कांग्रेस फिसड्डी नहीं रहने वाली. 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते कांग्रेस की झोली खाली रह गई थी. भाजपा इस बार भले ही २५ का आंकड़ा न दोहरा पाए, लेकिन वह जीत की संभावनाएं नापने-तोलने के बाद ही अपने उम्मीदवार तय कर रही है, उसे केवल भितरघात से बचना है. और, यही उसके लिए असल चुनौती भी है.

भितरघात का लावा सबसे ज्यादा भाजपा में धधक रहा है. इसकी बड़ी वजह वसुंधरा राजे की जिद है, जो पुरानों को साथ लेकर चलने बनाम नए लोगों को मौका देने के बीच भिदी हुई है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने टकराव टालने के लिए राजे के भरोसेमंद 14 मौजूदा सांसदों को टिकट तो दे दिए, लेकिन वह उनके इर्द-गिर्द रिसते विरोध और विवादों के अनगढ़ किस्सों के मद्देनजर अपने स्तर पर सर्वेक्षण कराने से भी पीछे नहीं रहे. सर्वेक्षण के नतीजों ने भले ही शाह को बदमजा किया हो, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस ढलान से निपटने में पार्टी को मुश्किल नहीं आएगी. वहीं विश्लेषकों का मानना है कि यह ऐसा मौका था, जब राजे शाह के साथ अपने तल्ख रिश्तों को तरल बना सकती थीं, जिसे उन्होंने गंवा दिया. कांग्रेस में उम्मीदवार तय करने में केवल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चली. लेकिन, कांग्रेस की दूसरी सूची के चार नाम उसके लिए खतरे की घंटी बजाने वाले हैं. उनके विरुद्ध कार्यकर्ताओं के पास खट्टे तजुर्बों का अंबार है, जो जीत की जड़ें जमने ही नहीं देगा. विश्लेषकों का कहना है कि उक्त नामों को लेकर कार्यकर्ताओं का गुस्सा यूं ही नहीं खदबदा रहा है. वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उक्त नामों पर गहलोत ने सहमति दी है.

फिलहाल तो विरोध का बवंडर दबाना भाजपा के लिए बुनियादी चुनौती है. इससे पहले कि संकट शुरू हो, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के बड़े नेताओं को बुलाकर ‘डैमेज कंट्रोल’ में जुट जाने के निर्देश दे दिए हैं. विरोध का घमासान जिन १४ सीटों पर मचा है, उनमें कोटा, पाली, गंगा नगर, बीकानेर, सीकर एवं जयपुर शहर मुख्य हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने जानबूझ कर ढलान का रास्ता चुन लिया है. उक्त सीटों के उम्मीदवार ‘मिशन-25’ की सबसे कमजोर कड़ी साबित होंगे. लेकिन सूत्र इस निर्णय के पीछे तीन कारण गिनाते हैं, पहला यह कि केंद्रीय नेतृत्व द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में उक्त उम्मीदवारों के जीतने की संभावना शीर्ष पर पाई गई. दूसरा यह कि पार्टी के पास उनके समकक्ष कोई दमदार चेहरा नहीं है. तीसरा यह कि उक्त उम्मीदवार जातीय समीकरणों के सांचे में फिट बैठते हैं. प्रहलाद गुंजल, भवानी सिंह राजावत एवं विद्या शंकर सरीखे पूर्व विधायक बेहिचक ओम बिरला की उम्मीदवारी का विरोध कर चुके हैं. अप्रत्यक्ष रूप से वसुंधरा राजे भी बिरला के विरोध में हैं. उन्होंने कोटा संसदीय क्षेत्र से कोटा राजघराने के सदस्य इज्यराज सिंह की उम्मीदवारी के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया था, लेकिन अमित शाह से नजदीकी के चलते बिरला पर कोई आंच नहीं आई. बिरला का कहना है कि पूरी पार्टी एकजुट होकर लड़ रही है. मिशन है सिर्फ मोदी को दोबारा पीएम बनाना.

बिरला के खिलाफ कांग्रेस ने राम नारायण मीणा को उतारा है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी मौजूदगी बंजर जमीन में भी फसल लहलहा सकती है. यहां पद से ज्यादा कद की लड़ाई है. सुमेधा नंद जातीय समीकरण के सांचे में तो फिट हैं, लेकिन जनता के बीच उनकी कोई स्वीकार्यता नहीं है. अर्जुन मेघवाल की उम्मीदवारी में बीकानेर के कद्दावर भाजपा नेता देवी सिंह भाटी ने इस्तीफे का पेंच फंसा दिया, नतीजतन अदावत ने दिल्ली तक दस्तक दे दी. विश्लेषकों का कहना है कि जबरदस्त जमीनी पकड़ रखने वाले भाटी के विरोध के रहते अर्जुन मेघवाल कैसे जीत पाएंगे? निहाल चंद की राह में पूर्व विधायकों ने विरोध का आरडीएक्स बिछा दिया है. निहाल केंद्र में मंत्री रह चुके हैं, लेकिन बाद में बाहर कर दिए गए. सर्वे में भी उनकी स्थिति मजबूत नहीं है, फिर भी टिकट? वह पार्टी कार्यकर्ताओं को फूटी आंख नहीं भा रहे. कमोबेश यही स्थिति राम चरण बोहरा एवं पीपी चौधरी की है. विश्लेषक कहते हैं कि लोकप्रियता के हाशिये पर सिमटे चुके उक्त पूर्व सांसदों को दोहराने का आखिर क्या मतलब है?

कांग्रेस की दूसरी सूची में सबसे ज्यादा चौंकानेे वाला नाम प्रमोद शर्मा का है, जिन्हें झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से वसुंधरा के पुत्र दुष्यंत सिंह के सामने उतारा गया है. यह नाम आखिरी पलों में घोषित किया गया. अब तक इस सीट से खनन मंत्री प्रमोद भाया की पत्नी उर्मिला जैन का नाम चर्चा में था. प्रमोद शर्मा की पृष्ठभूमि भाजपा की है. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ही उन्हें कांग्रेस में शामिल किया गया था. कहा जा रहा है कि ब्राह्मणों को खुश करने के लिए उन्हें टिकट दिया गया है. लेकिन, वास्तविकता कुछ और है. दरअसल, प्रमोद शर्मा हाल में कांग्रेस में शामिल हुए घनश्याम तिवाड़ी के नजदीकी हंै और उन्होंने ही उनका नाम सुझाया था. दूसरा नाम अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं राजगढ़ की विधायक कृष्णा पूनिया का है, जिन्हें जयपुर ग्रामीण सीट से केंद्रीय मंत्री राज्य वद्र्धन सिंह के सामने मैदान में उतारा गया है. विश्लेषकों का कहना है कि यहां कांग्रेस ने खिलाड़ी के सामने खिलाड़ी का कार्ड ही नहीं खेला, बल्कि जाट समाज को साधने का काम भी किया है. बहरहाल, पार्टी की इस तुरुप चाल का पता कृष्णा पूनिया को भी ऐन वक्त पर चला.

उधर अजमेर संसदीय क्षेत्र से रिजू झुनझुनवाला को उतारा गया है. उनके बारे में कांग्रेस के कार्यकर्ता अचरज के साथ पूछते हैं कि यह कौन हंै? दरअसल, रिजू पूर्व मंत्री बीना काक के दामाद बताए जाते हैं. भीलवाड़ा से


प्रतिष्ठा दांव पर

चुनावी महामुकाबला तो जोधपुर और झालावाड़ संसदीय क्षेत्रों में होगा, जो इस बार सियासत की विरासत के चलते खास बन गए हैं. जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत पहली बार चुनाव में उतरे हैं. वहीं झालावाड़-बारां संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह चौथी बार मैदान में हैं. जोधपुर सीट से मुख्यमंत्री गहलोत पांच बार सांसद रह चुके हैं. इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार एवं केंद्रीय कृषि मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की प्रतिष्ठा दांव पर है.


रामपाल शर्मा का नाम उसी समय से तय माना जा रहा था, जब डाक्टर सीपी जोशी ने चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया था. अलबत्ता, रामपाल को लेकर पूरे भीलवाड़ा में जो चर्चा है, उसके मुताबिक उनकी और पूर्व मंत्री राम पाल जाट की अदावत कांग्रेस की फतह पर भारी पड़ सकती है. इसी तरह राजसमंद से देवकी नंदन जाना-पहचाना नाम तो है, लेकिन रावत बहुल क्षेत्र में वह कैसे जीत का परचम लहराएंगे? गंगा नगर में सारे विकल्प नकार कर भरत राम मेघवाल को उम्मीदवार बनाया गया है. विश्लेषक कहते हैं कि भरत राम व्यवहार कुशल तो हो सकते हैं, लेकिन क्या सियासी तौर पर भी कुशल साबित होंगे?

चुनावी महामुकाबला तो जोधपुर और झालावाड़ संसदीय क्षेत्रों में होगा, जो इस बार सियासत की विरासत के चलते खास बन गए हैं. जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत पहली बार चुनाव में उतरे हैं. वहीं झालावाड़-बारां संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह चौथी बार मैदान में हैं. जोधपुर सीट से मुख्यमंत्री गहलोत पांच बार सांसद रह चुके हैं. इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार एवं केंद्रीय कृषि मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की प्रतिष्ठा दांव पर है. विश्लेषकों का कहना है कि जोधपुर में कांटे की टक्कर होगी. एक तरफ मोदी-शेखावत की जोड़ी होगी, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री गहलोत का चार दशक पुराना राजनीतिक अनुभव. इस रोचक मुकाबले पर पूरे देश की निगाहें रहेंगी. इस सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर कांग्रेस का कब्जा है. ऐसे में शेखावत की उम्मीदें धुंधला सकती हैं. झालावाड़ की कमान वसुंधरा राजे ने खुद संभाल रखी है. पुत्र को जिताने के लिए जाहिर है, वह पूरी ताकत लगा देंगी. दुष्यंत का कहना है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने क्षेत्र में कई विकास कार्य कराए. वसुंधरा राजे तो सीधे-सीधे एक बात कहती हैं, पिछली बार की तरह इस बार भी हम पूरी 25 सीटें जीत कर रिकॉर्ड कायम करेंगे. लेकिन, इस सवाल पर राजे निरुत्तर रहीं कि 16वीं लोकसभा में सवाल पूछने वालों में राजस्थान के सांसद दसवें स्थान पर क्यों रहे? त्र