निशा शर्मा।
जल्लीकट्टू जो तमिलनाडु की संस्कृति और परंपरा से जुड़ा एक खेल है। प्रतिबंध का शिकार हो गया है। हजारों की संख्या में लोग अपने परंपरागत खेल को बचाने की जद्दोजदह कर रहे हैं यही कारण है कि पिछले चार दिनों में तमिलनाडु की सड़कों पर रोष दिख रहा है।
खेल पर प्रतिबंध पेटा की याचिका के बाद लगाया गया था जिसमें कहा गया था कि जानवरों पर अत्याचार खेल नहीं है, संस्कृति नहीं है। ऐसे में तमिलनाडु के लोग तर्क दे रहे हैं कि इस खेल में किसी पर कोई भी अत्याचार किया जाता। लोग मानते हैं कि जल्लीकट्टू को प्रतिबंध किया जाना गलत है। अगर पेटा ऐसे खेल के खिलाफ है, उसे लगता है कि इस खेल से पशुओं पर अत्याचार किया जा रहा है तो पेटा को बकरीद पर भी प्रतिबंध लगवा देना चाहिए। बकरीद पर चुप्प रहने वाले इन संगठनो का यह बैन दोहरा रवैया दिखाता है।
Banning #Jallikattu and continuing with #Bakrid shows double standards of Indian Court's and Secularism.
— #MainBhiChowkidar (@mukki008) January 9, 2017
इस खेल की जानकारी रखने वाले कहते हैं कि इस खेल के दौरान जान बूझकर किसी को भी कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है। हालांकि देश में ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जिनमें जानवरों को धर्म के आधार पर मारा जाता या बलि दी जाती है। पेटा को उन चीजों को भी बंद करवा देना चाहिए जिसमें जानवरों की जान जाती है।
https://twitter.com/gossipdatabase/status/822018264175812608
सोशल साइट पर बहस छिड़ी हुई है कि बकरीद पर बैन क्यों नहीं लगाया जा रहा है। जिस तरह से जानवरों का नरसंहार किया जाता है अगर जानवरों को इरादतन मारना संवैधानिक है तो गैरइरादतन मरे पशु भी संविधान के दायरे में आने चाहिए।
If #jallikattu is prevention of cruelty then what is thinking of about #BAKRID.Is it worship of Hegoats? Why we have double standards @peta
— Anurag Tiwary (@Anurag_k_tiwary) January 18, 2017
कुछ समय पहले ही बीफ बैन पर जोरों- शोरों से चर्चा गर्म हुई थी। लेकिन उसके बावजूद बीफ पर पूरे देश में बैन नहीं लग पाया। उसी देश में उस खेल पर बैन लगाया जा रहा जिसमें किसी पशु की इरादतन हत्या नहीं की जाती या उसे इरादतन कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाता।