नई दिल्ली। आमतौर पर किसी भी व्‍यक्ति का अंतिम संस्‍कार सिर्फ एक बार होता है, लेकिन तमिलनाडु की पूर्व मुख्‍यमंत्री जयललिता का अंतिम संस्‍कार दो बार किया गया। पार्थिव शरीर का दाह न किए जाने से जयललिता का अंतिम संस्कार विवादों में घिर गया है। उनके पार्थिव शरीर को दफनाए जाने का विरोध हो रहा है। यही वजह है कि श्रीरंगापट्टनम में उनका सांकेतिक दाह किया गया।

दरअसल, जयललिता को दफनाया गया था, लेकिन उनके रिश्तेदारों ने इस पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि जयललिता अयंगकर समुदाय से जुड़ी थीं और इसमें दाह की परंपरा है। श्रीरंगापट्टनम में एक बार फिर जयललिता का अंतिम संस्कार किया गया। इस बार दाह संस्कार अयंगकर समुदाय के रीति-रिवाज से किया गया।

शव की जगह एक गुड़िया को उनकी प्रतिकृति मानते हुए रखा गया। आचार्य रंगनाथ ने रस्में पूरी करवाईं। जयललिता के सौतेले भाई वासुदेवन के करीबी वरदराजन का मानना है कि जयललिता को दफनाया गया,  न कि उनका दाह संस्कार किया गया। इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो,  इसलिए ये दाह संस्कार किया गया।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मंगलवार को श्रीरंगपटना में कावेरी नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार फिर से किया गया। संस्कार से जुड़े कुछ और कर्म अभी शेष हैं, जो अगले पांच दिन तक पूरे कर लिए जाएंगे।

जयललिता के निधन के बाद एमजीआर के स्‍मारक के निकट उन्‍हें दफनाया गया था। जयललिता की करीबी दोस्त शशिकला ने उनके अंतिम संस्कार की आखिरी रस्मों को पूरा किया था। जन्म से ब्राह्मण और माथे पर अक्सर अयंगर नमम (एक प्रकार का तिलक) लगाने वाली जयललिता को दफनाया गया था।

वैसे तो अयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्कार की परंपरा है, बावजूद इसके तमिलनाडु सरकार ने जयललिता को दफनाने का फैसला लिया। कुछ लोग इसे द्रविड़ आंदोलन से जोड़ कर देखते हैं। उनके मुताबिक द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता मसलन पेरियार,  अन्‍नादुरई व एमजी रामचंद्रन जैसी शख्सियतों को दफनाया गया था। इस‍ लिहाज से दाह-संस्कार की कोई मिसाल नहीं है। इन वजहों से चंदन व गुलाब जल के साथ दफनाया जाता है। इसलिए इसी विधि के साथ जयललिता को दफनाया गया। जयललिता का निधन 5 दिसंबर को चेन्‍नई के अपोलो अस्पताल में हुआ था।