अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली। आज पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से “भाजपा बचाओ-देश बचाओ” रैली आयोजित हुई। महागठबंधन टूटने के बाद यह रैली विपक्षी एकता से अधिक राजद बचाओ और लालू परिवार को बचाओ कहना ज्यादा सही होगा। राजधानी पटना में आयोजित इस रैली में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव,झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी,झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद,जनता दल यूनाइटेड के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव, राज्य सभा सांसद अली अनवर, एनसीपी के सांसद तारिक अनवर, सीपीआई के डी.राजा और राष्ट्रीय लोकदल के नेता और चौधरी अजीत सिंह के पुत्र जयंत चौधरी ने शिरकत की। जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इस रैली में शामिल होना और मायावती का इससे अलग रहना काफी चर्चा में रहा।

इस रैली में जहां महागठबंधन टूटने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी महत्वकांक्षा को जिम्मेदार बताया गया। वहीं राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनके पुत्र तेजप्रताप यादव ने अपने संबोधन में भाजपा और आरएसएस पर जमकर भड़ास निकाली और विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। लालू प्रसाद और इस रैली में हिस्सा लेने आए समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं से यह पूछा जाना चाहिए कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में नाकाम क्यों रहे? छह महीने पहले उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए उस चुनाव में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने भाजपा को रोकने के लिए आपस में गठबंधन क्यों नहीं किया? साल 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में लालू प्रसाद की रैली के बहाने विपक्षी एकता का प्रदर्शन करने आए राजनीतिक दलों के नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे अपने-अपने राज्यों में भाजपा के खिलाफ कोई संयुक्त गठबंधन बनाएंगे?

भारतीय राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। संभव है साल 2019 के चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता जो आज लालू प्रसाद की रैली में आए थे। उनमें से कुछ दल भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन न करे लें! रही बात समाजवादी पृष्ठभूमि से जुड़े दलों की एकता की तो यह बात किसी हास्य से कम नहीं है। वह इसलिए कि समाजवादी दलों का आपसी बिखराव एक सनातन सच्चाई है। अगर इनकी सोच आपसी एकता की रही होती तो डॉ. राममनोहर लोहिया के जमाने से आज तक समाजवादी दलों में दर्जन बार से अधिक बिखराव नहीं हुआ होता। कुल मिलाकर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की रैली भीड़ के लिहाज से सफल कही जा सकती है, लेकिन यह रैली आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत करेगा, इसमें शक है।