निशा शर्मा।

‘जित लाहौर नईं वेख्या वो जन्‍म्‍या ई नईं’ नाटक से लोगों के जहन में बसने वाले जाने-माने नाटककार असगर वजाहत फिर चर्चा में हैं। असगर वजाहत नया नाटक लिख रहे हैं, जिसका नाम ‘महाबली’ है। इस नाटक की सबसे प्रमुख बात यही है कि नाटक तुलसीदास के जीवन पर आधारित है।

असगर वजाहत कहते हैं कि ”इस नाटक में तीन तथ्यों को उभारने की कोशिश की गई है। पहला तथ्य तुलसीदास द्वारा विचारों की लोकतांत्रिक परंपरा को आम आदमियों तक पहुँचाना जिससे कि आम आदमी भी सशक्त होते है। तुलसीदास ने रामकथा को जनमानस तक पहुंचाया।

दूसरा तथ्य तुसलीदास ने लोकभाषा का इस्तेमाल किया। सत्ता की भाषा अवधी का प्रयोग किया और आम बोलचाल की भाषा में इतना बढ़ा महाकाव्य लिखा।”

वजाहत कहते हैं कि ”तीसरा तथ्य सत्ता और कला के आपसी संबंधों पर प्रकाश डालना मेरी कोशिश रही है। जिसमें आप पढ़ेंगे कि तुलसीदास में कभी सत्ता का मोह नहीं रहा।”

‘महाबली’ शीर्षक को लेकर वजाहत कहते हैं कि पाठकों और दर्शकों को यह सुविधा होती है कि वह चरित्र को जिस रूप में देखना और समझना चाहें समझ सकते हैं।

नाटक को लिखने में लेखक के मुताबिक उन्हें काफी लंबा समय लगा लेकिन यह इतना समय क्यों लगा इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि ” मन में बात पकते-पकते काफी समय लगता है। फिर बातों-विचारों को सुनियोजित करना होता है और इसमें भी समय लगता है हालांकि इस नाटक को मैंने लिखने में करीब छह महीने लगाए। लेकिन अभी भी इस उपन्यास पर काम हो रहा है।”

हालही में साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित साहित्य मंच में असगर वजाहत ने श्रोताओं के सामने नाटक का तीसरा और अंतिम भाग पढ़ा था, जिसमें मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास की बातचीत है। सपने में की गई यह बातचीत सत्ता और कला के संबंधों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालती है। तुलसीदास सम्राट अकबर को महाबली नाम से संबोधित करते है। यह नाम अब्दुल रहीम खानखाना द्वारा दिया गया है। सम्राट अकबर तुलसीदास को गोस्वामी नाम से संबोधित करते है और उनसे सीकरी ना आने का कारण पूछते है। पूरा संवाद बहुत ही सरल, छोटे वाक्यों में और तीक्ष्ण व्यंग्य लिए हुए था। नाटक के अन्य पात्रों में तुलसीदास के शिष्य और टोडरमल और अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख हैं।

बता दें कि असगर वजाहत एक जाने-माने रचनाकार हैं। इनकी रचनाएं नाटक, कथा, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत और अनुवाद के तौर पर लोगों में चर्चित हैं।