नई दिल्‍ली।

तिब्बत में तैनात चीनी सेना ने दूरवर्ती हिमालयी क्षेत्र में अपने साजो-सामान, हथियारों को समर्थन देने की क्षमताओं और सैन्य-असैन्य एकीकरण का निरीक्षण करने के लिए अभ्यास किया।

आधिकारिक मीडिया ने एक रिपोर्ट में जानकारी दी कि डोकलाम विवाद के बाद तिब्बत में चीन का ये पहला सैन्य अभ्यास है। चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पिछले साल अगस्त में 4,600 मीटर की ऊंचाई पर 13 घंटे तक अभ्यास किया था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्लेषकों ने मंगलवार को किए गए अभ्यास की तारीफ की। उन्होंने इसे सैन्य-असैन्य एकीकरण की ओर महत्वपूर्ण कदम बताया। साथ ही नए युग में मजबूत सेना का निर्माण करने के देश के लक्ष्य को हासिल करने की रणनीति करार दिया। चीनी सेना का यह अभ्यास स्थानीय कंपनियों और सरकार के सहयोग से किया गया।

असैन्य एकीकरण की रणनीति तिब्बत में अहम बात है। वहां दलाई लामा की विरासत अब भी कायम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तिब्बत के पठार में विषम जलवायु है। उसकी भौगोलिक स्थिति भी जटिल है। लंबे समय से वहां सैनिकों को साजोसामान और हथियार सहयोग मुहैया कराना बहुत मुश्किल है। लिहाजा ये अभ्यास किया गया।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने कमांड लॉजिस्टिक सपोर्ट डिपार्टमेंट के प्रमुख झांग वेनलोंग के हवाले से एक डिटेल रिपोर्ट दी है, जिसमें बताया गया है कि विषम परिस्थितियों में सैनिकों के बचे रहने, आपूर्ति, बचाव, आपात रखरखाव और सड़क सुरक्षा में परेशानियों को हल करने के लिए सेना ने सैन्य-असैन्य एकीकरण की रणनीति अपनाई है।

सैन्य विशेषज्ञ सोंग झोंगपिंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा, “अत्यधिक ऊंचाई पर लड़ाई में सबसे बड़ी चुनौती सतत साजोसामान और हथियार मुहैया कराना है। 1962 में चीन-भारत सीमा संघर्ष में चीन पर्याप्त साजो-सामान मुहैया न होने की वजह से इस जीत का पूरा फायदा उठाने में विफल रहा। हालांकि, स्थानीय तिब्बती निवासियों ने अस्थायी सहयोग के तौर पर सैनिक मुहैया कराए, लेकिन वह सतत नहीं था।”

एक हिंदी दैनिक की खबर में बताया गया है कि डोकलाम विवाद के बाद पहली बार चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत में हजारों फुट की ऊंचाई पर सैन्य अभ्यास किया है।