बीजिंग।

चीन संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के साथ खड़ा है। ऐसे में भारत और अमेरिका मिलकर अगले कदम पर विचार कर रहे हैं, क्‍योंकि चीन आतंकवाद की पनाहगाह बने अपने दोस्त पाकिस्तान की ढाल बनने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता।

यही वजह है कि चीन कई बार वैश्विक मंच पर भी अपनी किरकिरी करवा चुका है। चीन द्वारा बार-बार मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित होने से बचाने के खिलाफ अब भारत और अमेरिका साथ आने वाले हैं। नई नीति के मुताबिक,  इसमें चीन की नकेल कसने के लिए उस पर कोई दवाब नहीं बनाया जाएगा बल्कि यह देखा जाएगा कि जैश ए मोहम्मद और उसके जैसे आतंकी संगठनों को कैसे कमजोर किया जा सकता है।

इसके लिए दिसंबर में भारत और यूएस के अधिकारियों के बीच मुलाकात भी होगी जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी। इसमें सभी आतंकी संगठनों पर दवाब बनाकर रखने की प्लानिंग होगी। यह तय किया जाएगा कि मसूद के बाद यूएन के सामने किन-किन आतंकियों पर बैन लगाने की मांग उठानी है।

आतंकियों पर नकेल कसने के लिए नई नीति बनाने पर बात गर्मियों में डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी की मुलाकात में तय हुई थी। मीटिंग में तय हुआ था कि अल कायदा, आईएसआईएस, जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तय्यबा, डी कंपनी और उनके जैसे बाकी आतंकी संगठनों के खिलाफ दोनों देश एकजुट हैं।

इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक में इस नए परामर्श-तंत्र पर सहमति बनी थी। बैठक के बाद दोनों ओर से जारी हुए संयुक्त बयान में अल-कायदा, आईएसआईएस, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, डी कंपनी जैसे आतंकवादी संगठनों के खतरे से निपटने के लिए मजबूत समन्वय बनाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की गई थी। दोनों नेताओं ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के खिलाफ नया परामर्श तंत्र विकसित करने पर सहमति जताई थी।

उदाहरण के लिए, मसूद अजहर का भाई अब्दुल राउफ असगर, इस लिस्ट में अगला नाम हो सकता है। राउफ पर पठानकोठ एयरबेस पर हुए आतंकवादी हमले में शामिल होने का आरोप है। अजहर का दूसरा भाई मौलाना इब्राहिम अतर अल्वी IC-814 के अपहरण का मास्टरमाइंड है। इसके बाद ही भारत को यात्रियों को छुड़ाने के ऐवज में अजहर को जेल से रिहा करना पड़ा था।

भारत के पास पाकिस्तानी की सेना और खुफिया एजेंसियों के समर्थन से काम कर रहे अन्य आतंकवादियों की लिस्ट है, जिसे वह 1267 सदस्यीय समिति के सामने पेश करना चाहता है। अगर पेइचिंग सरकार लगातार खतरनाक आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही में रोड़े अटकाती रहेगी तो उसे वैश्विक आतकंवाद का समर्थक माना जाएगा।

चीनी अधिकारी इस बात पर आश्वस्त हैं कि अमेरिका उन पर अजहर को लेकर दबाव नहीं डालेगा क्योंकि उत्तर कोरिया के साथ लगातार खराब होते उसके संबंधों में उसे चीन की जरूरत है। चीन ने खुद भी पाकिस्तान से ईटीआईएम आतंकवादियों के खिलाफ अपने नए राजदूत के लिए अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की है। इनमें से कई आतंकवादियों की ट्रेनिंग पाकिस्तान में ही हुई है।