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महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम दो बार विश्व चैंपियन बनी. दोनों ही मौकों पर टीम इंडिया के सिर पर जीत का सेहरा बांधने में एक खिलाड़ी ने सबसे अहम भूमिका अदा की और वह थे युवराज सिंह. अगर टीम को विराट कोहली की कप्तानी में इंग्लैंड विश्व कप में जीत हासिल करनी है, तो इसमें धोनी की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. क्या धोनी विराट के ‘युवराज’ बन पाएंगे?

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का नाम लेते ही प्रशंसकों के जेहन में शांत मिजाज के एक ऐसे खिलाड़ी की तस्वीर उभरती है, जिसने भारतीय क्रिकेट को अनगिनत गौरवशाली पल दिए. धोनी के प्रशंसक मानते हैं कि उनका जन्म सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट खेलने के लिए हुआ और उनकी रगों में खून नहीं, क्रिकेट दौड़ता है. दुनिया भर में ‘कैप्टन कूल’ के नाम से विख्यात धोनी दबाव और विपरीत परिस्थितियों के बीच भी उम्दा खेलते हैं. उनका दिमाग सामान्य परिस्थितियों की तुलना में दोगुनी गति से काम करने लगता है. यह हुनर शायद ही किसी अन्य खिलाड़ी के पास हो. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तकरीबन 15 साल का समय गुजारने के बाद धोनी को आज भी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ फिनिशर माना जाता है. उनकी पहचान एक ऐसे खिलाड़ी की है, जो आखिरी गेंद तक हार मानने को तैयार नहीं होता. 30 मई से इंग्लैंड की मेजबानी में शुरू हो रहे 12वें एक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम खिताब की सबसे बड़ी दावेदार मानी जा रही है. अगर टीम इंडिया को इस बार विश्व चैंपियन बनना है, तो उसमें महेंद्र सिंह धोनी की भूमिका सबसे अहम होगी.

बल्लेबाजी के लिहाज से साल 2018 धोनी के लिए बेहद खराब गुजरा. एक साल में धोनी एक दिवसीय क्रिकेट में एक भी अद्र्धशतक नहीं जड़ सके. ऐसे में, उनकी विश्व कप के लिए टीम में शामिल होने की दावेदारी कमजोर होने लगी. उन्हें लेकर भारतीय क्रिकेट में एक नई बहस छिड़ गई. युवा विकेट कीपर बल्लेबाज रिषभ पंत को उनकी जगह टीम में शामिल करने की वकालत कई पूर्व खिलाड़ी करने लगे. लेकिन, धोनी पर इस विवाद का कोई असर नहीं पड़ा. 2018 के असफल दौर को पीछे छोड़ते हुए धोनी ने नए साल की शुरुआत बेहद आक्रामक अंदाज में की और ऑस्ट्रेलिया में खेली गई तीन मैचों की वनडे सीरीज में धमाकेदार प्रदर्शन करके सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए. धोनी ने कंगारूओं के खिलाफ तीन मैचों की वनडे सीरीज में लगातार तीन अद्र्धशतक जड़े और टीम इंडिया की 2-1 से ऐतिहासिक जीत में अहम भूमिका अदा की. तीन मैचों की तीन पारियों में धोनी ने एक बार नाबाद रहते हुए 193 रन बनाए. उन्हें ‘मैन ऑफ द सीरीज’ से नवाजा गया. जिस तरह साल 2011 में भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व चैंपियन का  खिताब दिलाने में धोनी की कप्तानी के साथ-साथ युवराज सिंह के हरफनमौला प्रदर्शन की भूमिका थी. कुछ इसी तरह की उम्मीद इस बार धोनी से की जा रही है.

मिलेगा धोनी के ‘विराट’ अनुभव का फायदा

विराट कोहली को विश्व कप के दौरान धोनी के डेढ़ दशक लंबे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के अनुभव का पूरा फायदा मिलेगा. धोनी ने टीम इंडिया की सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ते समय बीसीसीआई से कहा था कि वह यह निर्णय आगामी विश्व कप के मद्देनजर कर रहे हैं, ताकि नए कप्तान को अपनी टीम तैयार करने के लिए पूरा समय मिल सके. इसके अलावा धोनी ने यह वादा भी किया था कि विराट को जब कभी मदद की दरकार होगी, वह उनके साथ खड़े मिलेंगे. तबसे लेकर अब तक यही होता आ रहा है. धोनी अब भी टीम इंडिया के फील्डिंग कप्तान की भूमिका में नजर आते हैं. धोनी की मदद और अन्य सदस्यों के शानदार प्रदर्शन की बदौलत विराट की कप्तानी में टीम इंडिया ने सफलता के नए आयाम गढ़े. मैच के दौरान जब कभी विराट परेशानी में हुए, तो धोनी ने आगे आकर टीम को परेशानियों से बाहर निकाला. किस परिस्थिति में गेंद किस गेंदबाज को सौंपनी है और किस पोजीशन पर किस खिलाड़ी को तैनात करना है, गेंदबाजी के दौरान विराट इन सभी बातों का निर्णय विकेट के पीछे हर वक्त चौंकन्ने खड़े रहने वाले धोनी की सलाह लेकर करते हैं. डीआरएस( डिसीजन रिव्यू सिस्टम) का इस्तेमाल कब करना है और कब नहीं, इस बारे में विराट और टीम के लिए धोनी का निर्णय ही पत्थर की लकीर साबित होता है. रिव्यू के मामले में धोनी इतने निपुण हैं कि कॉमेंटेटर टीम इंडिया के मैच के दौरान ‘डीआरएस’ को धोनी रिव्यू सिस्टम भी बता चुके हैं.


आईसीसी टूर्नामेंट्स में है खराब रिकॉर्ड

धोनी भले ही भारतीय टीम को दो बार विश्व विजय दिला चुके हैं, लेकिन आईसीसी के वनडे टूर्नामेंट्स में उनका रिकॉर्ड बेहद खास नहीं रहा. अब तक कुल सात आईसीसी वनडे टूर्नामेंट्स में धोनी ने 36 मैच खेले, जिनकी 25 पारियों में नाबाद रहते हुए उन्होंने 34.35 के औसत और 88.87 के स्ट्राइक रेट से कुल 687 रन बनाए. इस दौरान उनके बल्ले से कुल पांच अद्र्धशतक निकले और उनका उच्चतम स्कोर नाबाद 91 रन रहा, जो उन्होंने 2011 के विश्व कप फाइनल में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में श्रीलंका के खिलाफ बनाए थे. साल 2006 में भारत में आयोजित चैंपिंयस ट्रॉफी उनके करियर का पहला आईसीसी टूर्नामेंट था, जिसमें धोनी तीन मैचों की तीन पारियों में 28.66 के औसत से कुल 86 रन बना सके थे. जबकि 2017 की चैंपियंस ट्रॉफी में पांच मैचों की दो पारियों में वह कुल 67 रन बना सके थे.


क्रिकेट का विदुर – धोनी मैदान पर खेल को जिस तरह पढ़ते हैं, दुनिया में इस मामले में और कोई क्रिकेटर धोनी की बराबरी पर नहीं है. उनकी रणनीति की पूरी दुनिया कायल है. विकेट के पीछे से धोनी गेंदबाजों को जो सलाह देते हैं, वह दोनों टीमों के बीच जीत और हार का अंतर पैदा कर देती है. धोनी नए खिलाड़ी गढ़ते हैं और उनका स्वयं का प्रदर्शन टीम के प्रदर्शन में चार चांद लगा देता है. इसी वजह से भारतीय टीम अन्य टीमों की तुलना में अलग दिखाई देती है. युवराज भी कई बार कह चुके हैं कि आगामी विश्व कप में विराट को धोनी की जरूरत निर्णय लेते समय पड़ेगी. युवराज का मानना है कि धोनी को क्रिकेट की बहुत अच्छी समझ है, विराट को सलाह के लिए उनसे बेहतर और कोई खिलाड़ी नहीं मिल सकता. इसके अलावा विकेट कीपर के रूप में धोनी उस पोजीशन में होते हैं, जहां से मैच पर सबसे बेहतर तरीके से नजर रखी जा सकती है. धोनी पिछले एक दशक से यह काम भारतीय टीम के लिए करते चले आ रहे हैं. विराट को सलाह देने के अलावा वह मैच में विरोधी टीम के बल्लेबाजों के खेल के आधार पर फील्डिंग में भी लगातार जरूरी बदलाव करते रहते हैं. युवा गेंदबाजों को वह हर गेंद पर विरोधी बल्लेबाजों को आउट करने के लिए सुझाव देते रहते हैं, जिसका फायदा कुलदीप यादव एवं युजवेंद्र चहल जैसे स्पिनर्स को लगातार मिलता रहा है.

नहीं है धोनी से बेहतर विकल्प – विश्व कप के लिए धोनी से बेहतर विकेट कीपर टीम इंडिया के पास उपलब्ध नहीं है. युवा विकेट कीपरों की तरह वह विकेट के पीछे लंबी और ऊंची छलांग नहीं लगा सकते, बावजूद इसके उनकी विकेट कीपिंग दिनेश कार्तिक एवं रिषभ पंत से कई गुना बेहतर है. विकेट के पीछे वह उनसे बेहतर कैच लपकने में सक्षम हैं. स्टंपिंग के मामले में उनके जैसी तेजी शायद ही दुनिया में अन्य किसी विकेट कीपर के पास हो. इस बात का सुबूत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा स्टंपिंग करने का रिकॉर्ड है. धोनी मध्य क्रम के बल्लेबाज हैं. वह निचले क्रम पर बल्लेबाजी करते हुए 10,000 से ज्यादा एक दिवसीय रन बनाने में सफल हुए. आज भी उनके अंदर लंबे शॉट्स खेलने की क्षमता है, जो अंतिम ओवरों में टीम को अतिरिक्त बढ़त दिलाने के लिए जरूरी है. अगर हार्दिक पांड्या और केदार जाधव निचले क्रम पर बल्लेबाजी की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो टीम मैनेजमेंट धोनी को विश्व कप में नंबर चार पर बल्लेबाजी करने की जिम्मेदारी दे सकता है.

जीत के साथ कहना चाहेंगे क्रिकेट को अलविदा – भारतीय टीम में इस समय जो खिलाड़ी खेल रहे हैं, उनमें 2011 विश्व कप में जीत हासिल करने वाली टीम के केवल दो सदस्य हैं, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली. दोनों के जेहन में उस जीत की यादें आज भी ताजा हैं. दोनों ही खिलाड़ी उस ऐतिहासिक सफलता को करियर में एक बार फिर दोहराना चाहते हैं. संभवत: आगामी विश्व कप उनके करियर का आखिरी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट साबित हो. ऐसे में उनकी योजना भी धमाकेदार अंदाज में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने की होगी. हालांकि, इस बारे में न तो धोनी और न बीसीसीआई ने कोई बयान दिया है. यह बात भले जगजाहिर न हो, लेकिन विराट कोहली एवं रवि शास्त्री को निश्चित तौर पर इसकी जानकारी होगी. धोनी अपने क्रिकेट करियर में वह सब कुछ हासिल कर चुके हैं, जो हर खिलाड़ी चाहता है. सचिन तेंदुलकर ने 24 सालों के लंबे करियर में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वही उपलब्धियां धोनी ने महज 15 सालों के करियर में हासिल कीं. आज धोनी का नाम सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, कपिल देव एवं विराट कोहली जैसे महान खिलाडिय़ों की सूची में शुमार है. लेकिन, धोनी इन सभी से एक कदम आगे निकलना चाहते हैं और वह ऐसा टीम इंडिया को दोबारा विश्व कप जिताकर कर सकते हैं.

एक पैकेज, कई धमाके – धोनी जैसे खिलाड़ी को हर कप्तान विश्व कप की अपनी टीम में चाहता है. उनके होने से टीम मैनेजमेंट के कई काम आसान हो जाते हैं. वह एक साथ कई पैकेज टीम के लिए लेकर आते हैं. धोनी इस समय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर हैं. उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ फिनिशर माना जाता है. वनडे क्रिकेट में उन्हें 300 से ज्यादा मैचों का अनुभव है. वह ऑन फील्ड गेंदबाजी कोच की भूमिका अदा करते हैं. डीआरएस के इस्तेमाल के लिए वह कप्तान की तीसरी आंख हैं. फील्डिंग के दौरान वह एक तरह से कार्यवाहक कप्तान की भूमिका अदा करते हैं. टेलेंडर्स के साथ बल्लेबाजी करते हुए बैटिंग कोच भी बन जाते हैं. उनसे बेहतर कोई मैच प्लानर नहीं है और उनकी मैच अवेयरनेस एवं आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग का हर कोई कायल है. जब कप्तान का हर हथियार नाकाम हो जाता है, तब ‘प्लान धोनी’ काम करता है. ऐसे में, विश्व विजय के महाभारत में धोनी कैप्टन कोहली के पास उपलब्ध सबसे अचूक और विराट हथियार हैं. अगर धोनी का जादू इस बार विश्व कप में चल निकला, तो टीम इंडिया को तीसरी बार दुनिया जीतने से कोई नहीं रोक सकता.