प्रियदर्शी रंजन

एनडीए के घटक राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की ओर से पिछले दिनों राजधानी पटना में मानव शृंखला बनाने का आयोजन किया गया। इस शृंखला में शामिल होने के लिए सभी दलों को खुला आमंत्रण था। उम्मीद की जा रही थी कि जिस तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आह्वान पर बाल विवाह व दहेज प्रथा के खिलाफ मानव शृंखला में एनडीए के सभी घटक दलों का सहयोग मिला, वैसा ही सहयोग एनडीए की ओर से उपेंद्र कुशवाहा को भी मिलेगा लेकिन एनडीए के घटकों ने इस शृंखला से दूरी बना ली। जबकि विपक्षी दलों के नेता उपेंद्र कुशवाहा का हाथ थामे नजर आए। राजद की ओर से प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे व शिवानंद तिवारी के अलावा कांग्रेस के कई नेताओं ने रालोसपा की शृंखला को लंबा करने में योगदान दिया। भाजपा, जदयू, लोजपा और हम के नेताओं का इससे दूरी बनाने से एनडीए की भीतरी रार बाहर आ गई है।
एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी के बाद से ही यह कयास लगाया जा रहा है कि रालोसपा की एनडीए से विदाई तय है। मगर एनडीए के मुख्य दल भाजपा और जदयू ने इस बाबत खुल कर कभी नहीं बोला। बिहार सरकार की शिक्षा नीति के खिलाफ मानव शृंखला के आयोजन के बाद एनडीए के कमोबेश सभी दलों ने उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ तलवार खींच ली है। भाजपा कोटे से बिहार सरकार में पर्यटन मंत्री प्रमोद मिश्र एक सवाल के जवाब में ओपिनियन पोस्ट से कहते हैं, ‘रालोसपा अगर बाहर चली जाती है तो एनडीए की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। भाजपा और एनडीए एक समुद्र की तरह है। समुद्र से एक लोटा पानी निकाल लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल एनडीए में हैं और एनडीए में रहने और नहीं रहने का फैसला वही कर सकते हैं।’ उपेंद्र कुशवाहा से पहले से खार खाई जदयू उन्हें एनडीए विरोधी बता रही है। जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव के मुताबिक, ‘रालोसपा एनडीए विरोधी गतिविधियां पिछले कुछ समय से चला रही है। उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में मंत्री हैं और उन्हें शिक्षा में सुधार करने से किसी ने नहीं रोका है। इस तरह मानव शृंखला का आयोजन कर वे राज्य में भ्रम पैदा कर रहे हैं जिसमें उन्हें जदयू की ओर से सहयोग नहीं मिलने वाला है।’
इस जुबानी जंग में रालोसपा के नेता भी खुलकर ताल ठोक रहे हैं। रालोसपा नेता नागमणि का कहना है, ‘अगर एनडीए को परेशानी है तो उनके नेता खुलकर कहें। रालोसपा एनडीए से बाहर जाने में संकोच नहीं करेगी।’ रालोसपा सूत्रों के मुताबिक कुशवाहा चाहते हैं कि भाजपा उन्हें एनडीए से बाहर का रास्ता दिखा दे जिससे वह सहानभूति लहर पर सवार हो सकें। लेकिन भाजपा और जदयू की रणनीति से यह जाहिर हो रहा है कि वे कुशवाहा को शहीद करने के मूड में नहीं हैं।

एनडीए में घटेगा रालोसपा का कद!
एनडीए में ठनी रार के पीछे तात्कालिक कारण भले ही बिहार सरकार की शिक्षा नीति के खिलाफ मानव शृंखला का आयोजन हो मगर इसके पीछे का असली कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा है। राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि एनडीए का अगर यही गठजोड़ लोकसभा चुनाव तक कायम रहता है तो रालोसपा को चुनाव लड़ने के लिए महज एक सीट मिलेगी। जबकि अभी उपेंद्र कुशवाहा सहित लोकसभा में रालोसपा के तीन सांसद हैं। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा से सीटों के बंटवारे के बारे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस बारे में अभी कुछ भी कहना बुद्धिमानी नहीं होगी। प्रदेश की राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर के मुताबिक, ‘बिहार की 40 में से 33 लोकसभा सीटों पर अभी एनडीए का कब्जा है। इसमें 2014 में अकेले चुनाव लड़ने वाली जदयू की दो सीटें भी शामिल हैं। 2019 के चुनाव में जदयू के साथ भी सीटों का बंटवारा करना होगा। ऐसे में जीतन राम मांझी और कुशवाहा जैसे सहयोगियों को नजर अंदाज किया जाना तय है। विधानसभा चुनाव में कोयरी वोट को एनडीए के पाले में न लाने से भाजपा को कुशवाहा की वास्तविक ताकत का अंदाजा हो गया है। उनके पास एनडीए छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है मगर वे मंत्री पद भी नहीं छोड़ना चाहते हैं। अगर रालोसपा एनडीए के साथ रहती है तो संभव है उसे अपने कद से समझौता करना होगा जो पहले के मुकाबले छोटा होगा।’
नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा की घनिष्ट दोस्ती और दुश्मनी दोनों को बिहार ने खूब देखा है। 2002 में बिहार विधानसभा में कदम रखने वाले कुशवाहा ने 2014 में लोकसभा तक का जो सफर तय किया है वह नीतीश समर्थन और नीतीश विरोध के ही बूते है। कभी उपेंद्र को नीतीश का बेहद भरोसेमंद गिना जाता था लेकिन 2005 में जदयू-भाजपा की सरकार बनने के बाद नीतीश ने उन्हें किनारे कर दिया। इससे नाराज कुशवाहा ने राकांपा का हाथ थाम लिया और प्रदेश अध्यक्ष बन गए। बाद में वापस जदयू में लौट आए। जुलाई 2010 में जदयू ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया लेकिन वे इतने भर से संतुष्ट रहने वाले नहीं थे। नीतीश के साथ नए सिरे से संबंधों को वे लंबे समय तक जारी नहीं रख सके और फिर से पार्टी छोड़ दी। 2012 में उन्होंने अरुण कुमार के साथ मिलकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया और एनडीए में शामिल होकर 2014 में तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। मोदी लहर में रालोसपा सभी सीटें जीतने में कामयाब रही जिससे कुशवाहा का राजनीतिक कद प्रदेश में बढ़ गया।
राजनीतिक जानकार देवांशु मिश्रा के मुताबिक, ‘उपेंद्र कुशवाहा का बढ़ता राजनीतिक कद नीतीश के लिए खतरा है। इस कद का आगे बरकार रहना भी जदयू बर्दाश्त नहीं कर सकेगी। जदयू के वोट बैंक में कोयरी एक अहम हिस्सा है जिस पर कुशवाहा पिछले कुछ समय से अपना दावा ठोक रहे हैं। एनडीए में नीतीश बनाम उपेंद्र की लड़ाई में भाजपा नीतीश का साथ देगी।’

मुराद पूरी करेगी राजद!
राजद में लालू परिवार के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने हाल ही में दावा किया कि एनडीए के दो सहयोगी दल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और रालोसपा निकट भविष्य में महागठबंधन का हिस्सा होंगे। रघुवंश के इस दावे का हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने फौरन खंडन कर दिया लेकिन रालोसपा ने इस मसले पर चुप्पी साध ली। रालोसपा की चुप्पी को एनडीए ने राजद के दावे पर उपेंद्र का समर्थन मान लिया है। राजनीतिक जानकार डॉ. रजी अहमद मानते हैं कि राजद उपेंद्र कुशवाहा की मुराद पूरी कर सकती है। रजी अहमद कहते हैं, ‘आनंद मोहन और पप्पू यादव जैसे क्षत्रपों को राजद आक्रामक तरीके से अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। साथ ही जदयू से नाराज चल रहे शरद यादव खेमे के साथ संभावित गठबंधन एनडीए के छोटे हिस्सेदारों के लिए एक प्लेटफॉर्म बन सकता है। कुशवाहा को अपने पाले में लाने के बाद महागठबंधन का सामाजिक समीकरण एनडीए के लिहाज से मजबूत हो जाएगा और राजद को रालोसपा के मन मुताबिक लोकसभा सीट देने में भी कोई अड़चन नहीं होगी। प्रदेश में संख्या बल के लिहाज से यादव के बाद कोयरी दूसरी बड़ी पिछड़ी जाति है। हाल के दिनों में कोयरियों के बीच अपने नेता के कद को बड़ा करने की कोशिश होती दिख रही है। उपेंद्र अभी कोयरी जाति के एकमात्र स्थापित नेता हैं। भले ही वे 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के पक्ष में अपनी जाति का वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए मगर राजद के साथ आने के बाद उनकी स्वीकार्यता अपनी जाति में भी बढ़ेगी। कोयरी का वोट हमेशा से बिहार में भाजपा विरोधी दलों को मिला है। उपेंद्र कुशवाहा की वजह से यह जाति आक्रामक तौर पर महागठबंधन से जुड़ जाएगी।’