चुनावी कारवां गुजर चुका है, अब फिजां में सिर्फ गुबार ही गुबार है. आम जन को २३ मई का इंतजार है, जब ईवीएम नतीजे देना शुरू करेगी. हालांकि, मैदान में निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे बीजद और भाजपा ने अभी से एक-दूसरे को राज्य में अपनी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का न्यौता भेज दिया है. लेकिन, जनता ने इस कार्य के लिए आखिर किसे पसंद किया है, यह देखना बाकी है.

राज्य में लोकसभा की 21 और विधानसभा की १४७ सीटों के लिए अपनी पसंद ईवीएम में दर्ज करा दी. यहां पहली बार चार चरणों में चुनाव संपन्न हुआ. 29 अप्रैल को अंतिम चरण के लिए हुए मतदान के बाद सभी की नजरें 23 मई पर टिक गई हैं. सत्तारूढ़ बीजद और भाजपा, दोनों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया है, लेकिन केंद्र में अपनी वापसी का सपना देखने वाली कांग्रेस यहां जीत का दावा करने का भी साहस नहीं जुटा पा रही है. सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने फिर पूर्ण बहुमत मिलने का दावा करते हुए राज्य में पांचवीं बार सरकार बनाने की बात कही है. बीजद विधानसभा की 115 और लोकसभा 18 सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त दिख रहा है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा का दावा है कि जनता ने बीजद और नवीन पटनायक सरकार को नकारते हुए राज्य में पहली बार उसकी सरकार बनाने के पक्ष में मतदान किया है, उसे विधानसभा की 100 और लोकसभा की 16 सीटें मिलेंगी. इससे इतर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निरंजन पटनायक ने सिर्फ इतना कहा कि पार्टी का प्रदर्शन 2014 की तुलना में बेहतर रहेगा. 2014 में कांग्रेस के 16 विधायक जीते थे, जबकि लोकसभा में उसका स्कोर शून्य था.

बीजद प्रमुख नवीन पटनायक को उनके तिक जीवन में पहली बार कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा. प्रशासन और दलदोनों की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधों पर रहीराजनी. कहने को तो बीजद ने स्टार प्रचारकों की लंबी सूची बनाई थी, लेकिन वास्तव में नवीन पटनायक ही उसके एकमात्र स्टार प्रचारक रहे. उन्होंने 150 से अधिक जनसभाएं कीं, हेलिकॉप्टर के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से लैस बस के जरिये एक हजार किलोमीटर का रोड शो किया. पूरे चुनाव के दौरान बीजद का प्रचार तंत्र उसका मजबूत पक्ष रहा. राज्य के सभी अखबारों के पहले पन्ने पर विज्ञापन के जरिये बीजद ने अपना कब्जा बनाए रखा. नवीन पटनायक बराबर अपनी उपलब्धियों की चर्चा करते रहे. इस बार उनके प्रचार अभियान में एक बदलाव भी दिखा. उन्होंने केंद्रीय नेताओं की कड़ी आलोचना करने से गुरेज नहीं किया. अपनी चुनावी सभाओं में वह केंद्रीय नेताओं के सामने सवाल उछालते रहे कि ओडिशा में प्राकृतिक आपदा के समय वे आखिर कहां थे? ‘तितलीजैसे चक्रवाती तूफान, सूखा-बाढ़ के समय कितने केंद्रीय नेता पीडि़तों की सुध लेने आए? उन्होंने सभाओं में एक और बात कही कि केंद्र में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलेगा, ऐसे में सरकार गठन में बीजद समेत क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम होगी. तीसरे चरण के मतदान के बाद तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आने का निमंत्रण भी दे डाला, जिसके जवाब में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी उन्हें निमंत्रण भेज दिया और कहा कि राज्य में भाजपा सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में अगर वह आए, तो उन्हें प्रधानमंत्री के बगल में सीट दी जाएगी.

भाजपा के पास प्रचारकों की कमी नहीं थी, लेकिन उसके स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रहे. चुनाव की घोषणा होने के बाद मोदी पांच बार राज्य के दौरे पर आए. उससे पहले भी भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए वह तीन बार आ चुके थे. अमित शाह छह बार आए. मोदी-शाह के अलावा राजनाथ सिंह, नितिन गडक़री, योगी आदित्य नाथ, उमा भारती, रघुबर दास, शिवराज सिंह चौहान, राधा मोहन सिंह, मुख्तार अब्बास नकवी, जयंत सिन्हा एवं मनोज सिन्हा भी यहां आए. तीसरे चरण में मोदी के भाषण तीखे और आक्रामक हो गए. एक जनसभा में उन्होंने कहा कि नवीन पटनायक के राज में बड़े पैमाने पर घोटाले हुए और सिर्फ चुनिंदा लोगों का विकास हुआ. ओडिशा में कुछ गिने-चुने अफसरों का राज चल रहा है. इस बार नवीन पटनायक सरकार का जाना तय है. कांग्रेस का प्रचार काफी ढीला रहा. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सिर्फ एक बार ओडिशा आए. पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, राज बब्बर एवं शर्मिष्ठा मुखर्जी आदि भी आए, लेकिन वे कोई खास प्रभाव पैदा नहीं कर पाए.

चौथे चरण के मतदान के दौरान राज्य में जमकर हिंसा हुई. कांग्रेस के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई. कई स्थानों से धांधली, मारपीट और मतदाताओं को डराने-धमकाने की खबरें सामने आईं. कई बूथों पर मतदान अधिकारी खुद बीजद के लिए प्रचार करते पकड़े गए. वरिष्ठ पत्रकार राजाराम सत्पथी कहते हैं कि मतदान के बीच हिंसक वारदातें बीजद की हताशा दर्शाती हैं. बकौल सत्पथी, बीजद को पहली बार उसके अभेद्य गढ़ माने जाने वाले तटीय क्षेत्रों में भाजपा से कड़ी टक्कर मिली. बीजद को भाजपा से इतने कड़े मुकाबले की आशा नहीं थी. हर जगह-हर चुनाव में कुछ नेता दूसरे नेताओं की आंखों की किरकिरी बन जाते हैं, जिन्हें हराना उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है. नवीन पटनायक ने भी अपने पूर्व घनिष्ठ सहयोगी बैजयंत पंडा को  केंद्रपाड़ा संसदीय सीट से हराने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया. बीजद छोडक़र भाजपा का दामन थाम चुके पंडा को संसद जाने से रोकने के लिए पटनायक ने पूरी ताकत झोंक दी. उन्होंने दो दिन सिर्फ इसी मकसद से केंद्रापाड़ा में बिताए. राजनीतिक  विश्लेषकों का मानना है कि इस बार लोकसभा की कई सीटें बीजद के हाथ से निकल सकती हैं, लेकिन राज्य में उसकी सत्ता कायम रहेगी. वहीं कई लोगों का कहना है कि राज्य में किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा. वैसे भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भविष्यवाणी कर चुके हैंकि ओडिशा दूसरा त्रिपुरा बनेगा. दावे बड़े रोचक हैं. नवीन पटनायक युग का अवसान होगा, यह बात अभी तो अविश्वसनीय लग रही है. कुछ समय पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा लग रहा था. खैर, राज्य की जनता ने अपना फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है. 23 मई को ईवीएम खुलने के बाद जनता की मंशा सबके सामने आ जाएगी.