ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो।

पिछले एक दशक से एक अदद सुपरहिट या उम्दा सिनेमा को तरस रही भोजपुरी सिनेमा में बीते दो-तीन वर्षों में उम्मीद के बीज अंकुरित हुए हैं। अमेरिका में अभिनय की धूम मचा रही प्रियंका चोपड़ा निर्मित बम-बम बोल रही है, काशी और संतोश कुमार की मोकामा जीरो किलोमीटर ने भले ही मराठी की सौराट जैसी छप्पर फाड़ कमाई या बंगाली की दिपावली जैसी बहुत ही उम्दा सिनेमा का निर्माण नहीं किया हो, मगर फिल्म समीक्षकों की मानें तो कथानक, फिल्मांकन, कला और निर्देशन के स्तर पर भोजपुरी की दोनों फिल्में किसी भी क्षेत्रिय सिनेमा के मुकाबले खडा है। मोकामा जीरो किलोमीटर के निर्देशक संतोश मिश्रा की आगामी फिल्म ‘पहली नजर को सलाम’ से भी भोजपुरी सिनेमा उम्मीद लगाये बैठा है। फिल्म से जुडे लोगों का दावा है कि यह भोजपुरी सिनेमा के लिये वो दिन दोहरा सकती है जो 1962 में ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढइबो’, 1977 में आई ‘दंगल’ और 2000 दशक के शुरुआती सालों आई ‘ससुरा बडा पईया वाला’ व ‘सैयां से करा द मिलनवा हमार’ प्रदर्शन के बाद था। फिल्म में अल्का यागनिक द्वारा गाया गाना श्रोताओं की जुबान पर पहले ही चढ चुका है। यूटूब पर ‘पहली नजर को सलाम’ के गाने को किसी भी भोजपुरी के प्रदर्शन से पहले लाईक किये जाने का नया रिकार्ड बनाया है। हलांकि निरहुआ जैसे स्टार को लेकर फिल्म बनाने वाले संतोश कुमार की इस फिल्म में नये कलाकारों को मौका दिया गया है। नये कलाकारों को मौका देने के मसले पर संतोश कुमार का मानना है कि हीरो राज रणजीत फिल्मों के लिये नया जरुर है, मगर वे पहले से थियेटर करते रहे है और परिपक्व अभिनेता हैं। जिस तरह अपनी फिल्म कयामत से कयामत तक में आमिर खान ने और कहो न प्यार है में रतिक रोशन ने अभिनय किया था, उसी तरह राज रणजीत ने अपनी पहली फिल्म में काम किया है। फिल्म समीक. वीरेंद्र आजाद की मानें तो रोंमांटिक सिनेमा लंबे वक्त तक दर्शकों के जेहन में रहता है। मार-धाड वाली बेहतरीन फिल्म को भी एक बार देखने के बाद दूसरी बार झेलना दर्शकों के लिये मुष्किल होता है। जबकि भोजपुरी तो सिनेमा एक ही तरह के एक्शन, संवाद और कथा को कलाकार और फिल्म का नाम बदल कर बार-बार दोहरा रही है। दर्शक कुछ अलग देखना चाहते हैं। कुछ अलग मगर अपने बीच की समस्या, परंपरा, परिवेश पर बनी फिल्म। बम-बम बोल रहा है काषी ने काफी हद तक टिपीकल भोजपुरी सिनेमा से अलग था जिसे दर्शकों का सम्मान जनक प्यार मिला। बावजूद यह नहीं कहा जा सकता इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद भोजपुरी की किस्मत खुल गई हो। इसके लिये एक रिर्कार्ड तोड फिल्म की जरुरत है। राज रणजीत और अंतरा अभिनित ‘पहली नजर को सलाम’ से भोजपुरी सिनेमा को बड़ी उम्मीद है।

इस फिल्म का रिमेक हर भाषा में होगाः राज

संतोश कुमार की निर्देन में बनी ‘पहली नजर को सलाम’ से डेब्यू करने जा रहे राज रणजीत का बारे में अभी से यह कयास लगाया जा रहा है कि वे हिंदी सिनेमा के नायक आमिर खान और रतिक रोशन की तरह परफेक्ष्सनिस्ट हैं। फिल्म के उनके साथी कलाकार और निर्देशक अभिनय के लिये तारिफों का पुल बांध रहे हैं। राज रणजीत से बातचीत के प्रमुख अंश

प्रः फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही आपके अभिनय की तारिफ निर्देश और सह कलाकारों द्वारा की जा रही है। कैसा लग रहा है?

उः हर कलाकार अपनी फिल्म हो आखरी श्रेष्ठ देने की कोषिश करता है। मैंने भी वही किया है। सिनेमा को रिस्पांस भले ही बाद में बाद मिलता है लेकिन निर्देशक और मुख्य कलाकार को पहले से होता है फिल्म कैसी बनी है। तमाम लोगों ने पूरी ईमानदारी के साथ काम किया है जिसके बूते एक बेहतरीन फिल्म बनी है। बाकी दर्शकों के उपर है।

प्रः आपने थियेटर भी किया है?

उः हां, मैंने सैकडों नाटक में अभिनय किया है। जिसमें कुछ-एक काफी चर्चित रही। मसलन रोटी नहीं बंदूक चाहिए, यह आग कब बुझेगी, बर्दाशत नहीं होता आदि।

प्रः फिल्म में अष्लीलता भी परोसी हई होगी?

उः नहीं, यह एक पूरी तरह पारिवारिक फिल्म है। अष्लीलता से दूर इसे भोजपुरीया समाज का असली परिवेश के चासनी में पिरोया गया गया है।

प्रः क्या यह किसी दूसरी भाषा की सुपर हिट फिल्म का रिमेक है?

उः यह लेखक-निर्देशक संतोश कुमार की मौलिक फिल्म है। किसी भाषा की सिनेमा का रिमेक नही है। जबकि मैं यह कह सकता हूं कि पहली नजर को सलाम के प्रदर्शन के बाद दूसरी भाषा में इसे रिमेक करने के लिये होड होगा।

प्रः आपने सिनेमा में प्रवेश के लिये भोजपुरी को ही क्यों चुना?

उः यह हमारे राज्य की भाषा है, 40 करोड लोगों द्वारा बोले जाने वाली देश की सबसे बडी बोली है। कमाई के तराजू में ही सब कूछ नहीं तौला जा सकता। भोजपुरी के लिये दो-चार अच्छी फिल्मों के लिये अभिनय कर लिया तो मेरे लिये सौभाग्य होगा।