मलिक असगर हाशमी

क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा ‘जनक्रांति यात्रा’ के नाम से रथ यात्रा निकालने से पहले गिरफ्तार कर लिए जाएंगे, डॉ. अशोक तंवर को क्या इसलिए दोबारा प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई कि हुड्डा के इर्दगिर्द खट्टर सरकार के कसते शिकंजे को लेकर पार्टी हाई कमान को पहले से इसका अंदेशा था। तंवर इन दिनों हुड्डा की हिमायत में आगे-आगे हंै क्या इसलिए कि जेल जाने के बाद हुड्डा के समर्थक उनके पक्ष में आकर उन्हें मजबूत करें और हुड्डा का हश्र भी क्या इंडियन नेशनल लोकदल सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला जैसा होने वाला है? यानी जेल में रहकर विधानसभा चुनाव के समय शह-मात का खेल खेलेंगे। हुड्डा के खिलाफ सीबीआई द्वारा भूमि घोटाले में चार्जशीट दाखिल करने के बाद से ऐसे सवाल सत्ता के गलियारे में तैर रहे हैं।
हुड्डा सूबे की सियासत का मजबूत मोहरा हैं। इसलिए उनके मात खाने से न केवल विपक्षी दल बल्कि कांग्रेसियों के उस तबके को भी काफी राहत मिलेगी जिनकी शिकायत रही है कि हुड्डा ने अपने शासन में किसी और को पनपने नहीं दिया। ऐसे कांग्रेसियों की फेहरिस्त में रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, कैप्टन अजय यादव, डॉ. अशोक तंवर शामिल हैं। आरोप है कि चौधरी बीरेंद्र सिंह, चौधरी धर्मबीर और राव इंद्रजीत सिंह जैसे वरिष्ठ कांग्रेसियों की महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में हुड्डा ही रोड़ा बने हुए थे जिसके कारण उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव के समय भाजपा का दामन थाम लिया था।
सीबीआई की चार्जशीट में हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते गुरुग्राम के तीन गांवों मानेसर, नौरंगपुर और नखड़ौला के किसानों की 1600 करोड़ रुपये की जमीन का इंडस्ट्रियल मॉडल टाउन के नाम पर पहले अधिग्रहण किया फिर ऐसे हालात पैदा किए कि किसान अपनी बेशकीमती जमीन चार बिल्डर एबीडब्ल्यू, डीएलएफ, अनंतराज और हाउसिंग ग्रुप को 100 करोड़ रुपये में बेचने को मजबूर हो गए। इसके बाद 104 एकड़ में एबीडब्ल्यू बिल्डर ने आदित्य निकेतन के नाम से प्रोजेक्ट लांच किया। इस प्रोजेक्ट के करीब दो हजार निवेशकों से 2011 में बिल्डर ने 800 करोड़ रुपये की वसूली कर ली है।मगर मामला विवाद में फंसने से अब तक प्रोजेक्ट में एक र्इंट भी नहीं लगी है। निवेशक मारे-मारे फिर रहे हैं। एबीडब्ल्यू बिल्डर अलॉटी वेलफेयर सोसायटी के प्रधान नरेश जिंदल कहते हैं, ‘निवेशकों से बिल्डर 90 फीसदी तक रकम वसूल चुका है। इसके बावजूद निर्माण कार्य शुरू नहीं होने से उनके घर का सपना साकार होता नहीं दिख रहा।’ इस विवादास्पद भूमि पर 30 एकड़ में डीएलएफ, 25 में अनंतराज और 10 एकड़ में हाउसिंग ग्रुप के प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं।
इस मामले को उठाने वाले मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव बताते हैं कि जब इंडस्ट्रियल टाउनशिप के नाम पर अधिग्रहण की गई जमीन बिल्डरों को दी गई तब उन्हें अपने साथ हुए धोखे का अहसास हुआ। इसके बाद इलाके के किसान गोलबंद हुए और आंदोलन के बाद मानेसर थाना पुलिस को 12 अगस्त, 2015 को आईपीसी की धारा 420, 465, 467, 471, 468, 120 बी और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 के तहत मुकदमा दर्ज करने को मजबूर किया। भाजपा सरकार ने 15 सितंबर, 2015 को इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी। 2016 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी हुड्डा के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया। अभी तक की जांच के आधार पर सीबीआई ने 2 फरवरी को विशेष अदालत में हुड्डा, उनके शासन के ताकतवर अफसरों सहित 34 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की है। इनमें हुड्डा सरकार के प्रधान सचिव, तत्कालीन एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी, तत्कालीन टाउन एवं कंट्री प्लानिंग डायरेक्टर, रजोकरी स्थित एक इंफ्रा कंपनी के डायरेक्टर और 23 बिल्डर शामिल हैं।
सीबीआई हुड्डा के खिलाफ पंचकूला के औद्योगिक प्लाट आवंटन मामले में भी चार्जशील दाखिल करने की तैयारी में है। आरोप है कि 2011 में 14 औद्योगिक प्लाट के लिए आए 582 आवेदनों में उलटफेर कर हुड्डा ने अपने करीबियों को प्लाट आवंटित कर दिए। यही नहीं, सीबीआई हुड्डा के खिलाफ गेहूं में करनाल बंट बीमारी की दवा रैक्सील की खरीद और पंचकूला के सेक्टर 6 में नेशनल हेराल्ड को भूमि आवंटन मामले की भी जांच कर रही है। शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘ओमप्रकाश चौटाला अच्छे हैं जो जेल में गीता का अध्ययन कर रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो हथकड़ी लगने से पहले ही घबरा गए हैं।’
हुड्डा के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट के बाद से प्रदेश का सियासी माहौल बदल गया है। सीबीआई ने यह कार्रवाई भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तीन दिवसीय मोटरसाइकिल रैली और हुड्डा की रथ यात्रा से पहले की है। इसलिए सियासी गलियारे में इसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। हुड्डा की रथ यात्रा 25 फरवरी से उत्तर प्रदेश-हरियाणा के बार्डर होडल से शुरू हो रही है। इसके लिए उनके दिल्ली आवास पर तैयारी चल रही है जिसमें समर्थक कांग्रेस सांसदों, पूर्व सांसदों, विधायकों, पूर्व विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ता शामिल हो रहे हैं। रथ यात्रा को लेकर बड़ा खाका तैयार किया गया है। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर सहित पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता रथ यात्रा की तैयारियों से दूरी बनाए हुए हैं। यहां तक कि हुड्डा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने पर भी पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने खामोशी अख्तियार कर रखी है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते हुड्डा के धुर विरोधी अशोक तंवर ही थोड़ा आक्रामक दिख रहे हैं। खट्टर सरकार को आड़े हाथ लेते हुए तंवर कहते हैं, ‘साजिशन हु्ड्डा को फंसाया जा रहा है। भाजपा की सियासी फितरत है बदले की कार्रवाई। पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं करेगी और इसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा।’
वैसे सियासी पंडित तंवर की मुखरता और बाकी वरिष्ठ कांग्रेसियों की चुप्पी के पीछे छुपे अर्थ ढूंढ रहे हैं। आम समझ यही है कि हुड्डा के खिलाफ चल रहे मामलों को लेकर पार्टी हाईकमान विधानसभा चुनाव मेंं उन पर दांव लगाने से बचना चाहेगा। पिछले आम चुनाव से ठीक पहले इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल भेज दिए गए थे, जिसका पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इनेलो विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। कहते हैं कि यह बात कांग्रेस हाईकमान की समझ में आ गई है कि जैसा उसने अपने विरोधियों के लिए बोया था उसके सामने वैसा ही काटने की नौबत आ सकती है। इसलिए हुड्डा के तमाम प्रयासों के बावजूद दोबारा तंवर को सूबे की कमान सौंंपी गई। हाल ही में किरण चौधरी, अशोक तंवर, कुमारी शैलजा, कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलकर आए हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने भी राहुल को हुड्डा के बारे में समझा दिया है।
दूसरी तरफ भाजपा भी चाहेगी कि हुड्डा उसकी जीत की राह का रोड़ा न बनें। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सीबीआई की इस कार्रवाई के बारे में गीता का ज्ञान देते हुए कहते हैं कि जैसी करनी वैसी भरनी। जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा माहौल उनके पक्ष में नहीं है। सरकार के कुछ निर्णयों और विवादों के चलते आम अवाम के साथ भाजपा का एक वर्ग भी उनसे खासा नाराज है। विधानसभा चुनाव से पहले यदि नाराजगी दूर नहीं हुई तो भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अमित शाह की तीन दिवसीय मोटरसाइकिल रैली से पहले कार्यकर्ताओं एवं विधायकों को मनाने के लिए पार्टी की कई दौर की बैठक भी इस ओर इशारा करती है। दूसरी तरफ भूपेंद्र सिंह हुड्डा व्यापारियों, कारोबारियों, मजदूरों और किसानों के साथ बैैठकें व सम्मेलन कर रहे हैं। इस लिहाज से मुख्य विपक्षी दल इनेलो की सक्रियता न के बराबर है। साढ़े तीन साल में उसने एसवाईएल (सतलुज-यमुना लिंक नहर) के पानी के मुद्दे को ही प्रमुखता से उठाया है। जबकि यह मसला बेहद पुराना है और सूबे के कुछ खास क्षेत्र के लोगों के लिए ही एसवाईएल का पानी महत्व रखता है। ऐसे सियासी माहौल में हुड्डा मैदान में डटे रहे तो सब पर भारी पड़ सकते हैं। उनके बुलंद हौसले का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बावजूद उनकी रथ यात्रा की तैयारी फीकी नहीं पड़ी है। वह कार्यकर्ताओं के बीच सीना ठोंक कर कहते हैं- न हुड्डा झुकेगा, न रथ रुकेगा। 