मलिक असगर हाशमी

हरियाणा और दिल्ली से लगते अन्य प्रदेशों में पराली जलाने से दिल्ली से लेकर चीन तक का वातावरण प्रदूषित हो गया था, जिसकी वजह से प्रदेश सरकार की काफी आलोचना हुई थी। इसके बाद ऐसे जिलों की पहचान का जिम्मा सरकार ने हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर को सौंप दिया था। सेंटर के सेटेलाइट द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक सूबे के दस जिले अंबाला, फतेहाबाद, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, पानीपत, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर में सर्वाधिक पराली जलाई गई। इसमें मुख्यमंत्री का गृह जिला करनाल अव्वल रहा, जहां 45 हजार 800 हेक्टेयर में पराली को आग के हवाले किया गया। पिछले तीन सालों से इस जिले का रिकॉर्ड इस मामले में बेहद खराब रहा है। 2013 में करनाल में 54 हजार 300 हेक्टयर में पराली जलाई गई थी।

पर्यावरणविद और चिकित्सक मानते हैं कि पराली जलाने से केवल वातावरण ही प्रदूषित नहीं होता, स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके बावजूद दिनों दिन बढ़ती इस समस्या की रोकथाम को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके बावजूद किसान बाज नहीं आ रहे। प्रदेश सरकार ने ऐसे किसानों पर नजर रखने के लिए पंचायतों और सेटेलाइट का भी सहारा लिया जो लाभकारी सिद्ध नहीं हुआ। बंदिश का उल्लंघन करने के मामले में पिछले दो महीने में प्रदेश के तकरीबन साढ़े तीन हजार किसानों के चालान काटे गए हैं।

काश्तकारों का कहना है कि एक दशक पहले धान की पैदावार के बाद यमुनानगर की गत्ता मिलें अच्छी कीमत पर उनकी पराली खरीद लेती थीं। बाद में घाटा बताकर इसे खरीदने से मना कर दिया। ऐसे में उनके पास इसे जलाने के सिवाए कोई चारा नहीं बचा है। आइंदा ऐसा न हो इसके लिए प्रदेश सरकार ने चौतरफा प्रयास तेज कर दिए हैं। भारी वाहनों के रूट में व्यापक फेरबदल किया गया है। हरियाणा और वहां से होकर दिल्ली जाने वाले उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब के भारी वाहनों का कई जगह से मार्ग बदल दिया गया है। हरियाणा के एआईजी ट्रैफिक शिबास कविराज के मुताबिक, ‘अब तक दिल्ली जाने वाले तकरीबन 11.5 लाख भारी वाहनों के मार्ग बदले गए हैं।’ हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन श्रीकांत वाल्गद विश्वास से कहते हैं, ‘ऐसे प्रयासों से न सिर्फ हरियाणा बल्कि दिल्ली का वातावरण भी सुधरेगा।’

हरियाणा सरकार ने राज्य के रिहायशी इलाकों में चलने वाली औद्योगिक इकाइयों को शहर से बाहर करने की योजना पर भी अमल शुरू कर दिया है। इसके लिए तीन श्रेणियां रेड, आॅरेंज और ग्रीन बनाई गई हैं। पहली श्रेणी में 98 प्रकार के उद्योगों को शामिल करते हुए उन्हें रेड जोन में रखा गया है। ऐसी इकाइयों को छह महीने के भीतर गतिविधियां बंद करने के नोटिस दिए जा रहे हैं। आॅरेंज श्रेणी के उद्योगों को भी रिहायशी क्षेत्रों से बाहर किया जाएगा जबकि तीसरी श्रेणी में आने वाले 122 प्रकार के अतिलघु उद्योग आवासीय इलाके में काम तो कर सकेंगे पर उन्हें इसके लिए कठोर नियमों का पालन करना होगा। जिन रिहायशी इलाकों में 60 प्रतिशत से अधिक औद्योगिक व कमर्शियल गतिविधियां हो रही हैं, ऐसे इलाके कमर्शियल रहेंगे। इस बारे में उद्योग एवं वाणिज्य विभाग ने प्रदेश में सर्वे शुरू कर दिया है।

प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए खट्टर सरकार ने पराली आधारित उद्योगों की स्थापना की दिशा में काम आरंभ कर दिया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया, ‘राज्य में सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी मोड पर पेपर मिल और बायोमॉस पावर प्रोजेक्ट स्थापित किए जाएंगे।’ सबसे पहले सिरसा में पेपर मिल स्थापित होगी जबकि हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी ने प्राइवेट कंपनियों से बायोमॉस पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने के टेंडर मांगे हैं। प्रदेश के मुख्य सचिव डीएस ढेसी ने बताया कि फसली और दूसरे अवशेषों का इस्तेमाल कर इथेनॉल तैयार करने के लिए इंडियन आॅयल द्वारा पानीपत में बायोमास प्लांट लगाने की योजना पर अमल शुरू हो गया है। उनका कहना है कि इन प्रयासों के सिरे चढ़ने पर निश्चित ही प्रदूषण की समस्या पर अंकुश लगेगा।

जिलावार पराली जलाने के आंकड़े

जिला            2013    2014     2015     2016

सिरसा          12.3     10.8      09           9.9

फतेहाबाद     32.7     29.1      23.8        41

जींद             4.2       3.7        04            8.5

कैथल           41.4     26.6      28.9       39.8

करनाल        54.3     34.4      44          45. 8

कुरुक्षेत्र         39.8    38.8      40.6       34.5

पानीपत       0.8       1.2         0.5         0.9

सिरसा         19. 6    18.1        6.3         18.5

सोनीपत      1.2        1.8         0.1         0.5

यमुनानगर  02        4.5         5.7         03

(आंकड़े प्रति हजार हेक्टेयर में)