ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

तीन जनवरी को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के चंडीगढ़ स्थित सरकारी आवास पर भाजपा विधायकों का लंच मात्र दस मिनट में ही खत्म हो गया। लंच को लेकर पहले से ही विधायकों में खास उत्साह नहीं था। रहा सहा उत्साह तब काफूर हो गया जब लंच कर रहे विधायकों को एक-एक फॉर्म थमा दिया गया। विधायक कभी फॉर्म को देखते तो कभी अपनी खाने की प्लेट को। ज्यादातर विधायकों ने खाना अधूरा छोड़ फॉर्म पढ़ा और विदाई ले निकल पड़े। दरअसल, यह वह फॉर्म था जिसमें विधायकों को यह जानकारी देनी थी कि नोटबंदी में उन्होंने बैंकों में कितने नोट जमा कराए।

इस फॉर्म को देख कर विधायकों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। उनका कहना है कि यह ज्यादती है जिसे वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। लंच में शामिल एक विधायक ने बताया कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं कोई ऐरे-गैरे नहीं जो इस तरह की जानकारी मांगी जा रही है। विधायकों को उखड़ता देख उन्हें समझाने की कोशिश हो रही है लेकिन बात बनती नजर नहीं आ रही है। विधायकों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनके सीएम उन पर ही यकीन नहीं कर रहे हैं जबकि सरकार बने दो साल हो गए हैं। इतने लंबे समय के बाद भी जब विश्वास बहाल नहीं हो रहा है तो फिर वे कैसे काम करेंगे।

ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में भाजपा के एक विधायक ने अपना दर्द कुछ यूं बयां किया। उन्होंने कहा, ‘सही कामकाज के लिए विश्वास होना जरूरी है। तभी तो वे एकजुट होकर काम कर सकेंगे। लेकिन हो यह रहा है कि उन्हें ही सबसे ज्यादा बेईमान समझा जा रहा है। ऐसा लगता है कि भाजपा विधायक बन कर उन्होंने कोई गलत काम किया है।’ लंच में शामिल इस विधायक ने बताया कि ‘हमें तो इस कार्यक्रम में आने से पहले ही पता था कि कुछ अच्छा नहीं होने वाला। लेकिन इतना खराब होगा यह उन्हें यकीन नहीं था। लंच में मात्र 18 भाजपा विधायक ही शामिल हुए। उनमें भी वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज शामिल ही नहीं हुए।’

गुस्से की कई वजह

सोशल साइंस इंस्टीट्यूट, चंडीगढ़ के अध्यक्ष और हरियाणा के ग्रामीण विकास मॉडल पर शोध कर रहे डॉक्टर दीपांकर शर्मा ने बताया, ‘सीएम और उनके मंत्रियों-विधायकों के बीच गुस्से की एक नहीं कई वजह हैं। नोटबंदी पर फॉर्म भरवाना तो एक घटना मात्र है। मनोहर सरकार में सीएम और विधायकों के बीच बड़ा अंतर है। सीएम ने सारी पावर खुद ही हाईजैक कर रखी है। कुछ मंत्रियों के पास पावर जरूर है लेकिन यह उनके अपने ही प्रयास हैं। सरकार चलाने का यह तरीका दरअसल कांग्रेस सरकार के समय से चलन में है।  भाजपा विधायकों की बेचैनी इस बात को लेकर है कि उनका राजनीतिक करियर दांव पर है। उन्हें इस बात की चिंता है कि अगली बार चुनाव में वे जनता के बीच जाएंगे तो क्या कह कर वोट मांगेंगे।’

शर्मा के मुताबिक, ‘हरियाणा में सत्ताधारी दल के विधायक तबादले कराने, नौकरी की सिफारिश करने व अपने समर्थकों की पुलिस संबंधी समस्याओं को सुलझा कर उन्हें अपने साथ मिला कर रखते हैं।  इससे उनके समर्थक भी खुश रहते हैं और उन्हें यहीं लगता रहता है कि उनकी सरकार है। वे जिसका चाहे तबादला करवा  सकते हैं। यही वजह है कि जब भी पार्टी की बैठक होती है तो विधायकों से लेकर कार्यकर्ताओं तक का एक ही रोना रहता है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। उनकी चल नहीं रही। इसका सीधा मतलब यही होता है कि वे मनचाहे काम नहीं करा पा रहे हैं। इसलिए समर्थक नाराज रहते हैं। छोटे-मोटे काम करवा कर समर्थकों को खुश करने का यह बहुत ही आसान तरीका है जो अब खत्म हो रहा है। ऐसे में विधायक यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। इसके लिए वे पूरी तरह से सीएम को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनके गुस्से की यह भी एक वजह है।’

कुछ मंत्रियों-विधायकों की मनमानी

ऐसा नहीं है कि सभी मंत्री या विधायक सीएम के काबू में हैं। वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की सरकार में खूब चल रही है। इसी तरह कृषि मंत्री ओपी धनखड़  समर्थकों के खूब काम करा रहे हैं। पिछले दिनों मछली पालन विभाग में फिशरमैन की भर्ती घोटाले का आरोप ओपी धनखड़ पर लगा। इन आरोपों के बाद यह भर्ती रद्द कर दी गई। अब गेहूं की फसल खराब होने पर किसानों को मिलने वाले मुआवजे में ओपी धनखड़ का गृह जिला झज्जर टॉप पर है। अंबाला और पंचकूला में एक भी पैसा मुआवजे का नहीं मिला है। इससे भाजपा के विधायक खासे नाराज हैं। उन्हें लग रहा है कि कल्याणकारी योजनाओं को भी कुछ मंत्री हाईजैक कर ले रहे हैं।

पंचकूला के विधायक ज्ञान चंद गुप्ता को मुख्यमंत्री ने खासी पावर दे रखी है। इसी तरह से बराड़ा की विधायक भी पावरफुल मानी जाती हैं। बाकी विधायकों की दिक्कत यह है कि उनकी जायज मांग भी पूरी नहीं हो रही है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज तो सार्वजनिक तौर पर कई बार अपने गुस्से का इजहार कर चुके हैं। इसके बाद भी हालात में खास बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है। हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार केबी चौधरी कहते हैं, ‘विधायकों की यह भी दिक्कत है कि केंद्र में भी उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। इस वजह से वे अपनी बात पार्टी में किसी भी मंच पर खुल कर कहने की स्थिति में नहीं हैं।’

चौधरी कहते हैं, ‘खट्टर सरकार में बैलेंस बनाने के लिए कुछ नहीं हो रहा है। सीएम पूरी तरह से हावी हैं। वे मनमर्जी से निर्णय ले रहे हैं। उनकी टीम के ज्यादातर सदस्य भी बाहर से हैं। ऐसे में उन्हें प्रदेश की ज्यादा जानकारी भी नहीं है। कुल मिला कर इस सरकार में तालमेल का जबरदस्त अभाव है जिसका असर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी पड़ रहा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में यह संतुलन कैसे बनता है क्योंकि तीसरा साल प्रदेश सरकार के लिए खासा महत्वपूर्ण है। इस साल ही यह पता चलेगा कि मनोहर सरकार किस रास्ते पर जा रही है। यह साल तय करेगा कि अगली बार सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी।’