नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को चुनौती देने वाली पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका पर सुनवाई टालने का केंद्र का आग्रह बुधवार को खारिज कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे दो अतिरिक्त सालिसीटर जनरलों का यह आग्रह खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि सुनवाई स्थगित की जाए क्योंकि रावत ने बिल्कुल नया मामला तैयार किया है। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरलों तुषार मेहता और मनिन्दर सिंह ने इस आधार पर स्थगन की मांग की थी कि राज्य विधानसभा द्वारा विनियोग विधेयक को कथित तौर पर पारित किए जाने के मुद्दे से पूरी तरह नए तथ्य सामने आए हैं और उन पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि उनका मामले की जड़ से संबंध है।

पीठ ने कहा हम इसे स्थगित नहीं करने जा रहे हैं। अगर आप जवाब दाखिल करना चाहते हैं तो इसे दिन में या कल तक दाखिल कर दें। साथ ही पीठ ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब तक केंद्र अपना जवाब दाखिल नहीं कर देता तब तक वह इस मुद्दे पर विचार नहीं करेगी। पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि वह इस मामले की सुनवाई करेगी।

हरीश रावत की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विनियोग विधेयक के मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करने के आधार पर मामले की सुनवाई स्थगित किए जाने के केंद्र के प्रयास का विरोध किया। विनियोग विधेयक को राज्य विधानसभा ने पारित घोषित कर दिया है।

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 30 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा में होने वाले शक्ति परीक्षण पर रोक लगा दी थी। यह रोक केंद्र सरकार की याचिका के आधार पर लगाई गई थी। एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट ने रावत द्वारा दाखिल रिट याचिका पर अंतिम सुनवाई के लिए मामले को आज की तारीख में सूचीबद्ध कर दिया था। रावत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को चुनौती दी है।

इससे पहले 28 मार्च को रावत सरकार को विश्वास मत हासिल करना था लेकिन केंद्र सरकार ने 27 मार्च को राज्य में संवैधानिक व्यवस्था ठप हो जाने का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। रावत ने इसे हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी थी। एकल न्यायाधीश ने 31 मार्च को सदन में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश देने के साथ ही नौ अयोग्य बागी कांग्रेस विधायकों को मतदान में हिस्सा लेने की अनुमति भी दी थी।