अहमदाबाद :  एसआईटी की विशेष अदालत ने 2002 में हुए गुलबर्ग सोसायटी दंगा मामले के सभी 24 दोषियों की सजा का शुक्रवार को ऐलान कर दिया। कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद, 12 को 7 साल और एक दोषी को 10 साल कैद की सजा सुनाई है। सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने इस मामले को सभ्य समाज का सबसे काला दिन बताया। 27 फरवरी 2002 को हुए गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी को अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके में स्थित गुलबर्ग सोसायटी में दंगाइयों ने हमला कर 69 लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी थी। इनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे।

एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने इस फैसले पर नाखुश होते हुए कहा कि वकीलों से सलाह के बाद ऊपरी अदालत में इस फैसले को चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि इसे मैं न्याय नहीं कह सकती। लड़ाई अभी बाकी है। यह समझ से परे है कि एक ही तरह के गुनाह के लिए अदालत ने अलग-अलग सजा क्यों सुनाई। वहीं सजायाफ्ता लोगों के परिवार वालों का भी कहना है कि विशेष अदालत के फैसले में खोट है। इसके खिलाफ वे ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। एसआईटी के मुखिया आरके राघवन ने कहा कि दोषियों के लिए फांसी की सजा की मांग की गई थी मगर कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उससे वे संतुष्ट हैं।

जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी

इस मामले में कोर्ट ने 66 आरोपियों में से 24 को दोषी ठहराया था और 36 को बरी कर दिया था। 66 आरोपियों में मुख्य आरोपी भाजपा के असारवा के पार्षद बिपिन पटेल थे। बरी होने वालों में पटेल भी शामिल हैं। चार आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो गई। मामले में 338 से ज्यादा गवाहों की गवाही हुई। विशेष अदालत ने अभियोजन पक्ष, बचाव पक्ष के साथ-साथ पीड़ितों के वकील की दलीलें पूरी होने के बाद सोमवार को घोषणा की थी कि सजा शुक्रवार को सुनाई जाएगी।

लोगों को जलाया जिंदा
गोधरा कांड में 59 लोगों की हत्या के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इसी कड़ी में हिंसक भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी में हमला किया था। इस सोसायटी में 29 बंगले और 10 फ्लैट थे, जिसमें एक परिवार पारसी और बाकी सभी मुस्लिम परिवार रहते थे। भीड़ ने करीब चार घंटे तक सोसायटी में मारपीट की और  लोगों को जिंदा जला दिया। घटना को याद कर एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि जब भीड़ ने सोसायटी को चारों तरफ से घेर लिया तो बच्चों, बुजुर्गों और औरतों ने इसी सोसायटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी के दो मंजिला घर में पनाह ली। उन्हें उम्मीद थी कि जाफरी की जान-पहचान की वजह से शायद उनकी सुरक्षा का कोई उपाय हो जाएगा। लेकिन हिंसक भीड़ ने घरों में आग लगाना शुरू कर दिया। आखिर में एहसान जाफरी खुद बाहर आए और उन्होंने भीड़ से कहा, आपलोग चाहें तो मेरी जान ले लें लेकिन बच्चों और औरतों को छोड़ दें। लेकिन भीड़ ने उन्हें घर से घसीट कर बाहर लाया और मौत के घाट उतार दिया। उनके घर को भी आग लगा दी गई। मूल रूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले जाफरी छठी लोकसभा के सदस्य थे।

जाकिया ने लड़ी लड़ाई
पति की नृशंस हत्या के बाद जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने 14 साल तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। जाकिया को 2009 में तब कामयाबी मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए एसआईटी को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए। जाकिया ने आरोप लगाया था कि हमले के बाद उनके पति ने पुलिस और तत्कालीन मुख्यमंत्री सभी को संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। गुलबर्ग सोसायटी में 39 शव बरामद हुए थे जबकि जाफरी व 14 साल के एक पारसी बच्चे अजहर मोडी समेत 31 लोगों को लापता बताया गया था। घटना के सात साल बाद 31 में से 30 को मृत घोषित कर दिया गया। मुजफ्फर शेख 2008 में जिंदा मिले। उन्हें एक हिंदू परिवार ने पाला और उनका नाम विवेक रखा।

सितंबर 2009 में ट्रायल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट की मदद करने के लिए वकील प्रशांत भूषण को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया लेकिन अक्टूबर 2010 में भूषण इस केस से अलग हो गए। इसके बाद राजू रामचंद्रन को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया। एसआइटी ने जुलाई 2011 में सुप्रीम कोर्ट को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी।

कब क्या हुआ

-गुलबर्ग सोसाइटी केस की जांच सबसे पहले अहमदाबाद पुलिस ने शुरू की थी। 2002 से 2004 के बीच छह चार्जशीट दाखिल की गई।

-8 जून, 2006 :  एहसान जाफरी की बेवा जकिया ने शिकायत दर्ज कराई जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अफसरों को घटना के लिए जिम्मेवार ठहराया गया।

-7 नवंबर, 2007 : गुजरात हाइकोर्ट ने इस फरियाद को एफआइआर मान कर जांच करवाने से मना कर दिया।

-26 मार्च, 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों (गुलबर्ग कांड समेत) की जांच के लिए आरके राघवन की अध्यक्षता में एक एसआईटी गठित की।

-मार्च 2009 : फरियाद की जांच का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को सौंपा।

-सितंबर  2009 : ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड का ट्रायल शुरू।

-27 मार्च 2010 : नरेंद्र मोदी से एसआईटी ने पूछताछ की।

-14 मई, 2010 : एसआईटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।

-8 फरवरी, 2012 : एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की।

-10 अप्रैल, 2012: मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने मोदी और अन्य 62 लोगों को क्लीनचिट दी।

-7 अक्तूबर, 2014 : सुनवाई के लिए जज पीबी देसाई की नियुक्ति।

-22 फरवरी, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत को तीन महीने में फैसला सुनाने को कहा।