अरविन्द शुक्ला

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के सबसे बड़े अस्पताल बाबा राघव दास मेडिकल कालेज में पिछले दिनों 40 घंटे में 50 लोगों की मौत हो गई। इनमें 30 मासूम बच्चे भी हैं जो बाल रोग विभाग के वार्ड में भर्ती थे। अन्य 20 मौतें मेडिसिन विभाग वार्ड में हुर्इं। घटना के बाद से पूरे जिले में आक्रोश है और मेडिकल कालेज के बाहर एक सप्ताह तक डेरा जमाने वाले लोगों का कहना है कि ठेकेदार को भुगतान न किए जाने से आॅक्सीजन की आपूर्ति नहीं की गई। लेकिन अस्पताल और जिला प्रशासन ने आॅक्सीजन की कमी वाली बात से इनकार किया है। उनका दावा है कि सभी मौतें गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों की हुई हैं। उधर, प्रमुख सचिव की जांच रिपोर्ट के आधार पर मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल सहित छह लोगों पर एफआईआर दर्ज कराकर सरकार ने सख्ती के संकेत भी दे दिए हैं। पर योगी आदित्यनाथ को एक्शन में देखने वाली गोरखपुर की जनता इससे संतुष्ट नहीं दिख रही है। कई लोगों का कहना है कि इस मामले में डीएम, कमिश्नर की लापरवाही भी साफ दिख रही है, इसलिए उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए थी।
प्रशासन भले ही आॅक्सीजन की कमी से हुई मौतों की बात को नकार रहा हो लेकिन अस्पताल प्रशासन से जुड़े पत्रों से एक दूसरी ही तस्वीर सामने आ रही है। इनमें से दो पत्र ऐसे हैं जो अस्पताल प्रशासन के दावों की पोल खोलने को पर्याप्त हैं। मेडिकल कालेज में पुष्पा सेल्स कंपनी की ओर से लिक्विड आॅक्सीजन की सप्लाई की जाती है। कंपनी ने एक अगस्त को ही पत्र लिखकर सप्लाई देने से साफ मना कर दिया था। उसके लिए पिछले बकाया भुगतान का हवाला दिया था। उधर, यह साफ हो चुका था कि जिस लिक्विड आॅक्सीजन पर सौ बेड के इंसेफ्लाइटिस वार्ड व दूसरे आईसीयू में भर्ती मरीजों की सांसें टिकी हुई हैं, वह लगभग खत्म हो चुकी थी। इसकी भी जानकारी हो गई थी कि विकल्प के रूप में जितने आॅक्सीजन सिलेंडर की जरूरत है, वे सीमित संख्या में हैं। यह भी सबकी जानकारी में था कि संवेदनशील स्थिति बाल रोग विभाग के वार्डों की है जहां बड़ी तादाद में इंसेफ्लाइटिस के मरीज भर्ती हैं। खुद सेंट्रल आॅक्सीजन पाइप लाइन के आॅपरेटरों ने बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष को पत्र लिखकर इस संकट से आगाह कर दिया था। पत्र से साफ है कि 3 अगस्त को भी लिक्विड आॅक्सीजन के स्टाक की समाप्ति की जानकारी दी गई थी। अब 10 अगस्त को भी लिक्विड आॅक्सीजन संयंत्र में लगे मीटर की रीडिंग सुबह 11 बजे ही 900 तक पहुंच चुकी थी, जिससे रात तक ही सप्लाई हो पाना संभव था। बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष से अनुरोध किया गया कि मरीजों के हित को देखते हुए तत्काल आॅक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित कराएं। इसके बावजूद अधिकारी बेपरवाह रहे। जब प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र से बात की गई तो उन्होंने बताया, फैजाबाद से आॅक्सीजन सिलेंडर से लदी गाड़ी 10 अगस्त को शाम पांच बजे चल चुकी है और वह देर शाम तक अस्पताल पहुंच जाएगी। लेकिन उन्होंने जो भी कहा उसका ठीक उल्टा हुआ। रात करीब आठ बजे सौ बेड के इंसेफ्लाइटिस वार्ड के लिए सिलेंडर आॅक्सीजन खत्म हो गई। आनन-फानन में वार्ड को लिक्विड आॅक्सीजन से जोड़ा गया जो थोड़ी ही बची थी। रात साढ़े ग्यारह बजते-बजते यह भी जवाब दे गया और मौत ने आईसीयू में भर्ती विभिन्न मरीजों को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया।

कई रिमांइडर व लीगल नोटिस का नहीं पड़ा असर
आॅक्सीजन सप्लाई कराने वाली आलमबाग स्थित कंपनी पुष्पा सेल्स प्रा.लि. से मिले दस्तावेजों में कुछ और ही तस्वीर सामने आई। कंपनी ने चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण मंत्री आशुतोष टंडन को भी 9 अगस्त को ही 68 लाख 65 हजार रुपये का भुगतान न होने की वजह से सप्लाई बाधित होने के खतरे से सीधे चेताया था। मंत्री को भेजे गए पत्र के साथ कंपनी की ओर से भुगतान को लेकर जिम्मेदारों को भेजे गए नौ रिमाइंडर व लीगल नोटिस की छायाप्रति भी संलग्न की गई थी। इसके बावजूद मंत्री ने पूरे मामले का संज्ञान नहीं लिया। गंभीर मरीजों की जान को खतरा पैदा होने की चेतावनी के बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। अस्पताल में बच्चों की मौतों की खबर न्यूज चैनलों में चलने के बाद खड़े हुए बवंडर से बचने के लिए मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजीव मिश्र ने आनन-फानन कंपनी को 20 लाख रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया ताकि खुद को पाक-साफ होने का दावा कर सकें। इससे पूर्व करीब छह माह से कई रिमांइडर व लीगल नोटिस भेजे जाने के बावजूद कोई भुगतान नहीं किया गया था। कंपनी ने आॅक्सीजन सिलेंडर का बंदोबस्त कर लिए जाने का भी आगाह किया था। महानिदेशक की चुप्पी न टूटने पर कंपनी की ओर से 13 जून को भी एक पत्र भेजा गया था। इस पत्र में कहा गया था कि 30 सितंबर, 2013 को जारी वर्क आर्डर के तहत लिक्विड आॅक्सीजन गैस सप्लाई की जाती है। हमारी संस्था ने ही मेडिकल कॉलेज में आॅक्सीजन का प्लांट लगाया गया था। पत्र में बकाया राशि का जिक्र करते हुए यह भी कहा गया था कि बारिश के मौसम में रोगियों की संख्या बढने से आॅक्सीजन गैस की खपत में भी काफी वृद्धि हो जाती है। कंपनी की ओर से 3 जून को डीएम गोरखपुर को भी बकाया बिल के संबंध में पत्र भेजा गया था और समय से बिल भुगतान कराए जाने का आग्रह किया गया था। लेकिन डीएम के कान पर जूं नहीं रेंगी।

बाल रोग विभाग के प्रवक्ता डॉ. कफील खान के कारनामे
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के प्रवक्ता डॉ. कफील खान मेडिकल पर लंबी छुट्टी के चलते चर्चा में हैं। उनसे नोडल अधिकारी का प्रभार छीन लिया गया तो वे आहत होकर मेडिकल पर चले गए। कब आएंगे कुछ कहा नहीं जा सकता है। अभी प्रवक्ता बने साल नहीं बीता कि दो माह तक मेडिकल पर रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में ज्वाइन करने से पहले जब डॉ. कफील एसआर शिप पर थे तभी उन्होंने राजनीतिक पकड़ के बल पर एनआरएचएम में वर्ष 2013 में काम करना शुरू कर दिया। तीन साल बाद वर्ष 2016 में वह एनआरएचएम में 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड में नोडल अधिकारी का पद संभाला। इस दौरान भी वह लंबे-लंबे अवकाश पर रहे हैं। अभी 8 माह पूर्व आयोग से वह बाल रोग विभाग में प्रवक्ता बन गए और दो माह तक मेडिकल पर रहे। उन्होंने जो शपथ पत्र दिया है, उसमें झोल है। यह भी चर्चा में है कि उन्होंने अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मुकदमों का जिक्र नहीं किया है।
नवजात शिशु गहन चिकित्सा केंद्र में डॉ. कफील ने लाखों की खरीदारी की है क्योंकि उनको 20 हजार से नीचे की खरीदारी करने की प्राचार्य की ओर से इजाजत दी गई थी। अगला क्या-क्या खरीदता था और कहां ले जाता था किसी को पता नहीं चला। अब धीरे-धीरे यह बात खुल रही है कि उनकी पत्नी के नाम खुले अस्पताल में इन्हीं सामानों की खपत होती थी। प्राचार्य की भूमिका भी इस खरीदारी में संदिग्ध रही है। जांच के बाद ही इस खरीदारी की पोल खुल सकेगी। उनको इतनी छूट मिल गई थी कि वह किसी को कुछ समझते नहीं थे। बाल रोग विभाग के विभागध्यक्ष डॉ. महिमा मित्तल को डॉ. कफील खान कुछ नहीं समझते थे। यही कारण है कि विभागध्यक्ष अक्सर प्राचार्य से शिकायत करतीं थीं जिसको प्राचार्य गंभीरता नहीं लेते थे। डॉ. कफील की पत्नी के नाम नहर रोड रूस्तमपुर में चल रहे नर्सिंग होम मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में ताला लग गया है। वहां 24 घंटे सेवा उपलब्ध थी।
मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के उपकरण भी डॉ. कफील अपनी पत्नी के नाम खोले नर्सिग होम में ले जाते थे। प्राचार्य से मिलीभगत और शह मिलने के चलते वह सर्किट और प्रोब्स भी नर्सिंग होम उठा ले जाते थे। खराब उपकरण वह मेडिकल कालेज में लाते थे। बीच के दिनों में आउट सोर्सिंग के तहत हुई नियुक्तियों में भी उनकी भूमिका रही है। नर्सिंग होम की जांच कराई जाए तो उपकरण मिल जाएंगे। बीआरडी मेडिकल कालेज में हुई मासूमों की मौत की जांच करने आए डॉक्टरों की टीम को भी ‘मैडम राज’ का एहसास हुआ। प्रारंभिक जांच से पता से चला कि पूर्व प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र की कुर्सी पर पत्नी डॉ. पूर्णिमा मिश्र का कब्जा था। हर फाइल पर कमीशन का खेल चलता था। डीलिंग पूर्व प्रिंसिपल की पत्नी ही करती थी। इस संबंध में मेडिकल कॉलेज के 10 कर्मचारी, चिकित्सकों ने शपथ पत्र देकर पूर्व प्रिंसिपल की पत्नी की शिकायत की है। आॅक्सीजन की फाइल भी उन्होंने ही रोकी थी। इसके पीछे भी कमीशन का खेल था।
शासन के निर्देश पर विशेष सचिव आयुष यतींद्र मोहन, ऋषिकेश दूबे, होम्योपैथ निदेशक विनोद कुमार विमल सर्किट हाउस पहुंचे, जहां डॉ. पूर्णिमा की शिकायत करने वाले राजन यादव, सिंगेश देवी और राहुल श्रीवास्तव को बुलाकर पूछताछ की। सबने कमीशन के खेल का खुलासा किया। सूत्रों ने बताया कि शासन की टीम ने मेडिकल कॉलेज के कुछ चिकित्सक, कर्मचारियों से भी पूछताछ की है। ज्यादातर ने बताया कि कमीशन से लेकर कर्मचारियों नियुक्ति आदि मामलों का फैसला मैडम ही करती थीं। 