रमेश कुमार ‘रिपु’

रमन सरकार 14 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों को 275 करोड़ रुपये बोनस बांटकर आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन कांग्रेस का आरोप है कि रमन सरकार ने इस बार अपने फायदे के लिए योजनाबद्ध तरीके से तेंदूपत्ता की नीलामी दर में कमी की है। इससे तेंदूपत्ता करोबारियों को लाभ तो होगा लेकिन लघु वनोपज को-आॅपरेटिव फेडरेशन को 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा। वर्ष 2013 के चुनावी साल में भी रमन सरकार ने यही किया था, जिससे लघु वनोपज को-आॅपरेटिव फेडरेशन को 284 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। तेंदूपत्ता की नीलामी दर कम होने से इस साल कम पैसे आएंगे जिससे अगले साल बोनस कम बंटेगा।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का आरोप है, ‘चुनावी वर्ष में कारोबारियों से 100 करोड़ रुपयों का चंदा उगाहने के लिए रमन सरकार ने तेंदूपत्ता की नीलामी दर में कमी की है। इसका कुछ हिस्सा जंगलों के भीतर भी भेजे जाने की संभावना है। हम चाहते हैं कि तेंदूपत्ता की नीलामी रद्द कर नए सिरे से नीलामी की जाए और भाजपा सरकार की भूमिका की हाई कोर्ट की निगरानी में किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए।’

छिपाया गया सच
प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं विधायक सत्यनारायण शर्मा कहते हैं, ‘पूरे राज्य में 2016 में 13 लाख 61 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण हुआ था, जिसका अग्रिम टेंडर पद्धति से विक्रय करने पर 639 करोड़ रुपये मिले थे। एक मानक बोरा का औसत विक्रय मूल्य 4,693 रुपये था। लेकिन राज्य सरकार ने 14 लाख आदिवासियों को प्रति मानक बोरा मात्र 1500 रुपये की दर से कुल 204 करोड़ 21 लाख रुपये का ही भुगतान किया। तेंदूपत्ता विक्रय से प्राप्त राशि 434 करोड़ 68 लाख रुपये को रोक कर उसे बैंक में जमा कर दिया गया। 18 महीने बाद 275 करोड़ रुपये बतौर बोनस बांटने के सियासी उपक्रम को तेंदूपत्ता बोनस त्योहार नाम दिया गया। सवाल उठता है कि शेष 160 करोड़ और 435 करोड़ पर 18 महीने का ब्याज लगभग 59 करोड़ रुपये होता है, उसका क्या हुआ?’
राज्य सरकार ने इस बात पर चुप्पी साध ली। जबकि अधिनियम 2006 की धारा 3 के अनुसार आदिवासियों और वन निवासियों को तेंदूपत्ता पर संपूर्ण वन अधिकार है। कायदे से तेंदूपत्ता की आय से संग्रहण के वास्तविक खर्च को काटकर शत प्रतिशत तेंदूपत्ता संग्राहकों को वितरित किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने इस बाध्यता को भी नजर अंदाज कर दिया।

नहीं बदली नीलामी प्रक्रिया : महेश
तेंदूपत्ता में घोटाले की आग को विपक्ष हवा दे रहा है। लेकिन वन मंत्री महेश गागड़ा कहते हैं, ‘तेंदूपत्ता की नीलामी में कोई घोटाला नहीं हुआ है। पूरी नीलामी में वही प्रक्रिया अपनाई गई है जो कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने तय किया था। निविदाओं पर प्रस्तुत की जाने वाली दरें बाजार की मांग और आपूर्ति पर आधारित रहती हैं। प्रदेश की 901 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से संग्रहीत होने वाले तेन्दूपत्ते की 951 लाटों को अग्रिम निविदा के माध्यम से बेचा जा रहा है। ऐसे में 300 करोड़ रुपये तक की आमदनी कम होने का अनुमान लगाना नितांत जल्दबाजी होगा। अग्रिम निविदा प्रक्रिया आॅनलाइन होने के कारण पूर्ण रूप से पारदर्शी है। सीमावर्ती राज्यों मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलांगाना, झारखंड और आंधप्रदेश की तुलना में छत्तीसगढ़ राज्य में इस वर्ष सर्वाधिक 5,847 रुपये प्रति मानक बोरे की अग्रिम विक्रय दर प्राप्त हुई है।’

कम बोली वालों का टेंडर मंजूर
उप नेता प्रतिपक्ष कवासी लखमा कहते हंै, ‘राज्य सरकार ने अग्रिम टेंडर में कारोबारियों के साथ मिलकर पूर्व नियोजित तरीके से घोटाले की प्रक्रिया को अंजाम दिया है। देखा जाए तो पिछले साल की तुलना में 51.52 प्रतिशत तक कम रेट के टेंडर डालने वाले कारोबारियों की बोली मंजूर भी हो गई। प्रदेश में तेंदूपत्ता संग्रहण के कुल 951 सेक्टर या यूनिट बांटे गए हैं। इनमें से अभी दो लॉट के टेंडर हुए हैं। पहले लॉट में फेडरेशन को पिछले साल की तुलना में 200 करोड़ का नुकसान हो रहा है और दूसरे लॉट में करीब 85 करोड़ का। जबकि तीसरे लॉट का टेंडर होना है। यदि वह भी इसी तरह हुआ तो इस घोटाले 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान लघु वनोपज कोआॅपरेटिव फेडरेशन को होगा। ऐसा लगता है कि इस साजिश में नीचे से लेकर ऊपर तक के लोग शामिल हैं।’

कैसे हुआ घोटाला
पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ‘किसी भी सामान की बिक्री के लिए सामान्य रूप से एक न्यूनतम मूल्य तय किया जाता है, जिसे बेस प्राइस कहते हैं। लेकिन रमन सिंह सरकार ने आज तक तेंदूपत्ते का बेस प्राइस तय नहीं किया है। इससे तेंदूपत्ता कारोबारियों को मनमानी कीमत लगाने की छूट मिलती है और वे औने पौने दाम पर भी सर्वोत्तम क्वालिटी का तेंदूपत्ता खरीदकर अधिक मुनाफा कमाते हैं। इस बार पहले लॉट के टेंडर में बोली 51 प्रतिशत तक नीचे गई है। पिछले साल की तुलना में 26.84 प्रतिशत कम में तेंदूपत्ता बिका। दूसरे लॉट में बोली 52 प्रतिशत तक नीचे गई है। इस तरह औसतन 34.60 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।’
हर बोली लगाने वाले से एक रक्षित निधि यानी अर्नेस्ट मनी ली जाती है। बोली लगाने वाला अर्नेस्ट मनी का 12.5 गुना तेंदूपत्ता उठा सकता है। इस तकनीकी प्रावधान की वजह से कई जगह ऐसा हुआ है कि बोली तो अधिक की लगी लेकिन कोटा पूरा हो जाने की वजह से तेंदूपत्ता बेभाव बिक गया। इससे भी फेडरेशन को बड़ा नुकसान हुआ।

क्या नुकसान होगा
विपक्ष का आरोप सच होने से न केवल लघु वनोपज कोआॅपरेटिव फेडरेशन को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा बल्कि तेंदूपत्ता संग्राहकों को मिलने वाली बोनस की राशि भी कम हो जाएगी। तेंदूपत्ता मजदूरों को तोड़ाई के समय न्यूनतम मजदूरी दी जाती है। बाद में कुल आय की 80 फीसदी राशि बोनस के रूप में मिलती है। चरण पादुका बांटने से लेकर बीमा योजना और छात्रवृत्ति योजना भी इसी पैसे से चलती है, जिस पर असर पड़ेगा। जाहिर है कि जब कम पैसा होगा तो लोगों को मिलने वाला लाभ भी कम हो जाएगा। यानी तेंदूपत्ता मजदूरों को ऐसे अपराध की सजा मिलेगी जिसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेष नीतिन त्रिवेदी कहते हैं, ‘भाजपा सरकार ने पहले ही लघु वनोपज के समर्थन मूल्य में कटौती करके आदिवासियों के साथ बड़ा अन्याय किया है और अब तेंदूपत्ता मजदूरों के साथ भी धोखा कर रही है।’

हाई कोर्ट ने भेजा नोटिस
संतकुमार नेताम ने तेंदूपत्ता में हुए घोटाले को लेकर एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की है। वन मंत्री के जवाब से संतकुमार संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वन विभाग में तेंदूपत्ता घोटाला सुनियोजित रूप से हुआ है। 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम यदि सरकार की तिजोरी में आती तो जंगलों में रहने वाले वे आदिवासी जो तेंदूपत्ता तोड़कर वन समितियों को मुहैया कराते हैं, उन्हें फायदा होता। मामले की प्राथमिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ शासन और वन विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

घोटाले के साक्ष्य
अदालत में पेश किए गए दस्तावेज में घोटाला किस तरह से किया गया है, उसका हवाला दिया गया है। वर्ष 2015-16 में वन समिति धुनुरा में 9,489 रुपये प्रति मानक बोरा तेंदूपत्ता की दर थी। लेकिन इस बार वर्ष 2017-18 में 4,594 रुपये प्रति मानक बोरा की दर से तेंदूपत्ता कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को उपलब्ध करा दिया गया है। इसी तरह अम्बिकापुर वन मंडल में 6,109 रुपये प्रति मानक बोरा थी, जो इस बार 3,809 रुपये में उपलब्ध हुई। कोरबा में 7,000 रुपये प्रति मानक बोरा था, लेकिन इसे भी घटाकर 3,939 रुपये प्रति मानक बोरा किया गया है। ऐसा सभी जिलोें में किया गया है। तेंदूपत्ता की आधी कीमत बिना किसी ठोस कारण के घटाई गई। माना जा रहा है कि इस बंदरबाट की साजिश अफसरों ने की है। हैरान करने वाली बात यह है कि राज्य के वन मंत्री महेश गागड़ा ने तेंदूपत्ता की दर घटाकर आधी किए जाने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। फिर भी वन मंत्री महेश गागड़ इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि तेंदूपत्ता की नीलामी दर कम किस वजह से की गई। हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ लघु वनोपज व्यापार कोआॅपरेटिव समिति ने बाकायदा टेंडर जारी कर कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को ही फायदा पहुंचाया।
छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता का व्यापार सालाना एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का होता है। बीड़ी निर्माण करने वाले देश भर के सैकड़ों ठेकेदार यहां नीलामी में हिस्सा लेते हैं।