नई दिल्‍ली। गणेश जी माता लक्ष्‍मी के साथ क्‍यों विराजमान रहते हैं। दरअसल, गणेश भगवान कृष्‍ण का ही एक रूप हैं। दोनों की बाल लीला में समानता है। कृष्‍ण ने ही गणेश के रूप में भी अवतार लिया, जिसकी कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। माता लक्ष्‍मी और गणेश दोनों की तुला राशि है, जिनकी आराधना करने से सुख, समृद्धि आती है। ज्‍योतिषाचार्य पंडित भानुप्रताप नारायण मिश्र बताते हैं- गणेश जी की आराधना के बिना किसी भी देवी-देवता की आराधना का फल नहीं मिलता है। इसलिए किसी भी पूजा-पाठ से पूर्व गणेश जी की आराधना अनिवार्य है। उन्‍होंने बताया कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने संतान के लिए व्रत किया। उसी दौरान एक ब्राह्मण ने उनके यहां आकर कहा, आपके घर में भगवान कृष्‍ण आने वाले हैं। उसी समय उनके परिवार में भगवान गणेश का पदार्पण हुआ।

उन्‍होंने बताया कि जन्माष्टमी का पावन उत्सव इस बार लोगों के लिए शुभ फलदायी होने जा रहा है, जो खासतौर पर व्रत रखने वालों के लिए विशेष लाभदायक होगा। इस वर्ष जन्माष्टमी पर दो खास योग बन रहे हैं। कन्या राशि में इसी शुभ मुहूर्त में गुरु शुक्र की युति हो रही है। उसमें पहले से ही गुरु का प्रवेश हो चुका है। ऐसे में गुरु, बुद्ध और शुक्र ग्रहों का कन्या राशि से युति होगी। उसका प्रभाव शत्रु और मित्र राशियों पर तय है। ग्रहों की बदलती चाल और राशियों का मेल इस जन्माष्टमी को ज्योतिषाचार्य जयंती योग मान रहे हैं। जन्माष्टमी पर 75 साल बाद मध्य रात्रि में 6 ग्रहों का केंद्रीय 3 ग्रहों का त्रिकोणीय योग बनेगा जो दुर्लभ होगा। इसके बाद यह योग 2040 में बनेगा। इस दिन अष्टमी उदया तिथि में और मध्य रात्रि जन्मोत्सव के समय रोहिणी नक्षत्र का संयोग रहेगा।

विशेष संयोग के साथ भगवान का जन्मोत्सव मनेगा। 25 अगस्त को अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र का संयोग केवल दोपहर 12 बजकर 6 मिनट से रात्रि आठ बजे तक रहेगा। अर्ध रात्रि में नवमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र व्याप्त होने से जन्माष्टमी के व्रत पूजन आदि का विशेष लाभ नहीं होगा। जन्माष्टमी की अर्ध रात्रि में जब अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र से मुक्त हो तो उसे केवला कहते हैं। वहीं जब यह नक्षत्र बुधवार की अष्टमी तिथि से संयुक्त हो तो वह जयंती कहलाती है। ज्योतिष गणना के मुताबिक इस उपवास का जिक्र ब्रह्मावर्त पुराण, शिव पुराण, विष्णु पुराण, पद्मपुराण अन्य पुराणों में किया गया है। यह व्रत अष्टमी तिथि से प्रारंभ हो नवमी तिथि में परायण का विधान है। इस विशेष संयोग में पूजन और उपवास करना अनिवार्य माना गया है।

अष्टमी तिथि में केले, आम या अशोक के पत्तों से घर सजाएं। दरवाजे पर मंगल कलश, मूसल स्थापित करें। रात में कृष्ण के शिशु रूप का पूजन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्रोच्चार से करें। उससे पहले गणेश के 12 नामों का जप जरूर करें। गणेश के 12 नाम हैं-1-सुमुख, 2-एकदंत,3-कपिल, 4-गजकर्णक, 5-लंबोदर, 6-विकट, 7-विघ्‍ननाश, 8-विनायक, 9-धूम्रकेतु, 10-गणाध्‍यक्ष, 11-भालचंद्र, 12-गजानन। फिर पंचामृत और वस्त्रादि से अलंकृत कर मूर्ति को झूले में रखें। अन्न रहित नैवेद्य, दूध, घी, दीप, फल- फूल , मेवे, खीरा का प्रसाद बाल गोपाल को अर्पित करें। कृष्ण जन्म के प्रतीक स्वरूप खीरा फाड़कर कृष्ण जन्म कराएं और फिर जन्मोत्सव मनाएं। इसके बाद कृष्ण प्रतिमा पर कपूर, हल्दी, दही, घी, जल, तेल चढ़ाएं। बुधवारको निशीथ व्यापिनी अष्टमी रात 10 बजकर 17 मिनट पर जन्माष्टमी लगेगी। गुरुवार उदय व्यापिनी अष्टमी में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत। बुधवार दोपहर 1 बजकर 34 मिनट से गुरुवार सुबह 5 बजकर 34 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धयोग।