नक्सलियों की मदद करने के दोषी करार दिए गए दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस मामले में चार अन्य दोषियों को भी उम्र कैद हुई है, वहीं एक को 10 साल की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने इन सभी को यूएपीए एक्ट के तहत दोषी ठहराया है। साईंबाबा के अलावा जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र हेम मिश्रा, पूर्व पत्रकार प्रशांत राही, महेश तिर्के और पांडू नरोटे को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। जबकि विजय तिर्के को 10 साल की सजा हुई है।

साईंबाबा को माओवादियों से रिश्ते रखने के आरोप में गढ़चिरौली पुलिस ने मई 2014 में दिल्ली से गिरफ्तार किया था। पुलिस के मुताबिक दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंग्लिश के प्रोफेसर साईबाबा का नाम उस वक्त सामने आया जब हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया गया। मिश्रा ने जांच एजेंसियों को बताया कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादियों और प्रोफेसर के बीच ‘कूरियर’ का काम करता था। साईबाबा की गिरफ्तारी के समय पुलिस ने दावा किया था कि साईबाबा को प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) का कथित सदस्य होने, उन लोगों को साजो सामान से समर्थन देने और भर्ती में मदद करने के आरोप में पकड़ा गया।
वर्ष 2013 में खुफिया जानकारी के बाद हेम मिश्रा और प्रशांत राही को गढ़चिरौली में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने कहा था कि उनके पास से कुछ दस्तावेज और माइक्रो चिप बरामद हुए। इन दस्तावेज़ों और माइक्रो चिप के अध्ययन से पता चला कि ये दोनों अबूजमाड़ में वरिष्ठ माओवादी नेताओं से मिलने जा रहे थे और यह भेंट साईंबाबा की मदद से तय हुई थी। बाद में गढ़चिरौली पुलिस की एक टीम ने सितंबर 2013 में दिल्ली जाकर साईंबाबा के घर की तलाशी ली और उनके कंप्यूटर की हार्ड डिस्क और अन्य कागजात बरामद किए थे। चूंकि साईंबाबा शारीरिक रूप से विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर निर्भर हैं, उन्हें उस वक्त गिरफ्तार नहीं किया गया था।

हेम मिश्रा और प्रशांत राही से पूछताछ के बाद गढ़चिरौली पुलिस ने अहेरी न्यायालय में तीनों के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी थी। बाद में साईंबाबा भी पुलिस की गिरफ्त में आए थे। प्रोफेसर जीएन साईंबाबा बतौर सामाजिक कार्यकर्ता, रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम की भी एक संस्था से जुड़े हुए हैं। वे ‘रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट’ के उपसचिव हैं।