रमेश कुमार ‘रिपु’

छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के राज्य में गायों का सीरियल किलर भाजपा नेता होने से पूरा प्रदेश हैरान है। इसलिए कि गाय तो भाजपा के लिए वोट बैंक है। वहीं बीफ को लेकर देश में हुए बवाल चौंकाते हैं, लेकिन गोसेवक और गोरक्षक का जो चेहरा छत्तीसगढ़ में देखने को मिला है वह रोंगटे खड़े कर देता है। भाजपा नेता की गोशाला में एक एक करके तीन सौ गायें बगैर दाना, चारा, पानी के मर गर्इं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए यह हैरान कर देने वाली खबर है कि जामुल नगर पंचायत का उपाध्यक्ष और नगर पालिका परिषद वार्ड क्रमांक तीन का पार्षद हरीश वर्मा गायों का सीरियल किलर है, जिसने गोशाला को गायों का कब्रिस्तान बना दिया। सिर्फ इसलिए कि उसकी गोशाला का अनुदान रोक दिया गया।
राजधानी रायपुर से 80 किलोमीटर दूर भाजपा नेता हरीश वर्मा की दुर्ग जिले के धमधा विकासखंड से 12 किलोमीटर दूर गडई रोड स्थित गांव राजपुर में शगुन गोशाला है। इसके अलावा ग्राम पंचायत रानो और गोड़मरा में भी गोशालाएं हैं। यहां भी 29 गायें भूख और प्यास से मर गर्इं। जाहिर है कि गोसेवा की आड़ में सरकारी मेवा खाने के लिए ही हरीश वर्मा ने गोशाला खोल रखी है। राजपुर की गोशाला को पांच साल में 93 लाख 60 हजार रुपये का अनुदान मिला। गोशाला में बड़ी संख्या में गायों के मरने की यह कोई पहली घटना नहीं है। राजनांदगांव, कांकेर, बेमतरा, सिमगा, रायपुर और अब दुर्ग जिले में गायों का संहार कई सवाल खड़े करता है। भाजपा शासित राज्य में गोशालाएं गायों का कब्रिस्तान क्यों बनती जा रही हैं? मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह बात बात पर कहते हैं, जो गायों को मारेगा, उसे उल्टा लटका देंगे। सवाल यह है कि तीन सौ से अधिक गायों को मारने वाले को क्या उल्टा लटका देंगे? गोसेवा की आड़ में एक और भ्रष्टाचार की कहानी ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

हर गड्ढे में गायों की लाश
भाजपा नेता हरीश वर्मा के गो आश्रम के अंदर घुसते ही दुर्गंध भरी हवाओं के झोंके नाक बंद करने को विवश कर देते हैं। जिधर नजर दौड़ाओ जेसीबी से खोदे गए गड्ढे दिखते हैं। हर गड्ढे में चार से पांच गायों को दफनाया गया है। कुछ को गड्ढे में डाल दिया गया है। कुत्ते नोच रहे हैं या फिर कौए। ढेरों गायों की लाशें खेतों में सड़ रही हैं। 16 अगस्त को गोशाला में 30 गायों की लाशें देखी गर्इं। हरीश वर्मा कहते हैं, ‘2010 से गोशाला का संचालन कर रहा हूं। यहां मात्र 27 गायें मरी हैं, जो कि बीमार थीं। बारिश में एक दीवार गिरने से 16 गायों की मौत हो गई। गायों की संख्या अधिक है। दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए गोसेवा आयोग को पत्र लिखा है। जैसे ही मंजूरी मिल जाएगी दूसरी गोशाला भेज देंगे’। सवाल यह है कि जब 220 से अधिक गायें गोशाला में रखने की अनुमति नहीं है फिर 800 से अधिक गायें गोशाला में क्यों रखी गर्इं। गायों के लिए दाना, पानी और चारे की व्यवस्था नहीं है। रहने की जगह भी नहीं है। टीन के शेड भी नहीं हैं। खुले आकाश में गायें पड़ी रहती हैं। उन्हें नहलाने से लेकर उन्हें चारा देने वाला भी कोई नहीं है। गोशाला में चारा भी नहीं है। पशु चिकित्सकों की एक पांच सदस्यीय टीम के अनुसार गायों की मौत दीवार गिरने से नहीं हुई। टीम के सदस्य डॉ. एमके चावला ने बताया कि इतनी गायों की मौतें चारा, दाना, पानी की कमी से हुई हैं। जब हम उन्हें खिला रहे थे तो वे ऐसे खा रही थीं जैसे कई दिन से न खाया हो।

फूलचंद गोशाला में सौ गायें मरीं
विश्व हिन्दू परिषद के सह प्रान्त संयोजक ओमेश बिशन ने बताया कि हरीश वर्मा की गोशाला के पास तालाब है जिसमें मांगुर मछली पलती है। यह मछली मांस खाती है। इसलिए मरी हुई गायों को तालाब में डाल दिया जाता था और लोगों का पता नहीं चलता था। हम लोगों ने उस तालाब को बंद करवाया। इसलिए उस तालाब में लोगों को मरी हुई गायें बाहर दिख रही हैं। इस बीच 19 अगस्त को बेमेतरा जिले के परपोड़ी थाना के गोड़मरा में फूलचंद गोशाला में भी 100 से अधिक गायों के मरने पर गोशाला संचालक ने र्इंट भट्टे में छुपाने का प्रयास किया है। गोसेवक आयोग के अध्यक्ष विशेसर पटेल ने निरीक्षण किया। 13 गायों की मौत को लेकर परपोड़ी थाने में मामला दर्ज कराया गया है।

165 लाख अनुदान पाकर भी…
हरीश वर्मा के खिलाफ धमधा पुलिस ने पशु परीक्षण अधिनियम 2004 की धारा 4,6 और पशु के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11, भादंस की धारा 409 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया जहां उसे जेल भेज दिया गया। हरीश वर्मा की तीनों गोशालाओं को पांच साल में 165 लाख रुपये का अनुदान मिला। ग्राम रानो स्थित गोशाला को 22 लाख जहां 40 गायें मरी हैं। बेमेतरा जिले के ग्राम गोड़मरा की गोशाला को तीन साल में 50 लाख और राजपुर की गोशाला को पांच साल में 93 लाख 63 हजार रुपये मिले। सरकार हर गोशाला को साल में 20 लाख रुपये अनुदान देती है, लेकिन 2016-17 में शिकायत के बाद पहली बार अनुदान की राशि में 10 लाख की कटौती कर दी गई। गोसेवा आयोग के अध्यक्ष विशेसर पटेल ने इस मामले में कहा, ‘संबंधित गोशाला संचालक को बदइंतजामी और मवेशियों की मौत पर नोटिस देकर जवाब मांगा गया है। जवाब प्राप्त न होने की वजह से पिछले माह अनुदान रोक दिया गया’।

जांच होनी चाहिए: भूपेश
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा, गायों के हत्यारों के खिलाफ सरकार की चुप्पी चौंकाती है। इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। जिन लोगों के हाथों में गोसेवा का दायित्व था, उनके कामों की जांच होनी चाहिए। गोसेवा केंद्र खोले जाने के बाद उसकी जांच होती है। जांच या तो की नहीं गई या फिर ले दे के मामले को दबाया जाता रहा है। भूख से गायों की मौत हुई है तो दोषी केंद्र संचालक और विभाग के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। केवल निलंबित कर देना पर्याप्त नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भी नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए’।

दो साल बाद भी ठोस कार्रवाई नहीं
वर्ष 2015 में ग्राम रानी में दो दर्जन से अधिक मवेशियों की मौत का मामला सामने आया था। उस समय की कलेक्टर रीता शांडिल्य ने मामले की जांच के आदेश दिए थे। जहां जांच अधिकारी उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं द्वारा रानो गोशाला में मवेशियों की मौत का कारण चारा पानी की कमी बताते हुए कार्रवाई के लिए जांच प्रतिवेदन तत्कालीन कलेक्टर को सौंपा था। उन्होंने संबंधित गोशाला संचालक पर कार्रवाई को लेकर रिपोर्ट गोसेवा आयोग रायपुर को भेजी थी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

सभी गोशालाओं की जांच के निर्देश
इस घटना को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गोशाला में भूख से गायों की मौत की नए सिरे से पशुपालन विभाग को सभी गोशालाओं का निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। कुछ गोशालाओं की रिपोर्ट आई है। कई में अनियमितता पाई गई है। इसमें सरकारी मदद पाने और न पाने वाले सभी शामिल हैं। अव्यवस्था मिलने पर सभी के खिलाफ कार्रवाई होगी।

आदेश बेअसर
छत्तीसगढ़ में गोरक्षा के नाम पर गुजरात की तरह आतंक नहीं है, लेकिन गोरक्षक के नाम पर धंधेबाज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कही बातें छत्तीसगढ़ के लिए प्रासंगिक हैं। गोरक्षा के नाम पर लोग अपनी दुकानें खोल कर बैठे हैं। गोभक्त अलग हैं और गोसेवक अलग। कांकेर जिले के करार्माड़ दुर्गकोंदल में स्थित कामधेनू गोसेवा केंद्र में पिछले वर्ष अगस्त मेंं 150 से अधिक गायों की मौत दाना, चारा और पानी न मिलने की वजह से हुई थी। कामधेनू गोसेवा केंद्र को चार साल में 62 लाख 64 हजार रुपये का अनुदान दिया गया। इस घटना के बाद पशुधन विकास मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निर्देश पर प्रदेश में संचालित सभी गोशालाओं की जांच के लिए जिलेवार समिति गठित करने का आदेश दिया गया था, लेकिन यह आदेश मौखिक ही निकला।

भयावह स्थिति यहां भी
राजधानी रायपुर में रावांभाठा स्थित उज्ज्वल गौरक्षण गौशाला में करीब दो हजार मवेशी हैं। इनमें गाय, बैल और बछड़ों के साथ सांड़ भी शामिल हैं। इस गोशाला में बहुत गंदगी है। गोबर का ढेर लगा हुआ है। मवेशियों को भूसा के अलावा कुछ भी खाने को नहीं दिया जाता। गोशाला के ज्यादातर मवेशी बीमार हैं। उनकी हड्डियां दिख रही हैं। एक महिला ने बताया कि यहां रोज 8-10 गायें मर रही हैं। मेहर आते हैं और मृत मवेशी को मेटाडोर में ले जाते हैं। इस गोशाला में गायों के नहलाने की व्यवस्था नहीं है। साफ सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है। छायादार पेड़ नहीं हैं। इसलिए गर्मी में धूप में ही गायों को रहना पड़ता है। बीमार गायों के इलाज के लिए सरकारी डॉक्टर बुलाए जाते हैं। चारागाह की भी व्यवस्था नहीं है। बीमारी से बचाने के नाम पर दिन भर में एक बार गायों को चारा दिया जाता है।
बहरहाल, गायें चारे की कमी से जूझ रही हैं। वे सड़कों पर गंदगी कर रही हैं या पॉलीथिन खा कर मर रही हैं। दूध न देने वाली गायों को तिलक लगाकर छोड़ देना आम बात है। गोशालाओं में होने वाली गायों की मौत और तस्करी की घटनाएं गायों की बेहतर स्थिति का बयान नहीं करतीं।