नई दिल्ली । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के नेताओं ने संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला। इस मार्च का मकसद देश में बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराना है।
मार्च के ज़रिए कांग्रेस ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उनकी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल कर असहिष्णुता के माहौल को ख़त्म करने की अपील की। राष्ट्रपति को सौंपे अपने ज्ञापन में कांग्रेस ने कहा कि सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए विनाशकारी अभियान चलाया जा रहा है। मार्च से पहले सोमवार को सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाक़ात की थी।
सोनिया गांधी की राष्ट्रपति से मुलाकात ऐसे समय में हुई, जब कांग्रेस सांप्रदायिकता को लेकर केंद्र सरकार पर ज़ोरदार हमले कर रही है। सोमवार को ही प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के पूर्णिया में चुनावी रैली के दौरान असहिष्णुता के मुद्दे पर कांग्रेस पर पलटवार किया था।
विपक्षी दल कांग्रेस का यह कदम कथित रूप से उस ‘बढ़ती असहिष्णुता’ को लेकर कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों की ओर से जताए जा रहे विरोधों की पृष्ठभूमि में आया है जो कि दादरी घटना, गोमांस मामला और अन्य ऐसी घटनाओं में झलकती है। भाजपा और कांग्रेस की ओर से समाज में असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर बयानबाजी हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को एनडीए को असहिष्णुता पर सीख देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है और पार्टी को 1984 सिख विरोधी दंगों के लिए ‘अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए’ जिसमें हजारों लोगों का कत्लेआम हुआ था।
कांग्रेस ने यह कहते हुए पलटवार किया कि 2002 में गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा की तरह ही मोदी 2015 में भी ‘राजधर्म भूल’ गए हैं क्योंकि नफरत और हिंसा के कृत्यों को लेकर ‘अपनी चुप्पी के चलते वह असहिष्णुता के एक समर्थक हैं।’