असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां से देश की सता पर पार्टी की वापसी की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है। चुनावी नतीजों के बाद से कांग्रेस के बारे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस खुद तो डूबी लेकिन जिसको कांग्रेस ने अपना हाथ पकड़वाया वो भी डूब गया।  पांच राज्यों में पुडुचेरी छोड़कर हर जगह पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। असम और केरल में वह सत्ता से बाहर हो गई है तो तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में उसकी हालत पहले से भी बदतर हो गई।कांग्रेस की इतनी बड़ी हार की 4 अहम वजहें –

  1. केरल और असम में-केरल में कांग्रेस गठबंधन ने वाम दलों से सरकार छीनी थी. ओमान चांडी के कार्यशैली के खिलाफ विपक्षियों ने लगातार आंदोलन जारी रखा। वहीं असम में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई भी विकास कार्यों के सवाल पर घिरे रहे. दोनों जगहों पर सरकार विरोधी माहौल ने उन्हें सत्ता से बाहर करने में भूमिका निभाई।
  1. वाम दलों से भरोसे का संकट-कांग्रेस को गठबंधन के बावजूद केरल वामदलों के खिलाफ और पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के साथ चुनाव लड़ना भी भारी पड़ गया। कैडर आधारित वाम दलों में कांग्रेस के इस रवैए से भरोसा नहीं बन पाया। यही वजह रही कि पार्टी केरल में सरकार से गई और पश्चिम बंगाल की 294 सीटों में गठबंधन के बावजूद 40 सीटों के आसपास ही बढ़त बनाती दिखती रही।
  1. स्थानीय नेतृत्व के समन्वय में कमी-जब राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व दूसरी वजहों में उलझा हुआ था। तैयारी के वक्त केंद्रीय नेतृत्व नेशनल हेराल्ड केस, चुनाव के दौरान अगस्टा वेस्टलैंड चॉपर डील स्कैम और इसके पहले जेएनयू में देशविरोधी नारेबाजी मसले पर राजनीति करने में समय लगा रहा था। दूसरी ओर राहुल गांधी के लगातार दौरे में भी स्थानीय मुद्दे की जगह केंद्र सरकार पर हमला और खुद की सफाई देना ही हावी रहा।
  1. भाजपा की रणनीति का जवाब नहीं दे पाई कांग्रेस-राज्यों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन का मामला हो या प्रचार की आक्रामक शैली ।सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास बीजेपी के मोदी-शाह की रणनीतियों का जवाब नहीं था। असम में बीजेपी के उठाए मुद्दों पर पार्टी अधिकतर चुप रही. वहीं अन्य राज्यों में मजबूत क्षत्रपों के सामने भी मोदी और बीजेपी को निशाना बनाने की वजह से भी कांग्रेस उलझी रही। तमिलनाडु की कुल 232 सीटों में करुणानिधि की पार्टी डीएमके के साथ मिलकर भी कांग्रेस दहाई सीट तक पर बढ़त नहीं बना पाई। चार राज्यों में भले ही अलग-अलग दल जीतें हो पर राजनीतिक विचारों में सभी गैरकांग्रेसी हैं।