ओपि‍नियन पोस्‍ट
ऐसा लगता है कि बोफोर्स घोटाले का जिन्न कांग्रेस का पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है। सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के करीब 12 साल बाद पूरे मामले को फिर से खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस याचिका से किसकों कितना राजनीतिक नफा नुकसान होगा ये तो आने वाला वक्‍त बताऐगा। लेकिन फिलहाल कांग्रेस को केन्‍द्र सरकार पर राजनीतिक फायदे के लिए सीबीआई को इस्‍तेमाल करने के आरोप लगाने का मौका जरूर मिल गया है।

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दिलचस्‍प बात ये है कि सीबीआई ने यह याचिका उस समय दाखिल किया जब एक दिन पहले अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पहले साफ कर दिया था कि इस केस को लेकर किसी भी तरह की अपील नहीं की जानी चाहिए। पूरे मामले में लंबा समय निकल जाने के कारण इसका अब कोई महत्व नहीं रह गया है। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और वकील अजय कुमार अग्रवाल ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केस फाइल किया है।

अब सीबीआई ने बोफोर्स घोटाले को लेकर देश की शीर्ष अदालत में अपील दायर की है। बोफोर्स केस के आरोपियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने मई 2005 में बरी कर दिया था। बोफोर्स मामला 64 करोड़ रुपये की दलाली से जुड़ा है. बोफोर्स केस 1987 में सामने आया था।

इसमें स्वीडन से तोप खरीदने के सौदे में रिश्वत के लेनदेन के आरोपों में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी और दिवंगत इतालवी कारोबारी ओतावियो क्वात्रोकी के नाम सामने आया था।

दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश आर एस सोढ़ी ने 31 मई, 2005 को हिंदूजा भाइयों श्रीचंद, गोपीचंद व प्रकाशचंद और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सभी आरोप निरस्त कर दिए थे। सीबीआई को मामले से निपटने के उसके तरीके के लिए यह कहते हुए फटकार लगायी थी कि इससे सरकारी खजाने पर करीब 250 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा।

इससे पहले अक्टूबर में यह खबर आई थी कि सीबीआई ने बोफोर्स मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने के लिए सरकार से मंजूरी देने का आग्रह किया है। तब सीबीआई ने पूरे मामले में सरकार से 2005 के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और उसे कथित घोटाले में प्राथमिकी निरस्त करने को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की मंजूरी देने की मांग की थी।