मलिक असगर हाशमी

स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज लोगों को इलाज क्या देंगे, उनका खुद का स्वाथ्य ठीक नहीं’…‘अभय चौटाला को इलाज की जरूरत है तो हम उनका इलाज अमृतसर या आगरा में करवा देंगे।’ प्रदेश के मुख्य विपक्षी इंडियन लोकदल के वरिष्ठ नेता अभय चौटाला और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के बीच इन दिनों छिड़े वाक्युद्ध का यह एक नमूना है। दरअसल, यह इस बात की बानगी है कि हरियाणा जैसे विकसित प्रदेश की सरकार और विपक्षी दल सूबे की बिगड़ती स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति एक दूसरे पर सियासी वार करने तक ही गंभीर हैं। विषय की गंभीरता से इनका खास लेनादेना नहीं है। इसका नतीजा है कि सूबे के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, दवाई और सुविधाओं का अभाव है और अब कैंसर रोग एक बड़ी मुसीबत बनकर सूबे पर छाने लगा है। इस जानलेवा रोग के निरंतर फैलाव के कारण गांव के गांव इसकी जद में आने लगे हैं। गुरुग्राम-फरीदाबाद एक्सप्रेसवे पर स्थित बंधवाड़ी और नूंह जिले के साकरस गांव की पहचान ही कैंसर रोग बन गई है। इन गांवों में अब तक कैंसर से करीब चालीस लोगों की मौत हो चुकी है।

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर अपनी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर जश्न के मूड में हैं। अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाकर उपलब्धियां गिनाई जा रही हैं। बताया जा रहा है कि कैसे पिछले तीन वर्षों में मौजूदा सरकार ने पुल, सड़कों का जाल बिछाया, कई जन सुविधाएं शुरू कीं तथा शौचमुक्त, स्वच्छता तथा बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान हरियाणा में कैसे कामयाब हो रहे हैं। दूसरी तरफ स्वास्थ्य सेवा में कोताही के कारण भयावह होती तस्वीर की ओर किसी का खास ध्यान नहीं। पिछले तीन वर्षों में हरियाणा में कैंसर के रोगी और इससे होने वाली मौतें दोगुने से अधिक बढ़ गई हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सदन पटल पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज द्वारा रखे गए आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा जैसे छोटे प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में करीब दस हजार लोग कैंसर के कारण दुनिया से चले गए। केवल 2016 में यह आंकड़ा तीन हजार को पार कर गया। अनिल विज कहते हैं, ‘हरियाणा में कैंसर मरीज बढ़ने की जांच सरकार हर जिले में करा रही है। इसके कारणों का पता लगाने में विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम जुटी हुई है। स्क्रीनिंग की जा रही है कि कैंसर के मामले प्रदूषित पानी से बढ़ रहे हैं या कोई और कारण है।’ हालांकि ये सब कहने की बातें हैं, क्योकि सूबे के दो बड़े शहरों के सरकारी अस्पताल में पिछले छह महीने से पड़ी एमआरआई मशीनें भी अबतक चालू नहीं कराई गई हैं। स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि सरकार ने प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप यानी पीपीपी मॉडल के आधार पर एमआरआई सेवा देने का निर्णय लिया है, जिसे अभी सिरे चढ़ाना बाकी है।

प्रदेश की सियासी राजधानी कहे जाने वाले रोहतक में कैंसर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भाजपा के कद्दावर नेता तथा खट्टर सरकार में वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का यह गृहजिला है। पिछले साल रोहतक में 553 कैंसर के रोगियों की मौत हुई। इस जिले की गंभीर हालत को देखते हुए यहां राज्य स्तरीय कैंसर रोकथाम केंद्र बनाया गया है। पीजीआई रोहतक में भी कैंसर का इलाज होता है। आंकड़ों के मुताबिक, रोहतक के अस्पतालों में 2013 में 9899, 2014 में 8962, 2015 में 10326 और 2016 में 10558 कैंसर रोगी इलाज के लिए आए।

कैंसर के मामले में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का अंबाला जिला भी सुरक्षित नहीं। केवल पलवल, सिरसा और यमुनानगर में इसका जोर थोड़ा कम है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे राव नरेंद्र कहते हैं, ‘स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने जितने वादे किए किए थे, पूरे नहीं हुए। पहले से मौजूद सेवाओं की दशा भी खराब हुई है। स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों का अभाव है। एंबुलेंस की व्यवस्था ठीक नहीं। गंभीर रोगी आने पर सरकारी अस्पतालोंं में इलाज न कर उन्हें तुरंत दिल्ली के अस्पतालों को रेफर कर दिया जाता है। रोहतक के पीजीआई में भी यह सब हो रहा है। पहले ऐसा नहीं होता था। पिछले तीन वर्षों के भाजपा शासनकाल में इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया गया। चुनाव जीतने से पहले हरियाणा के सभी जिला मुख्यालयों में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का वादा किया गया था। अब तक एक भी मेडिकल कॉलेज शुरू नहीं हुआ है।’ हालांकि आइएमए के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. एपी सेतिया कहते हैं, ‘नए-नए मेडिकल कॉलेज खोलने की बजाए मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों, दवाइयों और सुविधाओं को बढ़ाकर इंतजाम बेहतर किया जा सकता है।’ स्वास्थ्य मैनुएल के अनुसार प्रत्येक एक हजार मरीज के इलाज के लिए कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए। हरियाणा में दस हजार रोगियों पर एक डॉक्टर भी नहीं है। मेडिकल कॉलेज और पीजीआई को छोड़कर बाकी सरकारी अस्पतालों में वेंटीलेटर तक नहीं है। पिछले सात-आठ वर्षों में ढाई हजार डॉक्टर भर्ती किए गए, पर माकूल सुविधाएं और तनख्वाह नहीं मिलने के कारण अधिकांश नौकरी छोड़कर चले गए। उनमें से केवल सात सौ ही अब सेवा में हैं। हरियाणा राज्य फॉर्मेसी कौंसिल के चेयरमैन केसी गोयल कहते हैं, ‘जहां डॉक्टरों, नर्सों, फार्मासिस्टों, दवाइयों की कमी होगी, वहां कैंसर क्या कोई भी रोग बेलगाम हो सकता है।’

ऐसा नहीं कि पिछले तीन वर्षांे में स्वास्थ्य सेवा के मामले में कुछ नहीं हुआ। सरकार ने मुफ्त इलाज योजना के लिए 18 करोड़ रुपये अलग से निर्धारित किए हैं। अस्पतालों में 231 तरह के आॅपरेशन निशुल्क किए गए हैं। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, ईसीजी सहित प्रयोगशाला में 73 बीमारियों की जांच मुफ्त की गई है। सरकारी अस्पतालों में गर्भनिरोधक टीका की व्यवस्था मुफ्त की गई है। शिशु मृत्यु दर 41 से घटकर 36 पर पहुंच गई है। लिंग अनुपात में वृद्धि हुई है। डेंगू का मुफ्त उपचार और बीपीएल परिवारों को मुफ्त प्लेटलेट्स की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। स्वास्थ्य बजट भी बढ़ाया गया है। इसके बावजूद प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने मेंं यह नाकाफी साबित हो रहे हैं। अनिल विज कहते हैं, ‘प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू है।’ यह अलग बात है कि मेडिकल बनने तक प्रदेश की तमाम स्वास्थ्य सेवाएं ही पटरी से उतर जाएंगी।

स्वास्थ्य सेवाओं को बेतहर बनाने को लेकर विपक्ष दल भी गंभीर नहीं दिखते। बेवजह के मुद्दों पर सदन के अंदर और बाहर खूब हो-हल्ला होता है, पर बिगड़ी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पिछले तीन वर्षों में हरियाणा में विपक्ष की ओर से कोई बड़ा आंदोलन नहीं छेड़ा गया। शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के पलवल से विधायक करण सिंह दलाल द्वारा सूबे में कैंसर रोग के बारे में सवाल पूछने पर स्वास्थ्य मंत्री के इस रोग की भयावह तस्वीर पेश करने पर भी विपक्ष में कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती। यूपी के एक अस्पताल में दिमागी बुखार या गुजरात के अहमदाबाद के अस्पताल में बच्चों की मौत पर सियासी बवंडर खड़ा करने वाले विपक्ष के लिए हरियाणा में कैंसर से होने वाली बड़ी संख्या में मौतें कोई सियासी मुद्दा नहीं। वह इसलिए भी कि हुड्डा सरकार में भी इसको लेकर कोई गंभीर पहल नहीं की गई थी। ऐसे मुददे वोटरों को प्रभावित नहीं करते।