वीरेंद्र नाथ भट्ट।

बेटी पेश करो विवाद से बहुजन समाज पार्टी का नाता बीस वर्ष पुराना है। बात 1997 की है जब एक हिंदी अखबार में छपी एक खबर के आधार पर बसपा के अध्यक्ष कांशी राम ने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक रैली को संबोधित करते हुए यह मांग की थी। रैली के बाद कांशीराम और मायावती ने भीड़ का नेतृत्व करते हुए उस अखबार के दफ्तर को घेर लिया था।

1993-1995 के दौरान सपा-बसपा गठबंधन सरकार में राज्य मंत्री रहे दीना नाथ भास्कर ने एक हिंदी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में मायावती के बारे में विवादास्पद बयान दिया था। बसपा के पूर्व विधायक ने कहा कि तब मायावती देवी नहीं थीं लेकिन अंदाज तब भी ऐसा ही था। किसी को भी जिबह कर डालने का जज्बा रखती थीं। दीनानाथ भास्कर ने इंटरव्यू में मायावती के बारे में जो कहा था उससे मायावती, दीनानाथ भास्कर से नहीं इंटरव्यू लेने वाले रिपोर्टर और उसे छापने वाले अखबार से नाराज हुई थीं। तब बसपा ने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में काफी भीड़ जुटाई थी। उस भीड़ से उस अखबार का कार्यालय फूंक डालने को कहा था। तब कांशीराम ने अखबार के मालिक से अपनी बेटी पेश करने को कहा था। कांशीराम आज नहीं हैं। वरना बहुत खुश होते कि उनकी लगाई फसल लहलहाने लगी है। अब तो बेटियों के साथ बहनें भी मांगी जाने लगी हैं। मां को नाजायज बताया जाने लगा है। डीएनए की जांच की मांग उठने लगी है। बेशर्मी यह कि यह सब राजधानी लखनऊ के एक प्रतिष्ठित स्कूल के बाहर हो रहा था। माइक लगाकर बच्चों को एक नई सभ्यता सिखाई जा रही थी।

बसपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव परम देव यादव ने कहा, ‘दयाशंकर ने मायावती के बारे में जो कहा वह बेशक निंदनीय था लेकिन मायावती ने जो संसद में कहा वह भी उतना ही निंदनीय था। मायावती ने राज्यसभा में कहा था कि दयाशंकर ने मुझे नहीं अपनी बेटी को कहा, अपनी बहन को कहा। फिर मायावती इतना बेचैन क्यों हैं? क्यों अपनी पार्टी के नेता मेवालाल गौतम को भेजकर एफआईआर लिखवाई? क्यों नसीमुद्दीन से ऊलजलूल नारे लगवाये? एक इंसान को कुत्ता क्यों कहलवाया? दयाशंकर की मां और पत्नी भी थाने पहुंच गर्इं तो इतनी बेचैनी क्यों हुई कि नसीमुद्दीन को प्रेस कांफ्रेंस करने भेज दिया? प्रेस कांफ्रेंस में नसीमुद्दीन तो समझ गए कि मामला अब अपने ही खिलाफ हो गया है। आप कब समझेंगी कि खुद को देवी और दूसरी औरतों को पैर की जूती समझने से तख़्त-ओ-ताज मिलते नहीं छिन जाते हैं।