अभिषेक रंजन सिंह

केरल में ताजा राजनीतिक हिंसा एक फिर सुर्खियों में है। गुरूवार रात करीब नौ बजे कोझिकोड के नदापुरम इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कार्यालय के निकट सीपीएम से जुड़े लोगों ने देसी बम से हमला कर दिया। जिसमें भाजपा के चार कार्यकर्ता जख्मी हो गए। इस घटना के कुछ ही घंटों के बाद कुछ अज्ञात लोगों ने एक सीपीएम कार्यालय को भी आग के हवाले कर दिया। हमले में घायल हुए भाजपा कार्यकर्ताओं की पहचान बाबू, विनीश, सुधीर और सुनील के तौर पर हुई है। उन्हें इलाज के लिए कोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्य में शुमार केरल में सियासी क़त्लेआम अब एक ख़तरनाक रूप ले चुका है। केरल खासकर कन्नूर में तमाम सियासी दलों के पास अपने कार्यकर्ताओं की हत्या से संबंधित लंबी फ़ेहरिस्त है, जो सीधे तौर पर सीपीएम को कसूरवार मानते हैं। अगर देखा जाए तो, यहां होने वाली ज़्यादातर हत्याएं सीपीएम और आरएसएस-भाजपा कार्यकर्ताओं की हुई हैं। सीपीएम और इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग भी एक दूसरे के प्रति हमलावर हैं। कई जगहों पर कांग्रेस और सीपीएम के बीच भी हिंसक झड़पें होती हैं। हालांकि, केरल में आरएसएस-भाजपा और मुस्लिम लीग के दरम्यान उतनी बड़ी सियासी रंजिश नहीं है। क्योंकि इन संगठनों को एक-दूसरे से वोट बैंक में सेंध लगने का ख़तरा नहीं है। इसके बरअक्स सीपीएम और आरएसएस-भाजपा के बीच सियासी रंजिश अधिक इसलिए है, क्योंकि केरल में बतौर पार्टी भाजपा लगातार मज़बूत हो रही है। भाजपा के इस उभार के पीछे उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ज़मीनी कार्यों का योगदान है। केरल की मौजूदा सियासत में भाजपा को उन लोगों का समर्थन हासिल हो रहा है, जो कभी सीपीएम के काडर हुआ करते थे। असल में यहां की पूरी लड़ाई वोट बैंक पर क़ब्ज़ा जमाने को लेकर है। आज भाजपा को केरल में उन लोगों का वोट और सर्मथन मिल रहा हैं, जो कभी सीपीएम के हिस्से में जाता था। कन्नूर समेत समस्त केरल में इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग और भाजपा-आरएसएस के बीच तल्ख़ी इसलिए नहीं है, क्योंकि इन दोनों पार्टियों को यह बखूबी पता है कि उनके वोट बैंक को कोई एक दूसरे से कोई ख़तरा नहीं है। जहां तक कांग्रेस की बात है, तो केरल में कांग्रेस को ज़्यादातर हिंदुओं और ईसाइयों का वोट मिलता है। यह बात दीगर है कि मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के एवज़ में उसे मुसलमानों का भी वोट मिलता रहा है।

तलेश्सरी कन्नूर का वह तालुका है, जहां हालिया वर्षों में सबसे ज़्यादा राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। उसी तरह कोझिकोड में मराड एक गांव है, यहां भी सियासी रंजिश में कई लोगों की मौतें हुईं हैं। केरल में सीपीएम की सरकार बनने के बाद भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर हमले काफ़ी बढ़ गए हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री पिनाराई खुद आरएसएस कार्यकर्ता वडिकल रामकृष्णन की हत्या में आरोपी हैं। 28 अप्रैल 1969 में हुई यह हत्या केरल में भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ता की पहली हत्या थी। रंजीत के मुताबिक़, केरल में अब तक 172 भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी हैं। सिर्फ कन्नूर ज़िले में पार्टी से जुड़े 80 लोगों को सीपीएम ने मौत के घाट उतार दिया। केरल में सीपीएम की सरकार बनने के बाद कन्नूर में अलग-अलग मुस्लिम लीग के छह लोगों की हत्याएं हुईं, जबकि साढ़े तीन सौ लोगों पर जानलेवा हमले हुए है। अभी हाल में इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग के तीन युवा कार्यकर्ताओं अनवर, शकूर और के.वी.एम मुनीर की हत्या सीपीएम के लोगों ने कर दी। सत्तर के दशक में कालीकट में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जानें गईं। इस फ़साद की जड़ में कोई और नहीं, बल्कि सीपीएम थी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष क़रार देती है, लेकिन कालीकट दंगे का जब भी ज़िक़्र आता है, तब उनके नेता खामोश हो जाते हैं। दरअसल, केरल में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं पर सीपीएम समर्थक इसलिए हमला करते हैं, क्योंकि सूबे में मुसलमानों का एकमुश्त वोट मुस्लिम लीग को जाता है। सीपीएम इसमें सेंध लगाना चाहती है, लेकिन उसके सारे प्रयास अबतक विफल साबित हुए हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 1973 से लेकर 2016 तक कुल 43 कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं, जबकि ढाई सौ लोगों पर कातिलाना हमले हुए,जिसमें कई लोग अपंग भी हो गए हैं। हालांकि, सीपीएम का भी यह कहना है कि 1994 से लेकर 2016 के बीच उसके 53 कार्यकर्ताओं की हत्या आरएसएस और भाजपा समर्थकों ने कर दी। साल 1999 में दिसंबर महीने की एक तारीख़ को कन्नूर वासी शायद ही कभी भुला पाएंगे। के.टी. जयकृष्णन कन्नूर स्थित एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे। साथ ही वह भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष भी थे। 1 दिसंबर को हमेशा की तरह वह बच्चों को पढ़ा रहे थे। इसी बीच सीपीएम से जुड़े दर्जन भर हथियारबंद लोग कक्षा में छोटे-छोटे बच्चों के बीच उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। इस घटना को अंजाम देने के बाद सीपीएम समर्थित हमलावरों ने ब्लैक बोर्ड पर एक धमकी भरा संदेश भी लिख दिया कि इस मामले में गवाही देने वालों का यही हाल किया जाएगा।

केरल में पिछले कुछ दशकों के दौरान जितनी भी राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, उनमें ग़ौर करने वाली बात यह है कि मारे गए सभी व्यक्ति चाहे उनका संबंध सीपीएम से रहा हो या फिर भाजपा-आरएसएस से या कांग्रेस अथवा मुस्लिम लीग से। वे सभी लोग अपनी पार्टी के एक साधारण कार्यकर्ता रहे हैं। बीते कुछ वर्षों में केरल में सैकड़ों राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि मरने वालों की सूची किसी भी पार्टी के किसी बड़े नेता का नाम नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि केरल में जारी सियासी क़त्लेआम में राजनीतिक दलों के नेता फ़ायदे के लिए अपने ग़रीब और साधारण कार्यकर्ताओं को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं।